त्रासदी को आमंत्रण दे रहा है जादुगोड़ा का युरेनियम खदान-विजय

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। दूसरी हिरोशिमा या भोपाल त्रासदी को आमंत्रण दे रहा है झारखंड के जमशेदपुर स्थित जादूगोड़ा यूरेनियम खदानों के रेडियो एक्टिव रेडिएशन। यदि समय रहते राज्य एवं केंद्र सरकार नहीं ध्यान देती है तो जनसंख्या और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। साथ हीं भारी विनाश का कारण भी बन सकता है।

उपरोक्त बातें 9 मई को झााखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष सह आदिवासी मूलवासी जन अधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने कही। उन्होंने इस संबंध में भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री, झारखंड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय खान एवं भूतत्व मंत्री को इस संदर्भ में भेजे गए ई मेल त्राहिमाम संदेश पत्र प्रेषित किया है।

नायक ने कहा कि जादूगोड़ा से यूरेनियम खनन होता है, जिसे सरल पदार्थ येलो केक बनाकर न्यूक्लियर रिएक्टर मे फिड करने के लिए यूसीआईएल द्वारा हैदराबाद भेजा जाता है। यह येलो केक न्यूक्लियर रिएक्टर में ईंधन का काम करती है। इससे बिजली बनाया जाता है।

नायक के अनुसार न्यूक्लियर रिएक्टर से बिजली बनने के बाद जो कचरा निकलता है, उसे यूरेनियम कचरे को वापस झारखंड के जादूगोड़ा लाया जाता है। पुनः उसको जादूगोड़ा के तमाम टेलिंग पौंडो में डाला जाता है।

नायक ने आगे कहा कि खनन और टेलिंग पौंडो मे युरेनीयम कचड़ों से आज स्थिति इतनी भयावह है कि जादूगोड़ा यूरेनियम खदान के पास सर्वेक्षण में अत्यधिक विकृति और कैंसर पाया गया है।

एक चौकानेवाले रहस्योद्घाटन में इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट आईडीपीडी बाहरी लिंक के विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट के रूप में यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) में काम करने वाले खनिकों, कर्मचारियों के स्वास्थ संबंधी खतरों के बारे में कुछ नंगे सच सामने लाये है।

उन्होंने कहा कि जर्मनी की स्थिति इंटरनेशनल फिजिशियंस प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वाटर (IPPNW) से संबंधित संगठन ने झारखंडी ऑर्गेनाइजेशन अगेंस्ट रेडिएशन (JOAR) के साथ मिलकर यह सर्वेक्षण किया गया था।

उन्होंने बताया कि एसोसिएशन के राष्ट्रीय परिषद के सचिव शकील उर रहमान के अनुसार अध्ययन मई और अगस्त 2007 के बीच आयोजित किया गया था। यह दो अलग-अलग चरणों में आयोजित की गई थी, जबकि एक सर्वेक्षण खदानों से 2.5 किलोमीटर के दायरे में गांवों पर केंद्रित था। इसी तरह सर्वेक्षण खनन क्षेत्र से लगभग 30 किलोमीटर दूर गांवों में किया गया था।

नायक के अनुसार पहले श्रेणी में कुल 2,118 परिवार, जबकि दूसरे श्रेणी में अन्य 1,956 परिवारों का अध्ययन किया गया था। सर्वेक्षण के अनुसार यहां लगभग 9.5 प्रतिशत नवजात शिशु अत्यधिक शारीरिक विकृति के कारण हर साल मर रहे हैं।

प्राथमिक बांझपन आम होता जा रहा है, जिसमें 9.6 प्रतिशत महिलाएं शादी के 3 साल बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाती है। आसपास के गांव में कैंसर से मरने वालों की संख्या लगभग 2.87 प्रतिशत है। लगभग 68.33 प्रतिशत रहिवासी 62 वर्ष की आयु से पहले मर रहे हैं।

नायक ने कहा कि जादूगोड़ा के इर्द-गिर्द की पहाड़ियों पर खुदाई कर टेली पौण्ड बनाए गए हैं, जहां यूरेनियम खनन से निकलने वाले रेडियो एक्टिव रेडिएशन मलबे का निष्पादन होता है। यहां स्थित तीन टेलिंग पांड की वजह से आसपास के भू-जल और स्वर्णरेखा नदी भी प्रदूषित हो गया है। नायक ने कहा कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द्वारा वर्ष 2003 में एक अध्ययन किया गया था।

अध्ययन के हवाले से इस संस्था ने बताया कि वर्ष 1998 से 2003 के बीच इस क्षेत्र की करीब 18 प्रतिशत महिलाओं को या तो गर्भपात हुआ या मृत बच्चे पैदा हुए। इस अध्ययन में करीब 30 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भधारण में किसी न किसी तरह की मुश्किल आने का जिक्र किया है। यहां ऐसी भयावह स्थिति है कि विकलांग बच्चों का जन्म, गर्भपात, गर्भधारण में समस्या कैंसर और टीबी जैसे बीमारी की बहुतायत है। यह सब किसी खनन की देन है।

नायक ने बताया कि ऐसा नहीं है कि यहां के रहिवासी पहले बीमार नहीं पड़ते थे। यहां भी वैसे ही रोग होते थे, जैसे अन्य जगहों पर हुआ करता है। यह रोग सामान्य इलाज या घरेलू दवाइयों से ठीक हो जाते थे, पर आज स्थिति यह बन गई है कि डॉक्टर बीमारी का अनुमान नहीं लगा पाते हैं। इलाज तो दूर की बात है। यह सब यूरेनियम खनन शुरू होने के बाद हुआ है।

