गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तान्तरण का कैबिनेट के फैसले पर सरकार ने लगाई रोक

पियूष पांडेय/बड़बील (ओड़िशा)। प्रतिक्रिया के बाद ओडिशा सरकार द्वारा आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने के कैबिनेट के फैसले पर रोक लगा दी गई है।

ज्ञात हो कि, राज्य मंत्रिमंडल ने हाल ही में आदिवासी भूमि को बैंकिंग संस्थानों में गिरवी रखने और उसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने की मंजूरी दी थी। सरकार की भारी आलोचना का सामना करते हुए ओडिशा सरकार ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने के संबंध में कैबिनेट के एक विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी है।

आदिवासी भूमि के हस्तांतरण के संबंध में बीते 14 नवंबर को हुई कैबिनेट बैठक में चर्चा की गई। जिसमें 1956 के विनियमन -2 (ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) विनियमन 1956 में प्रस्तावित संशोधन को रोक दिया गया है।

ओडिशा के राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री सुदाम मार्ंडी ने कहा कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में कैबिनेट ने आदिवासी जमीन को गैर-आदिवासियों को सशर्त हस्तांतरित करने पर सहमति दे दी है।

जिसमें अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति, उप-कलेक्टर की लिखित अनुमति से, सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए उपहार या विनिमय कर सकता है या कृषि, आवासीय घर के निर्माण, बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए सार्वजनिक वित्तीय संस्थान में बंधक सुरक्षित कर ऋण प्राप्त कर सकता है।

स्व-रोज़गार, व्यवसाय या लघु उद्योगों की स्थापना या उपरोक्त उद्देश्य के लिए अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति के समान लाभ हस्तांतरित नहीं करना चाहिए। यह कैबिनेट नोट में कहा गया है।

प्रस्ताव के अनुसार ऐसे स्थानांतरण के बाद व्यक्ति (आदिवासी) भूमिहीन या वासहीन नहीं होना चाहिए। सरकार ने कहा कि यदि उप-कलेक्टर अनुमति नहीं देता है, तो व्यक्ति छह महीने के भीतर कलेक्टर के पास अपील कर सकता है, जिसका निर्णय अंतिम होगा।
वर्तमान में, राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण विनियमन 1956 लागू है।

जिसके तहत आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को देने पर प्रतिबंध है। कैबिनेट नोट के अनुसार वर्ष 2002 में इस अधिनियम में कुछ संशोधन किए जाने के बाद अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति केवल अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है।

अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति अपनी भूमि को केवल कृषि प्रयोजन के लिए किसी भी सार्वजनिक वित्तीय संस्थान के पास गिरवी रख सकता है। इसमें कहा गया है कि ऐसे प्रावधानों के कारण अनुसूचित जनजाति के शिक्षित युवाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था।

आदिवासियों की सुरक्षा कम की गई

कैबिनेट के फैसले की राज्य में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। आदिवासियों को अपनी ज़मीन गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने की अनुमति देने वाला निर्णय आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बाढ़ के द्वार खोल देगा। कॉरपोरेट घरानों और खनन दिग्गजों के लिए जमीन अधिग्रहण करना आसान हो जाएगा।

ओडिशा सीपीआई (एम) सचिव अली किशोर पटनायक ने कहा कि सरकार ने आदिवासियों के लिए सुरक्षा को कम कर दिया है। पटनायक ने कहा कि अच्छी भावना है कि राज्य सरकार ने निर्णय को रोक दिया है। लेकिन, हम तब तक लड़ते रहेंगे जब तक सरकार इसे पूरी तरह से वापस नहीं ले लेती।

आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने से राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में जनसांख्यिकीय चरित्र में बदलाव की संभावना है। नबरंगपुर विधायक और राज्य भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी मोर्चा अध्यक्ष नित्यानंद गोंड ने कहा कि किसी भी आदिवासी संगठन ने आदिवासियों से गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण की मांग नहीं की।

यह आदिवासी जमीन को गैर-ओडिया कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की नवीन पटनायक सरकार की चाल थी। इस फैसले से उन लोगों के हाथों में सैकड़ों एकड़ जमीन नियमित हो जाएगी, जिन्होंने आदिवासी भूमि पर अवैध कब्जा कर रखा है।

गोंड जो जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के सदस्य हैं ने कहा कि आदिवासी भूमि को स्थानांतरित करने के संबंध में परिषद की बैठकों में कभी कोई चर्चा नहीं हुई। इस संबंध में कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है। ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भी कैबिनेट के फैसले को पूरी तरह वापस लेने की मांग की है।

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