लोकनेता के आंदोलन से झुका डीवीसी प्रबंधन

उम्र 65 साल अभी 12 साल बाकी है रिटायरमेंट

प्रहरी संवाददाता/ बोकारो थर्मल (बोकारो)। अकसर चुनाव हारने के बाद कोई भी नेता या उम्मीदवार क्षेत्र में दिखाई नहीं देते! लेकिन भाकपा माले के लोकनेता विकास सिंह है जो चुनाव हारने के बाद भी अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है, वजह वादा निभाना, बात पुरानी है लेकिन काफी दिलचस्प है। उन्होंने कहा, मुझे बाबूजी की कथनी हमेशा याद रहती है। बेटा कमाई वो करना जो साथ लेकर जाओ, ऐसी कमाई का क्या जो संसार में ही रह जाए…? सिंह ने कहा मोहताज लोगों को कार और मोटरसाइकिल से चलते देखता हूँ तो आंतरिक खुशी मिलती है।

यह वाकया झारखंड राज्य के बोकारो जिला में स्थित बोकारो थर्मल के दामोदर वैली कॉपोरेशन लिमिटेड (डीवीसी) का है। बता दें कि सरकारी नौकरी की उम्र 58 साल है, लेकिन किसी-किसी मामले में इसमें बढ़ोतरी होती रही है। बताया जाता है कि डीवीसी में कार्यरत मोईनुद्दीन भाई की उम्र 65 साल हो चुकी और रिटायर होने में अभी 12 साल बाकी है! मोइन भाई की तरह सैकड़ो कर्मचारी अब भी डीवीसी में नौकरी कर रहे हैं। यह बात किसी को हजम नहीं होगी। लोकिन यह सच है, यह करिश्मा कैसे हुआ। आइये इस पर एक नजर डालते हैं।

बात 1988 की है डीवीसी के सैकड़ो कैज़ुअल मजदूरों को कंपनी ने काम से हटा दिया था। इस दौरान फिर से नौकरी पाने के लिए सभी मजदूर अपने-अपने स्तर पर राज्य व केंद्रीय नेताओं के पास दौड़ -धूप कर रहे थे। इस मामले में नौकरी से निकाले मजदूरों ने मुख्यमंत्री का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन परिणाम शुन्य ही निकला। 1988 से 1995 तक के भग दौड़ के बाद थक हार कर मजदूरों ने अपनी किस्मत पर छोड़ दिया। इसी दौरान 1995 में बेरमो विधानसभा क्षेत्र से भाकपा माले की उम्मीदवारी विकास सिंह को दी गई।

चुनाव प्रचार के दौरान सिंह से कुछ उन मजदूरों की मुलाकात हुई, जो प्लॉट निर्माण के दौरान ठेका पर काम करते थे। उन मजदूरो ने अपनी समस्या से सिंह को अवगत कराया। मजदूरों की समस्याओं को सुनने के बाद सिंह ने उन्हें वचन दिया कि चुनाव जीते या हारें इस लड़ाई को चुनाव बाद लड़ूंगा। चुनाव सपंन्न होने केबाद मजदूरों ने सिंह से संपर्क नहीं किया, शायद उन लोगों ने सोचा होगा की चुनावी वादा था। क्योंकि चुनाव परिणाम सिंह के पक्ष में नहीं था।

इन सबके बावजूद लोकनेता विकास सिंह ने डीवीसी द्वारा हटाए गए कैज़ुअल मजदूरों से संपर्क किया और आंदोलन शुरू कर दी। दो बार आमरण अनशन पर बैठे, एक बार 5 दिन दूसरी बार 7 दिन अनशन चला। इस दौरान डीवीसी मुख्यालय कलकत्ता से पदाधिकारी आये समझौता हुआ कि इन्हें नौकरी दे दी जायेगी। लेकिन नियमानुसार 20-25 लोगों का ही नियोजन संभव था। यहां सिंह ने कहा कि सभी को नियोजन देना होगा, नहीं तो आंदोलन जारी रहेगा।

इस बीच मजदूरों ने प्लांट का गेट जाम कर दिया। उस दिन जेएमएम की आर्थिक नाकाबंदी भी थी, मैजिस्ट्रेट और पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी आ गई और सभी लोगों को गिरफ्तार कर थाना में बंद कर दिया गया। इस बात की सूचना मिलते ही सिंह थाना पहुंचे। यहां मजदूरों ने उन्हें बताया कि उनके सर का बाल पकड़ कर खींचा गया है, यह सुनकर सिंह गुस्से से आग-बबूला हो गए।

चूंकि यहां मैजिस्ट्रेट, थानाधिकारी, एएसआई, डीवीसी के डीजीएम सिक्योरिटी ऑफिसर के ऑफिस बैठे हैं और बाहर पुलिस बल तैनात है। सिंह ने बताया कि गुस्से में मैंनें मैजिस्ट्रेट से पूछा कि मजदूरों का बाल पकड़ कर क्यों खींचा गया, आपका बाल खींचें तो कैसा लगेगा? इसके बाद काफी कहा सुनी हुई। चूंकि वो मुझे चेहरा से नहीं पहचानते थे, जब मैजिस्ट्रेट और थानेदार ने विकास सिंह का नाम सुना तो मामला ठंडाया। वहीं दूसरी तरह प्लॉट के बाहर मजदूरों की तादात बढ़ती जा रही थी।

