भागवत की कथा श्रवण से धुंधकारी को प्रेत योनि से मुक्ति मिली-महराज

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। मनुष्य को अपने माता, पिता का कभी भी अनादर नही करनी चाहिए। तुलसी दास कृत मानस के श्रीराम प्रातः उठते ही माता, पिता के चरणों में शीश नवाते थे। माता, पिता के अनादर करने से संतान कभी भी सुखी नही रह सकता।

माता, पिता की सेवा से आयु, विद्या, यश आदि में बढ़ोत्तरी होती है।
यह उक्ति है बृंदाबन धाम के श्रद्धेय आचार्य परमानंद ठाकुर जी महराज का। वे पेटरवार प्रखंड के हद में अंगवाली गांव के मंडपवारी स्थित धर्मस्थल पर आयोजित श्रीमद भागवत कथा ज्ञान सप्ताह के दौरान तृतीय रात्रि प्रवचन कर रहे थे।

उन्होंने प्रेत योनि में भ्रमण कर रहे ‘धुंधकारी’ की कथा विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि ब्राम्हण परिवार में माता धुंधली की कोंख से जन्म लिये धुंधकारी बड़ा ही व्यभिचारी निकला। उसने माता, पिता को हमेशा प्रताड़ित करता और मनमानी करते हुये घर पर वैश्याओं को लाने लगा।

उसके माता, पिता की मृत्यु उपरांत वैश्याओ ने उसकी हत्या करके घर के कमरे में ही दफन कर दिया। अनाचार व व्यभिचार में सदा लिप्त रहने वाला धुंधकारी मृत्यु बाद प्रेत योनि में तड़पता रहा। उसके विनती पर गौमाता से जन्म लिए गौकर्ण ने ही उसे भागवत कथा आयोजन कर उसे श्रवण करने में सहायता की। इस तरह धुंधकारी प्रेत योनि से मुक्ति पाकर परम धाम को प्राप्त हुआ।

आचार्य श्रद्धेय ने भक्ति, ज्ञान, वैराग मनुष्य में कैसे जागृत हो, सविस्तार से बताया। आज प्रवचन के दौरान पुरुषों से अधिक महिला श्रोता उपस्थित थीं। गायन शैली में कथा वाचन एवं वाद्ययंत्रों की झंकार से श्रोता झूम उठे। इधर आयोजन कमिटी के लोग व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखा।

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