बिरजू महाराज को अपना आदर्श मानती हैं मशहूर कथक नृत्यांगना डॉ ममता टंडन

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। युपी के बनारस घराने की कत्थक नृत्यांगना डॉ ममता टंडन पंडित बिरजू महाराज को अपना आदर्श मानती हैं। उन्होंने देश के मशहूर नृत्य घरानों की चर्चा करते हुए कहा कि नृत्य में तीन घराना जयपुर, लखनऊ व बनारस है। कत्थक के रुप में लखनऊ को मुख्य माना जाता है।

उन्होंने घरानों की पहचान की बारीकी से जानकारी देते हुए बताया कि लड़की जब नृत्य करते करते पुरुष नजर आये तो उसे बनारस घराना कहा जाता है। जब पुरुष नृत्य करते करते स्त्री नजर आने लगे तो वह लखनऊ का कत्थक माना जाता है। जयपुर का कत्थक नृत्य चक्कर के लिए मशहूर है। उन्होंने बताया कि बनारस घराने का नृत्य तीनों घरानो का सम्मिश्रण है।

डॉ ममता टंडन 7 अगस्त को सारण जिला के हद में सोनपुर स्थित बाबा हरिहरनाथ मंदिर के अतिथि कक्ष में मुम्बई से प्रकाशित साप्ताहिक *जगत प्रहरी* के सारण जिला संवाददाता से एक विशेष मुलाकात में उपरोक्त बातें कहीं।

प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनपुर स्थित लोकसेवा आश्रम में स्व. बाबा रामलखन दास की 54वीं पुण्यतिथि एवं 83वें संगीत, वाद्य एवं नृत्य सम्मेलन में भाग लेने पहुंची हैं। इनके साथ कार्यक्रम में शामिल होने आए पंडित रविशंकर मिश्र, तबले पर पंडित भोलानाथ मिश्र, प्रीतम मिश्र, सागर मिश्र एवं अंकित मिश्रा भी मौजूद थे।

वे बताती हैं कि अपने पिता बृजकिशोर टंडन की प्रेरणा से वे कत्थक नृत्य में पारंगत हासिल की। नृत्य की प्रारंम्भिक शिक्षा उन्होंने कत्थक कि दिग्गज कलाकार सितारा देवी के भाई दुर्गा प्रसाद से ली। इसके बाद उन्होंने नृत्यांगना अलखनंदा से कत्थक की बारीकियां सीखी। वह गुरू भोलानाथ मिश्र से भी इसकी शिक्षा ग्रहण की है।

डॉ ममता टंडन का कहना है कि एक सफल कलाकार बनने के लिए सबसे बड़ी चीज यह कि वह जिस क्षेत्र में है उसमें प्रेम होना चाहिए। ममता टंडन आज भी रोज तीन-चार घंटे रियाज करती हैं।

वे काशी में आयोजित होने वाले विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर अपना कत्थक नृत्य पेश कर चुकी है। शहर का कोई भी संगीत समारोह ऐसा नहीं होगा, जहां पर उनका नृत्य का आयोजन न हुआ हो। डेढ़ माह पहले उन्होंने स्वीडेन में कत्थक नृत्य कार्यक्रम पेश कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

डॉ ममता कहती हैं कि वह कत्थक में पं. बिरजू महाराज को अपना आदर्श मानती है। नृत्य में कौन- कौन सा पक्ष मजबूत होना चाहिए के जबाब में उनका कहना था कि नृत्य में तीन घराना जयपुर, लखनऊ व बनारस है। कत्थक के रूप में लखनऊ को मुख्य माना जाता है।

लड़की जब नृत्य करते- करते पुरूष नजर आये तो उसे बनारस घराना कहा जाता है। जब पुरुष नृत्य करते- करते स्त्री नजर आने लगे तो वह लखनऊ का कत्थक माना गया है। जयपुर का कथक चक्कर के लिए मशहूर है। बनारस घराने का डांस तीनों का सम्मिश्रण है। यहां के नृत्य को देख कर कोई भी बोर नहीं होता। उन्होंने बताया कि वे पिछले 15 सालों से कत्थक नृत्य कर रही है।

अविस्मरणीय घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जब वे न्यूजीलैंड गयी थी तो वहां हाल में लगभग 20 हजार दर्शक मौजूद थे। नृत्य के बाद सभी ने उनके नृत्य को काफी सराहा। सच पूछिये उस समय काफी अच्छा लगा। वे कहती है कि कत्थक तो एक साधना है।

आज के कलाकार छह माह में ही सीख कर बड़ा कलाकार बनना चाहते हैं। कत्थक की पुरानी परम्परा क्या लुप्त हो रही है के संबंध में उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा नहीं है। काशी शुरू से ही कला, संस्कृति व संगीत का गढ़ रही है। यहां पर संगीत व नृत्य की परम्परा कभी समाप्त नहीं हो सकती है।

उन्होंने बताया कि आज कत्थक कलाकारों को सरकार की ओर से कोई भी सहयोग नहीं मिल रहा है। वे कहती है कि वह कथक को और भी ऊंचाई पर ले जाना चाहती है। आज भी लोग कत्थक देखना पसंद करते हैं। कत्थक नृत्य को विदेशों में भी काफी प्रसिद्धि मिली है। लेकिन जो प्यार अपने देश में है, वह विदेश में नहीं।

संध्या बेला कार्यक्रम में डॉ ममता टंडन के साथ आए कलाकार पंडित रवि शंकर मिश्र, तबले पर पंडित भोला नाथ मिश्र, प्रीतम मिश्र, सागर मिश्रा, अंकित मिश्रा ने संगत की।

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