श्रीरामकथा के पांचवें दिन यज्ञ स्थल पहुंचे पूर्व सांसद

प्रहरी संवाददाता/बोकारो। बोकारो जिला के हद में बेरमो तथा गोमियां प्रखंड के सीमांकन पर स्थित कथारा चार नंबर में बीते 30 जनवरी से 5 फरवरी तक आयोजित श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ को लेकर 3 फरवरी को पूर्व सांसद रविंद्र कुमार पांडेय तथा भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य विनय सिंह यज्ञ स्थल पहुंचे। यहां उन्होंने यज्ञ स्थल पर शीश नवाकर क्षेत्र में शांति, सुख, समृद्धि की कामना की।

इस अवसर पर चित्रकूट से आए कथावाचक उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने श्रीरामकथा के पांचवें दिन राम वन गमन की कथा सुनाते हुए कहा कि राम का अर्थ है राष्ट्र का मंगल। यानि जिनसे राष्ट्र का मंगल होता है, वे राम हैं। उन्होंने कहा कि राम ने पूरे भारतवर्ष से आतंकवाद को समाप्त करने के लिए वनवास स्वीकार किया। पिता ने कभी मुँह खोलकर उन्हें वन जाने के लिए नहीं कहा, लेकिन धन्य हैं श्रीराम, जिन्होंने स्वयं कष्ट सहकर अपने पिता को कलंकित होने से बचा लिया।

आचार्य जी ने कहा कि पुत्र का यही कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता को ईश्वर मानकर उनके वचनों का पालन करे। अयोध्या की सारी जनता श्रीराम के पक्ष में थी। केवल मंथरा और कैकेयी के विरोध करने के कारण श्रीराम ने अयोध्या का सिंहासन ठुकरा दिया। इसलिए वे मर्यादा पुरषोत्तम कहलाये।

उन्होंने कहा कि राजनेताओं को श्रीराम से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। आज के समय में एक सीट अधिक या कम हो जाने पर सरकार बन जाती है और गिर जाती है। किसी भी तरह सत्ता प्राप्त करना ही आज की राजनीति का मुख्य उद्देश्य बनकर रह गया है। श्रीराम ने अपने पक्ष में बहुमत होते हुए भी राज्य सिंहासन को स्वीकार नहीं किया।

जब तक त्याग और सेवा की भावना मन में नहीं आएगी, तबतक शुद्ध राजनीति नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि श्रीराम की वनवास यात्रा को मंगल यात्रा कहा जा सकता है। राष्ट्र का मंगल करने के लिए ही उन्होंने इस यात्रा को प्रारंभ किया। इस यात्रा में श्रीराम ने समाज के पिछड़े वर्ग को गले लगाया।

निषाद राज से मिले और केवट से अपने चरण धुलवाकर उसे गले लगाया। आगे चलकर चित्रकूट में कोल, भील और वनवासियों के बीच जाकर निवास किया। जटायु को पिता का दर्जा दिया और शबरी को मां कहकर पुकारा। शबरी के जूठे बेर खाकर श्रीराम ने भक्ति के महत्व को बढ़ाया।

उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने कहा कि इस प्रकार यह यात्रा राष्ट्र को एक करने की यात्रा थी। भरत चरित्र सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जो सबके मन को राम प्रेम से भर दे, उन्हें भरत कहते हैं। भरत जैसा भाई हो जाए, तो घर घर का झगड़ा ही समाप्त हो जाए।

जैसे राम ने अपने अधिकार का राज्य छोड़ दिया, वैसे हीं भरत जी ने भी अयोध्या के सिंहासन पर बैठने से मना कर दिया। आज एक इंच जमीन के लिए हाई कोर्ट जाने वाले भाईयों को भरत जी से शिक्षा लेनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि रामायण का हरेक पात्र त्याग की मूर्ति है। यहाँ राम ने त्याग किया। सीताजी ने त्याग किया। भरत जी ने त्याग किया। हनुमान् जी ने त्याग किया। विभीषण आदि ने भी त्याग किया। जिसके जीवन में त्याग है। सन्तोष है वही सुखी है। अन्यथा, करोड़ों अरबों की संपत्ति पाकर भी व्यक्ति असंतुष्ट और दुखी ही रहता है।

धन जीवन के लिए अति आवश्यक है, पर धन ही सबकुछ नहीं है। सुदामा के पास धन नहीं था, तो भी वो सुखी थे, क्योंकि वे ईश्वर की भक्ति में लीन थे। यदि, हम भी अपने जीवन में ईश्वर से सच्चे मन से जुड़ जाएं, तो सभी अभावों का नाश हो जाएगा। कथा के बीच में अनेक नए और मधुर भजन प्रस्तुत किए गए।

हारमोनियम पर अविनाश और शशांक सानोदिया, तबला पर छत्रपाल बिसेन, बेंजो पर राजा और पैड पर सिद्धू ने संगति की। कथा विश्राम में आरती का आयोजन किया गया और प्रसाद का वितरण हुआ। इस अवसर पर यज्ञ समिति के सचिव अजय कुमार सिंह, चंद्रशेखर प्रसाद, एम एन सिंह, वेदब्यास चौबे सहित सैकड़ो श्रद्धालू गण उपस्थित थे।

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