देवोत्थान एकादशी पर सोनपुर में निकली हरिहर क्षेत्र मेला कलश यात्रा

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही देवोत्थान एकादशी के अवसर पर सारण जिला के हद में स्थित विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर के साधु गाछी में श्रीगजेंद्र मोक्ष देव स्थानम दिव्य देश नौलखा मंदिर में हरिहर क्षेत्र मेला कलश यात्रा सह श्रीमहालक्ष्मी नारायण महायज्ञ का शुभारंभ किया गया। इसके साथ ही गैर सरकारी स्तर पर आध्यत्मिक दृष्टि से हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला शुरु हो गया है।

देवोत्थान एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक आयोजित होने वाले श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ व हरिहर क्षेत्र मेला कलश यात्रा का मार्गदर्शन और नेतृत्व श्रीगजेन्द्रमोक्ष देव स्थानम दिव्य देश हरिहरक्षेत्र पीठाधिश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज कर रहे थे। यहां विद्वान पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ महायज्ञ का शुभारंभ किया गया।

इस अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने यज्ञ मंडप की प्रदक्षिण की। जानकारी के अनुसार सर्वप्रथम मंदिर प्रांगण से शोभा यात्रा काली घाट, बाबा हरिहरनाथ मंदिर, मीना बाजार होते सम्पूर्ण मेला क्षेत्र का भ्रमण करते हुए पवित्र नारायणी तट के नौलखा मंदिर घाट पहुंचा। यहां पुनः स्वामी महाराज ने जल मातृका, थल मातृका, स्थल मातृका पूजन कराया। माताओं द्वारा महायज्ञ के लिए जल हरण कर कलश माथे पर लेकर यज्ञ मंडप की परिक्रमा नारायण धुन गाते हुए किया गया।

इस दौरान सभी श्रद्धालुओं को फलाहार कराया गया।बताया जाता है कि 12 नवंबर की सायं छः बजे श्रीतुलसी श्रीशालीग्राम विवाह उत्सव मनाया गया। उपर्युक्त अवसर पर हरिहर क्षेत्र पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा एवं उसके महत्व के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर का फल मिलता है। उन्होंने कहा कि शालिग्राम को ब्रह्माण्ड भूत श्रीनारायण का प्रतीक माना जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी को श्रद्धालु पूरे विधान से तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न कराते हैं।

आज से ही हो गया मांगलिक कार्यों का शुभारंभ

स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने कहा कि देवोत्थान एकादशी के दिन से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। पदम पुराण के अनुसार जो व्यक्ति शालिग्राम भगवान का दर्शन करता है। उनके सामने मस्तक झुकाता है। स्न्नान कराता है और पूजन करता है, वह कोटि यज्ञों के समान पुण्य तथा कोटि गोदानों का फल पाता है।

उन्होंने कहा कि इनके स्मरण, कीर्तन, ध्यान, पूजन और प्रणाम करने पर अनेक पाप दूर हो जाते है। कहा कि जिस स्थान पर शालिग्राम और तुलसी हो तो समझिए कि वहां भगवान श्रीहरि का निवास है और वहीं सम्पूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। उन्होंने बताया कि भगवान शिव ने शालिग्राम की महिमा का गान करते हुए कहा है कि करोड़ों कमल पुष्पों से मेरी पूजा करने पर जो फल प्राप्त होता है, वही शालिग्राम शिला के पूजन से कोटिगुना होकर मिलता है।

मेरे कोटि-कोटि लिंगों का दर्शन, पूजन और स्तवन करने से जो फल मिलता है, वह एक ही शालिग्राम के पूजन से प्राप्त हो जाता है। कहा कि जहां इनका पूजन होता है, वहां किया हुआ दान, स्नान काशी से सौ गुना अधिक फल देने वाला माना गया है। शालिग्राम, तुलसी और शंख को जो व्यक्ति श्रद्धा से सुरक्षित रखता है, उससे भगवान श्रीहरि बहुत प्रेम करते हैं।

श्रीशालिग्राम और श्रीतुलसी का विवाह कार्य संपन्न

बताया गया कि रात्रिकालीन बेला में वैदिक विधि विधान के साथ भगवान श्रीशालिग्राम एवं देवी तुलसी का विवाह संपन्न कराया गया। इस दौरान वेदसम्मत विधिवत पूजन वन्दन किया गया। भगवान श्रीशालिग्राम और श्रीतुलसी का विवाह वेद विधिवत पूजन वन्दन कर मनाने के दौरान महिलाओं ने मांगलिक गीत गाए। उपस्थित श्रद्धावान ने यजमान बनकर कन्यादान का रस्म निभाया।

इस अवसर पर संपूर्ण कार्यक्रम के दौरान मन्दिर प्रबंधक नन्दकुमार राॅय, दिलीप झा, भोला सिंह, सोहन राय, नृपेन्द्र, फूल देवी, रानी राॅय, कुसुम देवी, प्रतिभा पराशर, नारायणी सहित सैकड़ों भक्तगण सम्मिलित थे।

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