वर्तमान समय में झारखंड में विकास के दावे खोखले है-विजय शंकर नायक

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। बजट की राशि बढ़ाने से ही झारखंडी जनता का भला नहीं होने वाला है। बजट का शत प्रतिशत राशि जन हित में खर्च किए जाने से ही राज्य के गरीब गुरबा झारखंडी समाज का भला हो सकता है।

उपरोक्त बातें 27 फरवरी को संपूर्ण भारत क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सह प्रभारी झारखंड व् छत्तीसगढ़ विजय शंकर नायक ने झारखंड विधानसभा में वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव द्वारा अंतरिम बजट पेश किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया में कही।

नायक ने कहा कि झारखंड सरकार ने 1.28 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। यह पिछले वार्षिक वित्तीय विवरण से 10 प्रतिशत से अधिक है। कहा कि वर्तमान समय में झारखंड में विकास के दावे खोखले साबित हो रहा है।

उन्होंने कहा कि यह सरकार बजट तो लंबा चौड़ा हजारों करोड़ो राशि की बनाती तो है, मगर खर्च करने में फिसड्डी साबित होती रही है। कहा कि इससे पूर्व वित्त वर्ष 2023-24 के बजट के प्रावधानों पर एक सरसरी नजर देखी जाए तो 116,418 करोड़ रुपए के कुल बजटीय प्रावधान किया गया था। जिसमें से विकास योजनाओं पर 70973 करोड़ खर्च करने की योजना बनाई गई थी।

सरकार इस साल जनवरी माह तक विकास योजनाओं पर सिर्फ 44546.65 करोड़ रूपया ही खर्च कर पायी है, जो मात्र जनवरी तक 54 फ़ीसदी राशि खर्च होने एवं 16500 करोड़ रूपया संरेंडर होने की संभावना बनी हुई है।

ऐसे में सरकार द्वारा सिर्फ बजट के राशि का वृद्धि कर देने से झारखंड के दलित, आदिवासी, मूलवासी, मजदूर, किसान, छात्र, युवा, नौजवान को लाभ नहीं मिलने वाला है। नायक ने आगे कहा कि राजद- कांग्रेस- झामुमो महागठबंधन की सरकार का यह अंतिम बजट होगा, क्योंकि इस सरकार ने झारखंडी समाज के विकास के साथ
विश्वासघात करने का कार्य किया है।

कहा कि झारखंड के विकास संबंधी आकांक्षाओं की गाथा में टूटे हुए वादों और अधूरी संभावनाओं की कहानी छिपी है, जहां प्रगति के लिए करोड़ों-अरबों रुपये समर्पित करने की गूंज बदलाव के शोर से कहीं अधिक तेज है।

राजकोषीय कुप्रबंधन और अव्ययित बजट आवंटन की कहानी शासन की विफलताओं का एक मार्मिक आरोप है, जो झारखंड की गरीब जनता के लिए अभाव और हाशिए पर रहने के चक्र को कायम रखती है। उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 23-24 के बजट ने आवंटित धनराशि का केवल 54 प्रतिशत उपयोग होने के साथ, राज्य अपने दलित आबादी को गरीबी और उपेक्षा के दलदल से बाहर निकालने का एक और अवसर गंवाने के कगार पर खड़ा कर दिया है।

नायक ने कहा कि क्रमिक शासनों में, चाहे वह भाजपा-आजसू गठबंधन हो या झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन, विकास की बातें खोखली हो गई हैं। खर्च न किए गए धन और टूटी हुई आकांक्षाओं के भूत ने इसे ढक दिया है। सार्थक परिवर्तन को प्रेरित करने के बजाय, सरकारों ने विकास के लिए निर्धारित बड़ी रकम को समर्पित करने की परंपरा स्थापित कर दी है।

जिससे झारखंड गरीबी, बेरोजगारी और निराशा के निरंतर चक्र में फंसते चला गया है। उन्होंने कहा कि आंकड़े इस प्रणालीगत विफलता के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। नौकरशाही की अयोग्यता और सरकारी उदासीनता की भयावह तस्वीर पेश करते हैं। कहा कि जिन विभागों को विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था, वे अक्षमता के दलदल में फंस गए हैं।

शर्मनाक व्यय आंकड़े उपेक्षा की गहराई को उजागर करते हैं। इस राजकोषीय अस्वस्थता का प्रभाव बजटीय आवंटन के दायरे से कहीं आगे तक फैला है, जिससे बेहतर कल की चाह रखने वाले लाखों झारखंडियों की आकांक्षाओं पर निराशा की लंबी छाया पड़ रही है।

अपने आंतरिक संसाधनों का दोहन करने, जवाबदेही तंत्र को मजबूत करने और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार पर है कि विकास के लिए आवंटित प्रत्येक रुपया अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करे। केवल ठोस कार्रवाई और अपने नागरिकों के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से ही झारखंड अविकसितता की बेड़ियों को पार कर समृद्धि और प्रगति की ओर रास्ता बना सकता है। आधे-अधूरे उपायों और खोखले वादों का समय बीत चुका है।

कहा कि झारखंड की आम जनता एक ऐसी सरकार की मांग करते हैं जो इसके हकदार हैं। जो जवाबदेह, पारदर्शी और उनके कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो। यह राजनीतिक नेतृत्व का दायित्व है कि वह इस स्पष्ट आह्वान पर ध्यान दे।

बजटीय आवंटन को सरेंडर करने की संस्कृति को त्यागे और सभी झारखंडियों के लिए उज्जवल, अधिक न्यायसंगत भविष्य की दिशा में नया रास्ता तैयार करे। इससे कम कुछ भी विश्वास के साथ विश्वासघात, लाखों जनों की आकांक्षाओं के साथ अन्याय और राष्ट्र की अंतरात्मा पर दाग होगा।

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