धोखा और लोभ पतन का कारण-विकास सिंह

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। हमारे देश की जनता भोली भाली होने के साथ-साथ लोभी प्रवृति के होने के कारण मुगल काल से लेकर अबतक अपने पतन का कारण खुद बनती रही है। कुछ इसी प्रकार के ऐतिहासिक तथ्यों और आंकड़ों को लेकर झारखंड के प्रखर राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की है यह व्यंगात्मक प्रस्तुति:-

बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के दरबार में उपस्थित होकर ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रतिनिधि राबर्ट क्लाईव बंगाल में ब्यापार करने की अनुमति मांग रहा था। सिराजुद्दौला ने साफ मना कर दिया। कहा ..मेरे नाना ने कहा है सब पर विश्वास करना मगर अंग्रेजो पर मत करना। इसलिये आप बाहर जायें। क्लाईव ने युद्ध की धमकी दी। सिराजुद्दौला ने कहा मुझे युद्ध करना मंजूर है लेकिन तुमको यहां व्यापार करने की अनुमति नही दूंगा।

बंगाल के पूर्व नवाब और सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी खाँ को कोई पुत्र नही था। उन्हे चार पुत्री थीं। इसलिये उन्होने अपनी बड़ी बेटी के पुत्र सिराजुद्दोला को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। अलीवर्दी खाँ अंग्रेजो के बहुत खिलाफ थे और उन्हे कभी प्रश्रय नही दिये।

सिराजुद्दौला ने राबर्ट क्लाईव की चुनौती को स्वीकार किया और तय हुआ 23 जून 1757 को पलासी के मैदान में युद्ध होगा। (पलासी बंगाल की तत्कालिन राजधानी मूर्शीदाबाद से 22 की0मी0 दूर नदिया ज़िले में अवस्थित है)। सिराजुद्दौला ने अपने गुप्तचरो से पता कराया तो पता चला कि क्लाईव के पास मात्र 3050 ( 950 यूरोपियन और 2100 भारतीय ) सैनिक है। सिराजुद्दोला निश्चिंत हो गया कि उसके अठारह हजार सैनिक मिंनटो में राबर्ट क्लाईव को मसल देंगे, इसलिये अति आत्मविश्वास में युद्ध के मैदान में स्वयं नही जाकर अपने सेंनापति मीर जाफर को भेज दिया।

पलासी के मैदांन में सिराजुद्दौला की विशाल फौज देखकर राबर्ट क्लाईव के हाँथ पाँव फूल गये ..लेकिन क्लाईव जानता था कि अगर हिन्दुस्तानियों को लालच दो तो वे अपनी मातृभूमि क्या, सात पुस्तों को भी बेच देंगे। उसने तुरंत मीरजाफर को संधि प्रस्ताव भेजा और उसे बंगाल और बिहार प्रांत का नवाब बनाने का लालच दिया।

स्वार्थी मीरजाफर स्वार्थ में अंधा होकर क्लाईव के जाल में फंस गया और संधि हो गयी। कुछ लोग कहते हैँ कि पलासी में बड़ा भीषण युद्ध हुआ था, वे गलत कहते हैँ। पलासी में कोई युद्ध नही हुआ सिर्फ संधि हुयी। इस संधि के तहत अठारह हजार की फौज के साथ एक सेंनापति तीन हजार की फौज के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

प्रसिद्ध इतिहासकार पनिवकर कहते हैँ ..पलासी का युद्ध वास्तव में कोई युद्ध नही था, यह एक षड्यंत्र और विश्वासघात का घिनौना प्रदर्शन था। लेकिन इसका स्थान विश्व के निर्णायक युद्धो में से एक है , क्योकि इसी के द्वारा बंगाल से भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नीव डालने की शुरुआत हुयी और एक व्यापारिक संस्था ने राजनीतिक बागडोर अपने हाथों में ले ली।

राबर्ट क्लाईव अपनी डायरी में लिखता है .. जब मैने मीरजाफ़र को संधि के जाल में फंसा लिया तब हमलोग मुर्शिदाबाद की ओर प्रस्थान किये। मैं आगे घोड़े पर सवार मेरे पीछे मेरे 950 यूरोपीयन सिपाही और उसके पीछे बीस हजार भारतीय फौज.. हमलोग जब जा रहे थे तो सड़क के दोनो किनारे खड़े भारतीय ताँलिया बजा रहे थे। अगर ये विरोध में एक एक पत्थर भी चला देते तो हम सभी मारे जाते। ..

कहानी आगे भी है लेकिन मेरा उद्धेश्य यहीं पूरा हो जाता है इसलिये यही समाप्त करता हूँ।
.हमे लगता है कि हम सब कहीं न कहीं आज भी अपने अन्दर मीरजाफर को पाल कर जिन्दा रखे हुये हैं। पन्द्रह लाख का लालच मिला तो अपने लोभ पर बुद्धि , विवेक, ज्ञान और नैतिकता का नकली आवरण चढ़ा कर कूदने लगे ..और उस सड़क किनारे खड़े होकर तालियां बजाने वालों के अनुसरण में हर भ्रष्टाचार, अपराध, कुकर्म और बेशर्मी पर खुश होकर तालियां बजा रहे हैं।

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