बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीत कर मानव जीवन बनता है सुखमय-लक्ष्मणाचार्य

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीत कर हीं मानव जीवन सुखमय और आनंदमय बन जाता है। उक्त बातें सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर स्थित श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् दिव्यदेश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन 20 जुलाई को कहा।

उन्होंने कहा कि बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीत कर मानव जीवन सुखमय और आनंदमय बन जाता है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। कभी हमारे अंदर अच्छे विचारों का चिंतन-मंथन चलता रहता है और कभी हमारे ही अंदर बुरे विचारों का चिंतन चलता रहता है। जिसके अंदर का दानव जीत गया, उसका जीवन दुखी, परेशान और कष्ट-कठिनाइयों से भरा होगा। जिसके अंदर का देवता जीत गया, उसका जीवन सुखी, संतुष्ट और भागवत प्रेम से भरा हुआ होगा।

श्रीराम का धनुष ही कृपा है और बाण पुरुषार्थ

भरत चरित्र का सांगोपांग वर्णन करते हुए स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने कहा कि हमें मालिक नहीं, सेवक बनकर कार्य करना चाहिए, फिर देखिए दरिद्रता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह शरीर ही स्वर्ग, नरक, मोक्ष, ज्ञान, वैराग्य व भक्ति के साधन की सीढ़ी है। जो व्यक्ति इस शरीर रूपी सीढ़ी को जहां लगा देता है, वहीं पहुंच भी जाता है। प्रभु श्रीराम की महिमा का वर्णन करते हुए लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि राम का धनुष ही कृपा है और बाण पुरुषार्थ।

पुरुषार्थ के बिना धनुष सफल नहीं होता। इसी तरह हनुमान भगवान के वह अमोघ बाण हैं, जो अपनी सफलता के मूल में अपनी विशेषता न देखकर केवल भगवान की कृपा को ही देखते हैं। भरत भगवान का राज्य चलाकर प्रवृत्ति करते हैं, पर खुद को मात्र सेवक मानने के कारण वे सदा निवृत्ति में ही परिभ्रमण करते हैं।

यह संसार भगवान का सुंदर बगीचा है

भगवान के चौबीस अवतारों की कथा के साथ-साथ समुद्र मंथन की रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाते हुए लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है। यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न- भिन्न प्रकार के जीवन हैं, अर्थात जीव जन्तु, पेड़ पौधे एवं फूल खिले हैं। जब-जब कोई अपने गलत कर्मो द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है, तब-तब भगवान इस धरा धाम पर अवतार लेकर सजनों का उद्धार, उनके प्राण रक्षा और दुर्जनों का संहार करते हैं।

समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानव के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। कभी हमारे अंदर अच्छे विचारों का चितन मंथन चलता रहता है और कभी हमारे ही अंदर बुरे विचारों का चिंतन होता रहता है। उन्होंने कहा कि जिसके अंदर का दानव जीत गया उसका जीवन दु:खी, परेशान और कष्ट कठिनाइयों से भरा होगा।

जिसके अंदर का देवता जीत गया उसका जीवन सुखी, संतुष्ट और भगवत प्रेम से भरा होगा। इसलिए हमेशा अपने विचारों पर कड़ी नजर रखते हुए बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीतते हुए अपने मानव जीवन को सुखमय एवं आनंद मय बनाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मनुष्यों का क्या कर्तव्य है, इसकी समझ भागवत सुनकर हीं होता है। विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निष्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं।

भगवान के नाम श्रवण से होता व्यक्ति भवसागर पार

जगद्गुरु लक्ष्मणाचार्य महाराज ने भागवत कथा के दौरान कपिल चरित्र, सती अनुसूया चरित्र, ध्रुव चरित्र, प्रह्लाद चरित्र, जड़ भरत चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंगों पर प्रवचन करते हुए कहा कि भगवान के नाम मात्र से ही व्यक्ति भवसागर से पार उतर जाता है। उन्होंने भगवत कीर्तन करने, ज्ञानी पुरुषों के साथ सत्संग कर ज्ञान प्राप्त करने व अपने जीवन को सार्थक करने का आह्वान किया।

कथा के बीच- बीच में उन्होंने भागवत भजन के द्वारा माहौल को भागवत मय एवं भक्ति मय बना दिया। कथा सुनने के लिए आस पास के रहिवासियों की भारी भीड़ उमड़ रही है।

इस उत्सव में यजमान दिलीप झा, फूल झा, रतन कुमार कर्ण, निलीमा, हीरा कुमारी, संजू देवी, उर्मिला देवी, सुषमा ओझा, सुलेखा देवी, सियामणि कुंवर, मीरा कुमारी, रामपरी देवी, गायत्री शुक्ल के साथ पूजन कराते विद्वान पंडित विरेन्द्र शास्त्री, पंडित गोपाल झा, पं. शिव कुमार झा, पं. शिव नारायण शास्त्री के वेदोच्चारण स्वर सुबह नौ बजे से गुंजायमान हो उठा एवं दोपहर दो बजे से सायं छः बजे तक संगीतमय कथा श्रद्धालुओं का हृदय आह्लादित कर दिया।

इस अवसर पर श्रद्धालुओं की सेवा में व्यवस्थापक नन्द कुमार बाबा, मन्दिर मीडिया प्रभारी लाल बाबू पटेल, सरिता देवी, नारायणी आदि तत्परता से लगे रहे।

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