हरिहरक्षेत्र मेला के श्रीवृद्धि में सुहागिनों के सिंदूर का बड़ा योगदान

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेला सिंदूर की खरीद बिक्री के लिए भी मशहूर है। खूबसूरती बढ़ाने में सिंदूर दुकानों का बड़ा योगदान है।

इस बार मेले में लखीसराय के कारखानों में निर्मित सिंदूर की दो स्टॉल सहित छह दर्जन छोटे दुकानों में सिंदूर की खरीद बिक्री हो रही है। मेले में सिंदूरों की खरीद बिक्री में 90 फीसदी महिलाओं की ही भागीदारी झलक रही है।

मेले के मीना बाजार सिंदूर चौक पर लखीसराय की ड्रोलिया कंपनी के सिंदुरों की पहले खूब दुकानें सजती थीं। कहते हैं कि लखीसराय की ड्रोलिया कंपनी आरंभिक दौर में अपने सिंदूर के प्रचार प्रसार के लिए सोनपुर मेला में कई स्टॉल लगाया करती थी, जिसमें स्थानीय रहिवासियों की सहभागिता होती थी। आज भी ड्रोलिया के लगे दो स्टॉल में भी स्थानीय रहिवासियों की ही पहल है। वे उक्त स्टॉलो पर सिंदूरों की बिक्री करते दिख रहे हैं।

राधे कृष्ण ड्रोलिया सिंदूर इंडस्ट्रीज लखीसराय बाबा ब्रांड के सिंदूर स्टॉल पर सोनपुर के रहिवासी आदर्श कुमार द्विवेदी मिलते हैं। उन्होंने बताया कि उनके स्टॉल पर एक से बढ़कर एक और खूबसूरत डिजाइन में डब्बे में बंद सुखा सिंदूर की बिक्री हो रही है। इसके अतिरिक्त लिक्विड सिंदूर भी बिक्री के लिए उपलब्ध है।

इन सिंदूरों में दुल्हन महज 35 रुपए में बिक रही है, कलश 35, शिव लिंग, गणेश, ममता बड़ा, ममता शंख, ड्रोलिया बेलपत्र सिंदूरों की कीमत 20-20 रुपए है, जबकि आकर्षण का किया ₹30, ब्लू हैवन ₹30, ममता छोटा सिंदूर ₹15 में बिक रही है।

उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त ड्रोलिया बेलपत्र डिस्प्रो सिंदूर डिब्बे की कीमत महज 35 रुपया है, जिसमें 12 पैकेट और वजन 200 ग्राम है। ड्रोलिया का ब्लू हैवन उत्सव लिक्विड ₹40 और सौभाग्य सिंदूर की कीमत 60 रुपए है। इस स्टॉल पर शंखा चूड़ी ₹30 एवं शंखा पोला चूड़ी 30 रुपए जोड़ा बिक्री हो रही है। 10 रुपए में बिंदी भी मिल रही है।

यहां सिंदूर का दूसरा स्टॉल सोनपुर के सत्यप्रकाश द्विवेदी की है, जिसमें एक महिला सिंदुर की बिक्री कर रही है। इस स्टॉल पर भी लगभग इसी तरह की सिंदूरों की बिक्री हो रही है। ऐसे दर्जनों सिंदूर विक्री स्टॉल यहां देखने को मिल रहा है।

सनातन संस्कृति का श्रृंगार है सिंदूर

विश्व में सनातन संस्कृति का जहां कहीं भी थोड़ा सा भी अंश विद्यमान है, वहां सिंदूर का सम्मान कायम है। इसे सनातन संस्कृति और धर्म के विशिष्ट संस्कारों में से एक माना जाता है। ऋषि मुनियों ने जब मांग में सिंदूर डालने की व्यवस्था की तो उसमें महिलाओं के हित की भी बात जुड़ी थी। सिंदूर में पारा नामक धातु की उपस्थिति से महिलाओं को मानसिक शांति प्राप्त होती है।

पारा धातु मस्तिष्क से जुड़े सभी रोगों में होमियोपैथ की तरह धीरे धीरे असर करता है और महिलाएं मानसिक रुप से स्वस्थ महसूस करती हैं। सिंदूर को माता लक्ष्मी के सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है। सिंदूर दान का संस्कार पूर्ण होने के बाद ही गृहस्थ जीवन की गाड़ी का पहिया आगे बढ़ता है।

ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग में सीता स्वयंवर के बाद सिंहोरा में रखे सिंदूर से ही श्रीराम ने अपनी अर्धांगिनी सीता को सिंदूर दान किया था। माता सीता द्वारा श्रीराम भक्त हनुमान के सीने पर सिंदूर लेपन की बात भी बताई जाती है। हिन्दू आस्था के अनुसार पूजा पाठ से लेकर सिंदूर दान तक इसी सिंदूर का महत्व माना जाता है।

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