अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी

10 जुलाई को होगी ईद-उल अजहा की नमाज और कुर्बानी

मुश्ताक खान/मुंबई। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक बकरीद का त्यौहार अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देना सबसे अफजल है। इसकी शुरुआत हजरत इब्राहिम के दौर से हुआ, वे 80 साल की उम्र में पिता बने थे। उनके बेटे का नाम इस्माइल था।

हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे। एक दिन उन्हें ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए। इस्लाम के जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का फरमान था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया।

इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद पैगंबर के अनुयायी बकरा ईद के दिन से और दो दिनों तक कुर्बानी करते रहते हैं। पिछले दो वर्षों में कोरोना की वजह से यह उत्सव कम दिखाई दिया। इस वर्ष काफी लोग उत्साहपूर्वक बकरा ईद मना रहे हैं।

कोंग्रेसी नेताओं ने किया कत्लखाने का दौरा

गौरतलब है कि एशिया महादेश (Asia Continent) का सबसे बड़ा कत्लखाना (पशुवधगृह) मुंबई के देवनार में है। यहां से देश विदेश में विशेष तौर पर खाड़ी देशों में बड़े पैमाने पर मास एक्सपोर्ट होता है।

मुंबई कॉग्रेस (Mumbai Congress) के आदेश पर मानखुर्द – शिवाजी नगर विधानसभा क्षेत्र के नेता वसीम जावेद खान ने देवनार पशुवधगृह के महाव्यवस्थापक और देवनार पोलिस के वरिष्ट पुलिस निरीक्षक रवि अदाणे के साथ व्यवस्था की जानकारी लेने के बाद आज अपने कॉग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ मुंबई महानगरपालिका के एम/पूर्व विभाग के सहायक आयुक्त महेंद्र उबाले (Commissioner Mahendra Ubale) के साथ बैठक की।

जिसमें बकरा बेचने वाले व्यापारियों की समस्याओं का निराकरण एव मुंबई मनपा की तरफ से की हुई व्यवस्था पर चर्चा की। इस अवसर पर डॉ. सत्तार खान (ईशान्य मुंबई जिला उपाध्यक्ष) वसंत कुंभार (ई. मु. स्लम जिलाध्यक्ष) नसीम सिद्दीकी (पूर्व मायनारिटी जिलाध्यक्ष) धनाजी धायगुड़े, विकास तांबे अभिमन्यु सरक (तालुकाअध्यक्ष ओ. बी. सी.) हाजी हसीबउल्लाह, अफसर पठान, फकरुद्दीन खान, शायरा शेख और मेहरुन्निसा सहित कार्यकर्ता उपस्थित थे।

हजरत इब्राहिम के जमाने में शुरू हुआ कुर्बानी दौर

बहरहाल मान्यता के मुताबिक इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स.अ.व ) हुए। हजरत मोहम्मद के वक्त इस्लाम मुकम्मल हो चूका था और आज जो भी परम्पराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं। लेकिन पैगंबर मोहम्मद से पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया।

कुल 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक थे हजरत इब्राहिम, इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ। हजरत इब्राहिम ने अपनी जिगर के टुकड़े, यानि अपने बेटे इस्माइल को कुर्बानी करने का फैसला किया। उन्होंने आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी।

लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया। जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े हुए थे। कहा जाता है कि ये महज एक इम्तेहान था और हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी पेश करने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार थे। इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई।

कैलेंडर के 12वें महीने के 10 वें दिन होतो है बकरीद

ईद अल-अधा, दिल अल-हिज्जा के 10 वें दिन और इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में मनाया जाता है। बहरहाल इस साल 10 जुलाई 2022 रविवार के दिन ईद-उल अजहा यानी बकरीद मनाई जाएगी। ईद-उल फित्र के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। ईद-उल फित्र की तरह ईद-उल अजहा यानी बकरीद की नमाज के बाद भी लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं।

इस मौके पर ईदगाह या मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की जाती है। इस पर्व पर इस्लाम के मानने वाले पाक -साफ होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं और उसके बाद कुर्बानी देते हैं।

ईद-उल फि‍त्र पर जहां सेवइयां और खीर बनाने का रिवाज है, वहीं बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। आज जिस तरह मस्जिदों या ईदगाहों में जाकर ईद की नमाज पढ़ी जाती है वैसे हजरत इब्राहिम के जमाने में नहीं थी। ईदगाह जाकर नमाज अदा करने का यह तरीका पैगंबर मोहम्मद के दौर में ही शुरू हुआ।

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