कोरोना रथ को आखिर कौन रोक पायेगा- विकास सिंह

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Coronavirus) जिस रफ्तार से पुरे विश्व को अपनी चपेट में लेकर मानव जाति के नाश का कारण बनती जा रही है ऐसे में इसकी रोकथाम के लिए कारगर प्रयास अति आवश्यक हो गया है। इसी विषय पर आधारित है झारखंड के प्रखर राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की यह विशेष व्यंगात्मक लेख:-

जिस तरह कोरोना बेलगाम अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह दौड़ते आ रहा है। उसका लगाम पकड़ने की ताकत वाला शक्शियत कोई नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि हम उस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं जो कहता है गोद में बच्चा नगर में ढ़िढ़ोरा। सारी महामारियां संभवतः मनुष्यों की गतिविधियों के ही परिणाम है। इसलिए इसका असल उत्तर और समाधान भी सामाजिक संरचना में ही है। आश्चर्य पुरा मीडिया और मेडिकल जगत वैक्सीन, दवाइयां, अस्पताल, सैनिटाइजर इत्यादि से आगे सोच नही पा रहा।

कोई भी महामारी तब ही फैलती है और उन्ही आबादियों में फैलती है जिनका शारीरिक शक्ति या रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो चुकी होती है। यह जीवनशैली का नतीजा है। जीवनशैली का स्रोत सामाजिक संरचना या सामाजिक बनावट में है परंतु मीडिया और सरकारें उस पर बात नही कर सकती। क्योंकि सेहतमंद जीवनशैली के लिए यदि मीडिया ने माहौल बना दिया और जनता जागरूक हो गई, तो वह पुरजोर मांग करेगी कि पर्यावरण की तबाही रोकी जाए।

प्रदूषण रोका जाए। कृषि में फ़र्टिलाइज़र और केमिकल्स का इस्तेमाल बंद किया जाए। श्रम के घंटों को नियंत्रित किया जाये। निर्धारित समय से ज्यादा काम करने से रोका जाये इत्यादि। ऐसा करने से बड़े कॉर्पोरेशन्स का मुनाफा कम हो जाएगा। ज्यादातर मीडिया इन कॉर्पोरेशन्स द्वारा सँचालित एवं नियंत्रित है। इसलिए कोरोना जैसी किसी एक चीज़ पर फ़ोकस कर असल वजहों और मुद्दों से ध्यान भटकाया जाता है।

वैसे भी जितनी महामारियों का अब तक नाम लिया गया है, ये सब पूर्व की महामारियों की तुलना में कुछ भी नही है। आज से लगभग 350 साल पहले यूरोप में हैज़ा (प्लेग) फैला था। जिसमें खासकर लंदन की एक-चौथाई आबादी खत्म हो गयी थी। पॉक्स से न जाने कितनी मौतें हुई है। ट्यूबरक्लोसिस लाखों जाने ले चुका है। मलेरिया आज भी लाखों लोगों की जानें हर साल लेता है। मरने वाले ज्यादातर वही होते हैं जिनका स्वास्थ्य पहले से हीं कमजोर है। खान-पान की कमी, आराम की कमी, अत्यधिक भीड़-भाड़ वाला सामाजिक जीवन, खेल-कूद की कमी इत्यादि, ये सब प्रमुख वजह हैं कीटाणुओं के शिकार बन जाने का।

मनुष्य जाति वायरस और कीटाणुओं को कभी खत्म नही कर सकता और करने की कोशिश भी बेकार है। ये सब उतने ही प्राकृतिक उत्पाद हैं जितना कि मनुष्य। प्राणी और कीटाणु जगत में कुछ भी ठहरा नही होता। सभी कुछ निरंतर विकसित होते रहता है..मनुष्य भी। सिर्फ हमें उसका एहसास नही होता। ये वायरस और कीटाणु जब विकसित होते हैं, तो साथ ही हमारा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होता है। यह एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। इसे रोका नही जा सकता। सही सेहत इस प्राकृतिक प्रक्रिया को अपनाकर ही पाया जा सकता है, न कि बनावटी ढर्रे से जो इस वक़्त मीडिया और व्हाट्सएप्प वगैरह ने फैला रखा है।

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