लोकसेवाश्रम में बाबा भगेश्वरनाथ शिवलिंग स्वरुप में स्थापित हैं भोले भंडारी

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में भारत के सप्त महा क्षेत्रों में से एक हरिहरक्षेत्र सोनपुर के लोकसेवा आश्रम में बाबा भगेश्वरनाथ शिवलिंग के रुप में भोले भंडारी विराजमान है। जिसके कारण श्रावण माह में यह आश्रम और मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

श्रावण माह में बाबा हरिहरनाथ का जलाभिषेक करनेवाले भक्तगण यहां भी पूजा-अर्चना कर बाबा भगेश्वरनाथ पर जलाभिषेक कर रहे हैं। शिव लिंग के ठीक पीछे पश्चिमाभिमुख देवी पार्वती की करबद्ध मुद्रा में ध्यान लीन सात्विक प्रतिमा स्थापित है, जो दिव्य आभा मंडल से परिपूर्ण है।

लोक सेवाश्रम के पुराने मूल मंदिर के गर्भगृह में अवस्थित शिव लिंग की अपनी व्यापक महिमा है। उदासीन संतों के मार्गदर्शन में स्थापित इस शिव लिंग पर गंगा जल से जलाभिषेक करने, रुद्राभिषेक एवं दुग्धाभिषेक करने से भक्तों की सभी इच्छीत मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी संकटों का निवारण हो जाता है।

यह अपने आप में अलौकिक शिव लिंग है, जिसमें देवी आदिशक्ति पार्वती स्वयं कर बद्ध विराजमान हैं। जो देवी का फलदायक स्वरुप है। भक्तों को इस मंदिर के भीतर पूजा के दौरान आत्मिक शांति मिलती है, क्योंकि भगवान श्रीविष्णु का भी यहां आश्रय है। यह कह सकते हैं कि भगवान श्रीविष्णु यहां प्रतिमा एवं भोले शंकर शिव लिंग स्वरुप में इस मंदिर में भी विराजमान हैं। इसलिए इसकी महिमा का गान भक्तों की जुबान पर बढ़-चढ़ कर बोल रहा है।

शिव लिंग का है अपना अलौकिक रहस्य-संत विष्णुदास उदासीन

लोक सेवाश्रम के व्यवस्थापक संत विष्णुदास उदासीन उर्फ मौनी बाबा बताते हैं कि शिव लिंग वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दोनों रहस्यों से परिपूर्ण है। मौनी बाबा लिंग पुराण का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भगवान महेश्वर अलिंग हैं।

प्रकृति प्रधान ही लिंग है। महेश्वर निर्गुण हैं।प्रकृति सगुण है। प्रकृति या लिंग के ही विकास और विस्तार से विश्व की सृष्टि होती है। सारा ब्रह्मांड लिंग के अनुरुप ही बनता है। ब्रह्मांड रुपी ज्योतिर्लिंग अनन्त कोटि है।

उन्होंने बताया कि संसार में जितने भी लिंगों की श्रेणियां हैं वे सभी सृष्टि- लिंग के अधीन है, लिंगमय है। अंत में लिंग में ही सारी सृष्टि का लय भी होता है। वे स्कंद पुराण के एक श्लोक में व्यक्त रहस्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहते हैं कि आकाशं लिङ्गमित्याहुः पृथिवी तस्य पीठिका।

आलयः सर्वदेवानां लयनालिङ्गमुच्यते। यानी आकाश लिङ्ग है, पृथवी उसकी पीठिका है, सब देवताओं का आलय है। इसमें सबका लय होता है। इसीलिये इसे लिङ्ग कहते हैं।

मंदिर के अर्चक पंडित अनिल झा शास्त्री भी स्कंद पुराण के हवाले से ही कहते हैं कि लयनालिंगमुच्यते अर्थात लय या प्रलय होता है। इसी से उसे लिंग कहते हैं। अतः लय से ही लिंग शब्द का उद्भव है। उससे लय या प्रलय होता है। उसी में सम्पूर्ण विश्व का लय होता है। उन्होंने कहा कि भगेश्वरनाथ शिवलिंग भी उसी का प्रतीक है।

क्या कहते हैं बाबा भगेश्वरनाथ के भक्तगण

भक्तजनों की बाबा हरिहरनाथ की तरह ही बाबा भगेश्वरनाथ में बड़ी आस्था है। झारखंड की राजधानी रांची निवासी लोकसेवा आश्रम के परम भक्त अनिल सिंह गौतम कहते हैं कि इस आश्रम के कण-कण में परम तत्त्व का निवास है। शिव की सत्ता हर जगह है। इस मंदिर में स्थापित शिव लिंग के दर्शन-पूजन से असीम शांति का बोध होता है।

बिहार की राजधानी पटना जिला के हद में फतुहां के पचरुखिया निवासी मंदिर के कानूनी परामर्शदाता व अधिवक्ता भक्त विश्वनाथ सिंह बताते हैं कि यहां के कण कण में शिव का वास है। सारण जिला के हद में बरबट्टा निवासी शिव भक्त अधिवक्ता अभय कुमार सिंह कहते हैं कि यह आश्रम पूर्ण संत तीर्थ है, जहां शिव सहित सभी देवी-देवताओं का सूक्ष्म रुप से विचरण होता है।

पटना सिटी निवासी भक्त हरिमोहन यादव कहते हैं कि यह शिव लिंग सभी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति करता है।सबलपुर वासी भक्त सत्येन्द्र शर्मा उर्फ सत्तन जी की भी भगेश्वर नाथ महादेव में पूर्ण आस्था है।

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