हरिहरक्षेत्र की बंद पंचकोसी एवं 14 कोसी परिक्रमा होगी चालू

यात्रा प्रारंभ करने को लेकर संकल्प बैठक आज

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। हरिहरक्षेत्र की बंद पड़ी पंचकोसी एवं 14 कोसी परिक्रमा चालू किया जायेगा। इसे लेकर 20 अगस्त को यात्रा प्रारंभ करने को लेकर संकल्प बैठक का आयोजन किया गया है।

हिंदू जागरण मंच के प्रांत संयोजक विनोद कुमार सिंह यादव ने 19 अगस्त को कहा कि सारण एवं वैशाली जिला के हद में अवस्थित हरिहरक्षेत्र की बंद पंचकोसी एवं चौदह कोसी परिक्रमा पुनः आरंभ होगी। इसके लिए तैयारी चल रही है।इसे लेकर 20 अगस्त को बाबा हरिहरनाथ मंदिर सभागार परिसर में संकल्प बैठक का आयोजन किया गया है।

उन्होंने कहा कि पिछले हजार वर्षों तक भारत को पूर्ण रूप से गुलाम बनाने तथा यहां की संस्कृति को नष्ट कर अरबी साम्राज्यवाद थोपने का असफल प्रयास होता रहा है, जिसके कारण बहुत सारी परंपराएं ध्वस्त हो गईं। उनमें पंचकोसी एवं चौदह कोसी परंपरा भी शामिल है।

प्रांत संयोजक यादव ने कहा कि शिक्षा के केंद्र नालंदा, तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय, करोड़ों अनमोल ग्रंथों को जलाया गया। सैकड़ो श्रद्धा के केंद्र को तोड़ दिए गए। पारंपरिक त्यौहार उत्सव यात्रा परिक्रमाओं पर सख्ती से रोक लगाने की कोशिश की गयी।

जजिया कर लगाकर आर्थिक शोषण किया गया। अखंड भारत को खंडित किया गया।उन्होंने कहा कि 14 अगस्त 1947 की आधी रात भारत को मिली खंडित स्वतंत्रता प्राप्त हुई, जिसके 77 वर्ष अब पूरे हो गए हैं।

राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित सुरक्षित करने की दिशा में बढ़ते हुए हरिहरनाथ मुक्तिनाथ यात्रा, महुआ बाया नदी से बाबा बटेश्वर नाथ की काँवड़ यात्रा, बाबा बूढा अमरनाथ राजोरी कश्मीर की यात्रा, श्रीराम वन गमन मार्ग तथा सीता राम विवाह मार्ग का उद्धार, अयोध्या से जनकपुर की राम विवाह बरात यात्रा, पूर्वांचल का परशुराम कुंड अरुणाचल यात्रा, काशी की परिक्रमा जैसे अनेकों यात्राओं की पुनः शुरुआत कर हम अपने सांस्कृतिक धरोहरों की जड़ों में लौट रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने जम्बू द्वीप, आर्यावर्त, भारतखंड को सात धार्मिक क्षेत्रों में स्थापित किया। हरिहरक्षेत्र उन सात में से एक प्रमुख धार्मिक क्षेत्र है, जिसका अपना महात्म्य है। यह हरि और हर की समन्वय भूमि तथा जीवरक्षा की उद्घोषणा भूमि मानी जाती है।

इसी कारण यहां करुणा के प्रतीक महावीर ने जन्म लिया तथा बुद्ध ने अपना कर्म क्षेत्र बनाया। बाबा भूमिया बसावन जिन्हें पशु रक्षक लोक देवता कहते हैं उनका जन्म एवं कर्मभूमि यहीं रही। चतुरी महतो ने गोवंश रक्षा हित अपने दो युवा पुत्रों के साथ फांसी पर चढ़कर इस जीव रक्षा भूमि के इतिहास को अमर कर दिया।

यादव के अनुसार भारत का मनुष्य ही नहीं, यहां की जीव प्राणियों में भी धार्मिकता कूट-कूट कर भरी हुई है। गज-ग्राह की मुक्ति क्षेत्र में जीवों के वंशजों ने ईश्वरीय ऋण से मुक्ति के लिए हर वर्ष हरिहरक्षेत्र पहुंचकर इस दिव्य माटी पर मस्तक टेकते रहे। उन्होंने कहा कि इसी कारण यह संसार का एकमात्र सबसे बड़ा पशु मेला भी कहा जाने लगा। यहां पशु अपने पालकों का हाथ थामें यहां तक पहुंचते हैं।

यहां यह भी मान्यता रही है कि हरिहर क्षेत्र से खरीदा गया पशुओं में धार्मिक लक्षण प्रकट हो जाते हैं, जिससे खरीद करने वालों का घर आंगन भी पवित्र तथा समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है। इसलिए संसार में सबसे ज्यादा पशुओं को खरीदने के लिए आमजन यहां पधारते रहे।
उन्होंने बताया कि हरिहर क्षेत्र गंगा नदी के उत्तर से प्रारंभ होकर नेपाल तथा तिब्बत क्षेत्र तक इसकी सीमा मानी गई है।

अनादिकालीन स्वयं विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हरिहर नाथ मंदिर तथा गज ग्राह की युद्ध क्षेत्र जहां दोनों जीव को भगवान विष्णु हरि ने स्वयं प्रकट हो मोक्ष प्रदान किया। जिस युद्ध में गज ग्राह में से किसी की न हार हुई न जीत हो सकी। यह प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। कौन जीता और कौन हारा?

ऐसे दिव्य गंगा नारायणी का संगम तट ऐतिहासिक कौनहारा घाट जिसकी मान्यता है कि यह मुक्त क्षेत्र है, इसलिए इसके आसपास के जिले ही नहीं बल्कि बिहार और इसके बाहर से भी रहिवासी अपने परिजनों का पार्थिव शरीर लेकर यहां अंतिम संस्कार इस विश्वास से करते हैं कि मुक्त क्षेत्र कौनहारा घाट में हमारे परिजन को मुक्ति प्रदान होगी। उन्होंने कहा कि इस दिव्य धार्मिक क्षेत्र की परिक्रमा करने के लिए स्वयं देवता भी लालायित रहते हैं।

वे किसी न किसी रूप में इस परिक्रमा में स्वयं भाग लेते रहे हैं। हजारों लाखों धार्मिक लोगों की हरिहर क्षेत्र पंचकोशी ,14 कोसी एवं 84 कोसी परिक्रमा कर जीते जी मुक्ति मिलती है। इस मान्यता के साथ कष्ट साध्य परिक्रमा कर अपने जीवन को धन्य मानते रहे।

अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, नंदगांव, ब्रज, चित्रकूट की कामता गिरी पर्वत, उज्जैन, पुष्कर तीर्थ, नर्मदा नदी तथा द्वारका की परिक्रमा की भांति ही अपने दिव्य हरिहर क्षेत्र की धार्मिक आध्यात्मिक पंचकोशीय एवं 14 कोसी परिक्रमा को पुनः प्रारंभ कर यात्रा से सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य, धार्मिक चैतन्यता को प्राप्त करने तथा भावी पीढ़ी को अपने पूर्वजों की दिव्य विरासत सौंपने के लिए ही हरिहर नाथ मंदिर सभागार में 20 अगस्त को दोपहर 2 बजे से उपस्थित होकर चिंतन एवं यात्रा प्रारंभ करने का संकल्प लेने का लक्ष्य है।

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