शताब्दी समारोह महोत्सव को लेकर विहंगम योग संत समाज द्वारा कार्यक्रम

मानव जीवन ईश्वर का परम प्रसाद है-संत प्रवर विज्ञान देव

एस. पी. सक्सेना/ए. के. जायसवाल/बोकारो। उत्तर प्रदेश के वाराणसी के समीप उमराहा स्थित सर्ववेद मंदिर में आगामी 6-7 दिसंबर को आयोजित होनेवाले 25 हजार कुंडीय सर्ववेद ज्ञान महायज्ञ तथा विहंगम योग संत समाज के स्थापना के 101 वर्ष पुरा होने को लेकर होने वाले शताब्दी समारोह के निमित्त कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के गांधीनगर दुर्गा मंदिर प्रांगण में 19 सितंबर को आयोजित संकल्प यात्रा कार्यक्रम में मुख्य रुप से विहंगम योग के द्वितीय परंपरा सद्गुरु स्वतंत्र देव जी महाराज के पुत्र व् अंतरराष्ट्रीय अध्यात्म वक्ता संत प्रवर विज्ञान देव मुख्य रूप से उपस्थित थे।

इस अवसर पर उपस्थित विहंगम योग संत समाज के श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद हमें मानव जीवन मिला है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन ईश्वर का परम प्रसाद है। इंसान समस्त त्याग के बाद ही ऊपर उठता है।

जीवन की सहजता तथा सरलता यज्ञ से प्राप्त होता है, क्योंकि अग्नि में यह खासियत होता है कि यह सदैव ऊपर की ओर उठता है। इसे झुकाया नहीं जा सकता। जल रूपी शीतलता से ही अग्नि को हम शांत कर सकते हैं। इसी प्रकार अपने अंत:करण से हर सुचिता के साथ हम आगे बढ़ते रहें।

संत प्रवर ने कहा कि सबके अपने कर्म, योग व प्रारब्ध है। सब के भीतर परम प्रभु बिराजमान हैं। अपने अंत:करण में झांकने से उस परम सत्ता का ज्ञान होता है। इसलिए सेवा व् स्वर्वेद का अध्ययन सर्वोपरी है। सेवा का अर्थ अहंकार का त्याग और मैं व् हम की गति से दूर शून्यता को प्राप्त करना है।

उन्होंने कहा कि ईश्वर की अनंत शक्तियां मानव सेवा में ही लगी है। पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमती है। नदियां, पहाड़, पेड़ सभी मानव जीवन के लिए ही बने है। इसलिए कहा जाता है वृक्ष कबहु न फल रखे, नदी रखे न नीर, परमारथ के कारणे साधु धरा शरीर।

संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा कि दुनियां में सब कुछ व्यवस्था मुलक है। यह जड़ है। हमें प्राप्त ईश्वर की अनंत शक्तियां उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है। इसका स्रोत सद्गुरु सेवा और साधना से ही संभव है, इसलिए सत्संग जरुरी है। सत्संग से ही हमें आध्यात्मिक ज्ञान और मानव जीवन के उद्देश्यों का भान होता है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अभी भी ईश्वरीय शक्ति समझने की कोशिश में लगे हैं।

हमारा कुछ नहीं है, सब कुछ उसी परम सत्ता का है। उन्होंने कहा कि यह शरीर मेरा नहीं है। सब कुछ बदलता रहता है। मां के गर्भ से हम शरीर लेकर इस धरा में आ गए, लेकिन इसे लेकर नहीं जा सकते। शरीर में स्थित कर्मेन्द्रियां परम सत्ता के अधीन ही कार्य करती है। आंख अपना काम करता है, इसी प्रकार दिमाग, कान, नासिका, मुंह, गला, उदर, हाथ, पैर, उंगली, जिह्वा सभी अपने कर्मों से बंधे हैं। शरीर में प्राण है तभी सब कुछ है। प्राण त्यागने के बाद शरीर का मूल समाप्त हो जाता है।

संत प्रवर ने वाराणसी के उमराहा में बने विश्व का सबसे विशालतम स्वर्वेद मंदिर की विशेषताओं की व्याख्या करते हुए कहा कि यहां एक साथ एक लाख से अधिक विहंगम योग के शिष्यों द्वारा ध्यान क्रिया का रिकॉर्ड बन चुका है। इसलिए इसका अपना एक अलग महत्व है। उन्होंने विहंगम योग संत समाज के स्थापना के शताब्दी समारोह के अवसर पर 25 हजार कुंडीय यज्ञ में भाग लेने के लिए उपस्थित तमाम विहंगम योग के जिज्ञासु वृंदो का आह्वान किया।

इस अवसर पर विहंगम योग संदेश पत्रिका के संपादक सह बोकारो स्टील प्लांट के सेवानिवृत महाप्रबंधक सुख नंदन सिंह सदय के अलावा राधा कृष्ण सिन्हा, किशनलाल शर्मा, उदय प्रताप सिंह, कमलेश प्रसाद श्रीवास्तव, रवि गोराई, रामचंद्र तिवारी, नागेश्वर मेहता, डॉ प्रदीप कुमार, नीलकंठ रविदास, सत्येंद्र प्रसाद यादव, आनंद केसरी, आदित्य मेहता, करण सिंह, प्यारेलाल यादव, रमेश ठाकुर, परमेश्वर नायक, शिवचंद्र यादव, जानकी प्रसाद यादव, पंचानंद साव, आदि।

नारायण मल्लाह, मिथिलेश विश्वकर्मा, राम लखन यादव, सुखलाल महतो, वैदेही श्रीवास्तव, शकुंतला देवी, मंजू जायसवाल, रेणु दास, सुरेश राम महतो, समाजसेवी अनिल अग्रवाल, पूर्व मुखिया ललन सिंह, जिला पार्षद सदस्य ओम प्रकाश सिंह उर्फ टिंनू सिंह, मुखिया दुर्गावती देवी, मालती देवी, सीमा देवी, दिनेश पांडेए, लक्ष्मण प्रसाद सिंह, देवता नंद दुबे, अखिलेश चौहान, मनोज तुरी, शशि भूषण श्रीवास्तव, राम भरोस राम, गुरु चरण विश्वकर्मा, आदि।

तारा देवी, गीता देवी, गुड़िया देवी, सुमित्रा देवी, रीता वर्मन, लोकनाथ महतो, द्वारिका महतो, जयराम साव, राकेश कुमार सिंह, जितेंद्र नाथ सिंह, काली सिंह, भोला सिंह, समीर सिंह, गिरधारी सिंह, चुनमुन देवी, रमा साव, नरेश मिश्र, खिरोधर गोप, कमल साव, अजीत जायसवाल, सुनील केसरी, दशरथ मोदी, फागु राम सहित सैकड़ों श्रद्धालुगण उपस्थित थे।

इस अवसर पर दर्जनों जिज्ञासुओं तथा विहंगम योग संत समाज के प्रबुद्ध जनों द्वारा आगामी 6-7 दिसंबर को उमराहा में आयोजित 25 हजार कुंडीय महायज्ञ में अपनी सहभागिता व्यक्त की, जिसे संत प्रवर विज्ञान देव महाराज द्वारा स्वीकार करते हुए यज्ञ में शामिल होनेवाले धर्म पिपासुओं को सम्मानित किया गया।

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