हालात को देखते हुए भाकपा माले के लोकप्रिय नेता विकास सिंह को मैजिस्ट्रेट ने अपनी जीप में लेकर बेरमो थाना भागे, इधर मजदूरों ने हंगामा करते हुए बोकारो थर्मल थाने को घेर लिया, मजदूरों का नेतृत्व सीपीएम के भागीरथ शर्मा, सीपीआई के जानकी महतो, ब्रजकिशोर सिंह, नवीन पाठक, भाजपा के भरत यादव सहित माले के नेता कर रहे थे। अगर माले नेता मदन सिंह भीड़ को नियंत्रित नहीं किये होते तो कुछ अनहोनी से इंकार नहीं किया जा सकता।

इस लड़ाई में मैजिस्ट्रेट (के के राय) समझौता चाहते थे लेकिन सिंह केस करने पर अड़े रहे फलस्वरूप दोनो तरफ से केस हुआ। मैजिस्ट्रेट के द्वारा किये गये केस में आईपीसी की दफा 307, 379, 341 जैसे गैरजमानतीय धारा लगी थी, जूडिशियल मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया। मेरे साथ हुई घटना के बारे में सुनकर तेनुघाट कोर्ट के लगभग सभी वकील मेरे साथ कोर्ट रूम में घुस गये और सीजेएम से घटना का विरोध करने लगे, सीजेएम ने वक़्त की नजाकत को देखते हुए गैरजमानती धाराओं को हटाते हुए मुझे जमानत दे दी।

बाद में मेरे द्वारा दायर केस में उन्होने मैजिस्ट्रेट के के राय, थानेदार आरपी सिंह, एएसआई नवल सिंह और डीवीसी के डीजीएम कर्नल जेएस भंगु के खिलाफ काग्निजेंस का मामला दर्ज किया, यहां बाजी पलट गई। मामला बिगड़ता देख बोकारो उपायुक्त (डीसी) स्वयं तेनुघाट सीजेएम से पैरवी किये, लेकिन सीजेएम ने नहीं सुनी। यहां चारो महारथियों पर वारंट निर्गत हो गया, जेल जाने की नौबत आ गयी तो प्रशासन समझौता की जुगत भिड़ाने लगा, बड़े बड़े ठेकेदार – कोयला माफिया बड़ी- बड़ी थैली लेकर समझौता कर लेने का ऑफर देने लगे लेकिन मुझे बाबूजी की कथनी हमेशा याद रहती है। बेटा कमाई वो करना जो साथ लेकर जाओ, ऐसी कमाई का क्या जो यहीं रह जाएगी।

यहां लोकनेता विकास सिंह ने शर्त रखी कि 1988 में छंटनीग्रस्त कैज़ुअल मजदूरों को डीवीसी नौकरी दे, तो मैं समझौता संभव है। सिंह उन मजदूरों के लिए नौकरी कि मांग की, जिन्हें डीवीसी ने बैठा दिया था। सिंह की मांग प्रबंधन की नीतियों के विरूद्ध था, लेकिन प्रशासन के अधिकारियों का प्रबंधन पर इतना दबाव पड़ा कि सिंह की शर्तों को मानना पड़ा। यहां फिर एक अड़चन आई कि स्थायी होने के लिये लगातार 240 दिन की उपस्थिति अनिवार्य है, इसे सिंह ने समेटते हुए 180 दिन करवाया, स्थानीय प्लांट में ही हाजरी को बदलवा कर पूरे डीवीसी में कही भी काम किया है तो उसकी गणना होगी। इस समझौते से 20-25 लोगों के बदले करीब 100 मजदूरों को स्थाई रूप से डीवीसी में नौकरी मिल गई।

लोकनेता सिंह ने बताया कि यहां स्वस्थ्य जांच के दौरन उम्र की जाँच करने वाले डॉक्टर ने आत्मीय संबंध होने के कारण जो मैं कहता था वही लिखते थे। इनमें एक छवि डोम थे 70 साल से ऊपर, उनकी पत्नी भी लगभग 67-68 की थीं, उन्हें 45 और 40 साल लिखवा कर नौकरी ज्वाइन कराया गया। इसी तरह लगभग सभी लोगों की उम्र बहुत कम लिखाया और नौकरी से लेकर उम्र निर्धारण तक किसी का एक पैसा भी खर्च नहीं होने दिया।

फिर से नौकरी मिलने की खुशी में कुछ लोग मिठाई लेकर मेरे घर आए, जिन्हें मेरी पत्नी ने यह कहकर वापस कर दिया कि तुम्हारे बच्चों को इसकी जरूरत है , उन्हें खिलाओ। सिंह ने कहा कि जो लोग मोहताज थे, अब कार और मोटरसाइकिल से चलते हैं, तो उन्हें देखकर आंतरिक खुशी मिलती है। शायद करोड़ो रूपये की लॉटरी मिलने पर भी उतनी खुशी नही होती।




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