अवमानना मामले में निष्पक्ष आलोचना की जरूरत- दवे

एस.पी.सक्सेना/ रांची (झारखंड)। “एक न्यायाधीश की निष्पक्ष रूप से आलोचना करना, भले ही अपराध न हो, लेकिन एक अधिकार है।” सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट से प्रशांत भूषण अवमानना मामले में सुनवाई के दोरान कहा है। दुष्यंत दवे देश के जाने माने कानूनविद् हैं। अवमानना का यह मामला कानूनविदों में बहस का विषय बन गया है।

तीन सदस्यीय पीठ ने अवमानना मामले की सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश को ले कर किये गये एक ट्वीट को स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले की सुनवाई कर रहा है। दवे ने बहस के दौरान अनेक मामलों का संदर्भ और उस पर सुप्रीम कोर्ट की राय का हवाला देते हुए कुद तीखे सवाल भी किये हैं। लॉ लाइव की रिपोर्ट के अनुसार दवे ने कहा है कि किसी भी जज की साफसुथरी आलोचना के अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

दवे ने कहा कि यदि किसी बड़े पद पर बैठे लोगों को ले कर कोई सवाल उठाता है जो उनकी प्राथमिकता में नहीं होती तो इसे इनकी आलोचना नहीं समझना चाहिए। दवे ने कहा “अगर किसी को लगता है कि कुछ ऐसे पहलू थे, जहां अदालत कुछ अलग कर सकती थी, तो इसे एक सुझाव के रूप में लिया जा सकता था, न कि किसी की आलोचना के रूप में।

झारखंड अगेंस्ट करप्शन के रांची (Ranchi) जिलाध्यक्ष विट्टू सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि दवे के तर्कों पर बेंच ने कई बार प्रतिप्रश्न भी किये। मामले में न्याय जगत जिस तरह दो खेमों में बंट गया इससे जाहिर होता है कि अवमानना के सवाल को ले कर नये सिरे से विचार करने की जरूरत है। अतीत में कई न्यायविद् ही अवमानना को पूरी तरह खत्म किये जाने की मांग कर चुके हैं।

अदालतों के अधिकार को चुनौती दे चुके हैं। लंबे समय से बहस चल रही है कि एक लोकतांत्रिक देश में आखिर विशेषाधिकारों की जरूरत ही क्या है? विधायिका हो या अदालत उन्हें जो विशेषाधिकार प्राप्त हैं उस पर नये सिरे से लांकतांत्रिक संदर्भ में विचार किये जाने की जरूरत है। संविधान की मूलभावना के अनुसार निष्पक्ष आलोचना के अधिकार से नागरिकों को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

लोकतंत्र के अनेक पहलू अभी ऐसे हैं जिन पर ज्यादा गंभीरता से भारत को विचार करना होगा ताकि देश में एक समान लोकतांत्रिक माहौल अदालतों ओर विधायिका को और अधिकार जिम्मेदार बनाया जा सके। ताकि इस मान्यता को ठेस नहीं पहुंचे कि इंसाफ जरूरी है लेकिन इंसाफ होते हुए दिखने की अनिवार्यता भी उतनी ही है।

जिलाध्यक्ष सिंह ने बताया कि अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग चार जजों ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर अदालतों के भीतर चल रही प्रक्रियाओं के संदर्भ में जो सवाल उठाये थे, उनकी प्रासंगिता अभी भी बनी हुई है। दवे ने न्यायिक ईमानदारी का सवाल उठाया है। खास कर राजनीतिक मामलों से जुड़े मामले को लेकर उन्होंने उन संदेहों की चर्चा की है, जो उठते रहते हैं। इस पर तीन जजों की पीठ ने सवाल भी किये लेकिन दवे के सवालों ने एक संजीदा मामले को छेड़ कर बहस को नया आयाम दिया है। दरअसल न्यायिक प्रतिबद्धता का भी एक सैंद्धांतिक सवाल देश में अनेक मौकों पर उठता रहा है।

इमरजेंसी के दौर में कांग्रेस के एक बड़े नेता ने प्रतिबद्ध अदालत का सवाल उठाया था। यानी ऐसी अदालत जो सरकार के नजरिए संबंधी हो और वह सरकार के अनुकूल कार्य करें। इमरजेंसी के बाद तो इस तरह के प्रतिबद्ध न्यायपालिका के सवाल को खारिज कर दिया गया। शासकों की आकांक्षा रही है कि वे प्रतिबद्ध न्याय प्रणाली पर जोर दे। सरकार के विरोध में किये गये कई अदालती फैसलों पर सरकार की प्रतिक्रिया को यदि गंभीरता से देखा जाये तो इस तरह की प्रतिबद्ध अदालता की गूंज सुनी जा सकती है।

चूंकि भारत में जजों की नियुक्ति में सरकार की बड़ी भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में सरकार के प्रयास जारी रहते हैं। वह किसी न किसी दिन मनोनुकूल परिणाम हासिल कर लेगी। भारत के संविधान ने कार्यपालिका और न्यापालिका के अधिकारों को स्पष्ट किया है और स्वतंत्र न्यायपालिका भारतीय संविधान की आत्मा है। भारत की न्याय व्यवस्था ने अपनी स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा की है और उसने सरकारों के गलत फैसलों को अपनी आलोचना का विषय भी बनाया है।

इस पूरे संदर्भ में पिछले कुछ समय से एक तबके में कई सवाल न्याय को लेकर उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट का दायित्व बनता है कि वह तमाम संदेहों को दूर करे और एक ऐसी आचार संहिता को भी अंजाम दे जिससे इस तरह के संदेह बनें ही नहीं। कुछेक दुखद घटनाएं भी दर्ज हुई हैं, जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीशों ने रिटायर होते ही राजनीतिक पद ग्रहण किया है। इन हालतों ने जन सरोकार के कुछ मामलों में उनके फैसलों की निष्पक्षता पर संदेह पैदा किया है। अवमानना के इस मामले में न्याय जगत की दिलचस्पी जाहिर करती है कि इन संदेहों को दूर करने का वक्त आ गया है।

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