नायक ने बताया कि एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि इन खदानों के आसपास बसे गांव में 9000 रहजवासी बांझपन, कैंसर, सांस संबंधी बीमारियों, गर्भपात और जन्मजात विकलांगता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आसपास के प्रभावित गांव में परमाणु कचरे का असर जांचने के लिए परमाणु वैज्ञानिक संघमित्र गाडेकर ने सर्वे किया था।

गाडेकर के मुताबिक वहां गर्भपात और गर्भ में ही शिशु के मरने के मामले बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही मजदूरों को हफ्ते में एक ही यूनिफार्म दी जाती है। उन्हें इसे पहनकर रहना पड़ता है। वे उसी को घर भी ले जाते हैं। वहां पत्नी, मां, बेटियां उसे दूषित पानी से धोती है। इस दौरान वे विकिरण की चपेट में आ जाती हैं। जादूगोड़ा में रेडियोधर्मी प्रदूषण का दुष्चक्र चल रहा है, जिसे जनहित मे रोकना होगा।

नायक ने आगे कहा कि इस मुद्दे को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा योजना आयोग की एक टीम के संज्ञान में लाया गया था, जिन्होंने झारखंड के खनन गतिविधियों के बाद के प्रभाव से सबसे ज्यादा पीड़ित बताया। सोरेन ने उस समय कहा था कि यूरेनियम युक्त जादूगोड़ा क्षेत्र के करीब के कई गांव में बच्चे जन्मजात विकलांगता के साथ पैदा होते हैं, जो राज्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

उन्होंने खनन के अन्य प्रतिकूल प्रभावों, विस्थापन, पर्यावरण को नुकसान को लेकर उचित मुआवजा नीति, स्थानीय रहिवासियों की आजीविका पर दीर्घकालिक प्रभाव और भूमिगत जल स्रोतों के दूषित होने पर भी प्रकाश डाला था।

नायक ने बताया कि जादुगोड़ा में डंपिंग/भंडारण या पुनर्चक्रण या आगे निष्कर्षण के लिए रेडियोधर्मी अपशिष्ट/सामग्री और रेडियो-मेडिकल कचरे का आयात तुरंत बंद किया जाना चाहिए।
पहले से मौजूद टेलिंग डैम/तालाबों के आस-पास के सभी गांवों को तुरंत सुरक्षित स्थान पर खाली कर दिया जाना चाहिए।

जब तक कि उचित और स्थायी पुनर्वास नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि इससे बचाव के लिए डीएई, बीएआरसी और यूसीआईएल को जादुगोरा में या उसके आसपास एक पूर्ण विकसित चिकित्सा केंद्र स्थापित करना चाहिए, जिसमें निम्न स्तर के विकिरण संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए योग्य चिकित्सा कर्मी हों।

इस कार्य की निगरानी एम्स द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जादुगोड़ा यूरेनियम खदान स्थल पर स्वतंत्र विकिरण निगरानी वर्ष 2001 और 2002 में की गयी।

क्योटो विश्वविद्यालय में रिसर्च रिएक्टर इंस्टीट्यूट के हिरोआकी कोएदे ने जादुगोडा यूरेनियम खान के पर्यावरणीय प्रभावों की निगरानी के लिए क्षेत्र की यात्राएं कीं। उन्होंने बाहरी गामा खुराक दर, मिट्टी में रेडियो न्यूक्लाइड सांद्रता और हवा में रेडॉन सांद्रता की निगरानी की और कहा कि जादुगोड़ा में यूरेनियम खदान से प्रदूषण फैल रहा है।

बाहरी गामा खुराक दर गांवों में 1 mSv/y से अधिक है। यह पीछे के तालाबों के आसपास 10 mSv/y तक पहुँच जाती है। कहा गया कि टेलिंग तालाबों के आसपास की मिट्टी यूरेनियम से दूषित होती है। विशेष रूप से डुंगरीडीह गांव में प्रदूषण का उच्च स्तर पाया गया, जो तालाब संख्या 1 की सीमा से लगा हुआ है। अन्य गांवों में कोई गंभीर संदूषण नहीं पाया गया। टेलिंग पोखर आदि से निकलने वाला रेडॉन प्रदूषण फैलाता है।

उन्होंने बताया कि निर्माण सामग्री के लिए खदान से निकली बेकार चट्टान से प्रदूषण फैलता है। अन्य निष्कर्षों में शामिल नंबर 1 टेलिंग तालाब सीज़ियम द्वारा संदूषण दिखाता है। इस तथ्य से पता चलता है कि रेडियोधर्मिता यूरेनियम खदान के अलावा किसी अन्य स्रोत से लाई गई थी।

उन्होंने बताया कि उत्पाद यूरेनियम कंसंट्रेट को लापरवाही से निपटाया गया और राखा माइन रेलवे स्टेशन पर बिखरा हुआ पाया गया, जो राज्य की जनता के लिए ठीक नही है। इस महत्वपूर्ण बिंदुओं पर राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार अविलम्ब आवश्यक कदम उठाकर जादूगोड़ा यूरेनियम खदान से हो रहे समस्या के निदान की दिशा में कार्य कर झारखंड के आदिवासी मूलवासी जनता की जान माल की रक्षा करें।

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