रामानुजाचार्य ने भारत परिभ्रमण कर वैष्णव धर्म का किया प्रचार

भक्ति के महान आचार्य रामानुजाचार्य की जयंती पर विशेष

अवध किशोर शर्मा/सोनपुर (सारण)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर के सुप्रसिद्ध श्रीगजेन्द्रमोक्ष देवस्थान दिव्यदेश नौलखा मंदिर में 26 अप्रैल को भक्ति के महान आचार्य भगवान रामानुजाचार्य की जयंती मनायी गयी।

इस अवसर पर श्रीगजेन्द्रमोक्ष देवस्थानम दिव्यदेश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने भगवान रामानुजाचार्य के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ था।

उन्होंने वेदों की शिक्षा अपने गुरु यादव प्रकाश से ली थी। रामानुजाचार्य के गुरु श्रीयामुनाचार्य भी प्रमुख आलवार सन्त थे। रामानुजाचार्य ने पूरे भारत की यात्रा करके वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार किया और 120 वर्ष की आयु में वे विष्णुलोक को प्राप्त हो गए।

विशिष्टाद्वैत सिद्धांत के प्रवर्तक स्वामी रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी महाराज ने बताया कि भगवान रामानुजाचार्य के अनुसार चित् अर्थात आत्म तत्व और अचित् तत्व भी ब्रह्म तत्व से अलग नहीं है। बल्कि ये दोनो ब्रह्म के ही स्वरूप है।

इसे ही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत कहा जाता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से शरीर और आत्मा दोनो अलग अलग नहीं है, शरीर आत्मा के उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करता है। उसी प्रकार ईश्वर से अलग होकर चित और अचित का कोई अस्तित्व नहीं है। यह ईश्वर का शरीर है और ईश्वर ही इसकी आत्मा है। स्वामी जी ने कहा कि भगवान रामानुज के अनुसार भक्ति कैसे करें?

पूजा पाठ और कीर्तन ना करके ईश्वर की प्रार्थना करना ही भक्ति है। भक्ति से किसी जाति और वर्ग को वंचित नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि जीव जो है वो ब्रह्म में पूर्ण विलय नही होता, बल्कि भक्ति के माध्यम से उसके निकट जाता है। इसे ही आचार्य रामानुज मोक्ष मानते है।

जयंती समारोह में मुख्य रूप से ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर तिवारी, संजय सिंह, गोपाल सिंह शिक्षक, भोला सिंह, मन्दिर के प्रबंधक नन्द कुमार, शिव कुमार, विरेन्द्र झा, गोपाल झा एवं अनेक श्रद्धालु ने शामिल होकर भक्ति के महान आचार्य रामानुजाचार्य स्वामी जी की आरती और तनया पाठ किया।

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