राज्य में रिसीविंग को अनिवार्य करे सरकार

प्रहरी संवाददाता/ गोपालगंज (बिहार)। राज्य के शिक्षित व बुद्धिजीवियों ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) से मांग की है कि सरकारी कार्यालयों में आवेदनों की रिसीविंग (पत्र प्राप्ति) को सुनिश्चित करे। क्योंकि मौजूद समय में अधिकांश विभागों के अधिकारी व कर्मचारी रिसीविंग देने से कतराते हैं और चंद सप्ताह या महीना बीतने के बाद अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए साफ इंकार कर देते हैं। जिसके कारण आवेदनकर्ताओं को पूर्व की प्रक्रिया को फिर से दोहराना पड़ता है। इससे समय के साथ-साथ पैसो की भी बर्बादी होती है।

गौरतलब है कि रिश्वतखोरी के दलदल में फंसे बिहार सरकार के अधिकांश विभागों के अधिकारी किसी प्रकार के आवेदनों की रिसीविंग (प्राप्ति पत्र) नहीं देते। जिसके कारण बिहार की भोली भाली जनता को एक ही काम के लिए कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़ता है। इसके बाद भी उनका काम समय पर नहीं होता। विशेष रूप से जमीन आदि के मामलों में कर्मचारियों से लेकर आला अधिकारी भी किसान या पुश्तैनी जमीन के मालिकों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते!

उल्लेखनीय है कि इन्हीं कारणों से देश के अन्य राज्यों में बिहार बदनाम है और इसकी गिनती जंगल राज्य के तौर पर होती है। यहां के सरकारी विभागों के अधिकारी किसी भी पत्र की रिसिविंग (प्राप्ति पत्र) देने से कतराते हैं। ऐसा बिहार के छपरा, गोपालगंज (Gopalganj) और सिवान जिला में देखा जा रहा है। जबकि रिसिविंग लेना पत्रवाहक का अधिकार है। ताजा वाकया गोपालगंज जिला के हथुआ  अनुमंडल (Hathua Subdivision)का है। यहां गत शुक्रवार को प्रखंड विकास पदाधिकारी (B D O) कार्यालय में क्षेत्र की समस्याओं को लेकर कुछ लोग गए थे उन्हें एक पत्र रिसिविंग करना था।

बीडीओ कार्यालय में पत्र प्राप्ति देने वाला कोई नहीं था, उक्त कार्यालय के संतरी ने कहा कि साहब अभी नहीं हैं। इस तरह शनिवार को भी बीडीओ साहब नहीं मिले तो किसी तरह उनका मोबाईल नंबर निकाला गया। अब साहब मोबाइल भी उठाने को तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अधिकारी और जनता के ताल मेल के बिना क्षेत्र का विकास कैसे होगा? अलबत्ता परिस्थितियों के मद्देनजर विकास के बजाय विनाश संभव है।

स्थानीय नागरिक व बुद्धिजीवियों ने सरकार से अपील की है कि राज्य के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री अपने अधिकारियों को आदेश जारी करें। ताकि किसी काम के लिए बिहार की भोली भाली जनता को कार्यालयों का चक्कर न लगाना पड़े। जमीन से भुक्तभोगियों का कहना है कि विकसित भारत में हर भाषा का कम्प्यूटर लगाया गया है कि धीमी गति से चलने वाले कार्यो को गति दिया जा सके। लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है।

अधिकारी सरकार को कोसते है कि कंप्यूटर से जल्दी हम लोग काम कर सकते हैं। जमीन से जुड़े विभागों के अधिकारियों का तर्क है कि कंप्यूटर चलाने के लिए जो सुविधाएं होनी चाहिये, वो बिहार में नहीं है। यहां कभी बिजली गायब तो कभी सर्वर डाउन रहता है। ऐसे में अगर दोनों हैं तो ऑपरेटर लापता हो जाता है। जिसके कारण एक घंटे के काम में महीनों लग जाते है। आखिर किसे सुनाएं विकसित बिहार सरकार की दास्तां।

 371 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *