पढ़ने को विद्यार्थी नहीं तो प्रोफेसर ने लौटाए वेतन के 23 लाख 82 हजार

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। वैशाली जिला (Vaishali district) के हद में लालगंज प्रखंड का एक ग्राम है शितल भकुरहर। यहां के निवासी एक सामान्य खेतीहर किसान श्रवण सिंह का पुत्र हैं डॉ ललन कुमार। जो मुजफ्फरपुर स्थित नीतीश्वर महाविद्यालय में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर वर्ष 2019 से कार्यरत हैं।

डॉ ललन कुमार इंटर करने के बाद अपने भाई कन्हाई कुमार के पास दिल्ली चले गए, जहाँ उनका बड़ा भाई छोटे मोटे कार्य करते हैं ने दिल्ली विश्वविद्यालय में इनका स्नातक में नामांकन कराया।

अच्छे नम्बरो से स्नातक हिंदी प्रतिष्ठा की परीक्षा पास करने के बाद ललन कुमार ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्कृष्टता के साथ पास की। इसके बाद ललन कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम फील की और दिल्ली के हिन्दू कॉलेज से डॉक्टरेट (PHD) की डिग्री भी प्राप्त किया।

वर्ष 2016 में ललन कुमार को हिन्दू कॉलेज की 112वीं स्थापना दिवस समारोह में पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपिजे अब्दुल कलाम के हाथों एकेडमिक एक्सेलेंस प्रेसिडेंट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया।
एक बिहारी होने के नाते गोलमेडलिस्ट डॉ ललन कुमार बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के उद्देश्य से बिहार लोक सेवा के माध्यम से बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में सेवा देने पँहुचे।

पैरवी के अभाव में वरीयता क्रम में ऊपर रहने के बाबजूद इन्हें नितीश्वर महाविद्यालय में योगदान कराया गया, जबकि पैरवी पुत्रों को पीजी क्लास वाले लंगट सिंह कॉलेज, राम दयालु सिंह कॉलेज तथा महंथ दर्शन दास कॉलेज जैसे नामी गिरामी में योगदान का अवसर मिला।

डॉ ललन कुमार लगभग 3 वर्ष से उक्त (नितीश्वर) कॉलेज में कार्यरत हैं। कॉलेज में हिंदी के लगभग 1100 विद्यार्थी नामांकित हैं, लेकिन कॉलेज में एक दिन भी कोई विद्यार्थी क्लास करने नही आया। इस सम्बंध में डॉ ललन कुमार ने कई बार कुल सचिव से बात किया और दूसरे कॉलेज में अपना स्थानांतरण करने का आग्रह किया, जहाँ पठन पाठन होता हो। लेकिन कुल सचिव ने इनके आग्रह पर कोई ध्यान नही दिया।

गत 3 वर्षों से महाविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर पद पर कार्यरत रहने के बावजूद कॉलेज में पढ़ने को कभी विद्यार्थी नही आने से ललन कुमार घुटन महसूस कर रहे थे। उन्होंने बताया कि इस तरह अगर इस कॉलेज में वह रह गये तो उनकी एकेडमिक मौत हो जाएगी।

इसी घुटन से तंग आकर ललन कुमार ने अप्रत्याशित कदम उठाया और लगभग तीन वर्षों में वेतन के रूप मे मिले 23 लाख 82 हजार रूपये का चेक लेकर विश्वविद्यालय के कुल सचिव ए के ठाकुर को सौंप दिया। ललन कुमार ने ज्ञान और अपने अंतरात्मा की आवाज पर यह कदम उठाया।

उनका कहना है कि जब विध्यार्थी को पद्य नही तो वेतन किस बात का लूँ। डॉ लालन कुमार द्वारा उठाये गए इस कदम से विश्वविद्यालय प्रशासन में खलबली है। ललन कुमार के इस निर्णय ने एक तरह से बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा कर दिया है।

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