सामुदायिक वनभूमि पट्टा अधिकार की सत्यापन और सीमांकन सुनिश्चित करें-डीसी
ग्राम सभा वादों का निपटारा जल्द से जल्द करें-डीएफओ
एस. पी. सक्सेना/बोकारो। वनाधिकार अधिनियम 2006 से सम्बंधित कार्यशाला का आयोजन 13 जून को समाहरणालय स्थित कार्यालय कक्ष में किया गया। अध्यक्षता बोकारो जिला उपायुक्त (डीसी) विजया जाधव ने की।
कार्यशाला में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 के तहत वन क्षेत्र रहिवासी जनजातीय समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधन संबंधी उन अधिकारों को मान्यता प्रदान करना है, जिन पर उक्त समुदाय विभिन्न प्रकार की जरूरत के लिए निर्भर थे। उनमें आजीविका, निवास और अन्य सामाजिक, सांस्कृतिक आवश्यकताएं शामिल है का विस्तार से चर्चा किया गया।
मौके पर वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) रजनीश कुमार, अपर समाहर्ता (एसी) मोहम्मद मुमताज अंसारी, चास के अनुमंडल पदाधिकारी ओम प्रकाश गुप्ता, बेरमो अनुमंडल मुख्यालय तेनुघाट के अनुमंडल पदाधिकारी अशोक कुमार, जिला कल्याण पदाधिकारी एन एस कुजूर, जिला जनसंपर्क पदाधिकारी साकेत कुमार पांडेय सहित बोकारो जिला के सभी अंचल के अंचलाधिकारी एवं अन्य उपस्थित थे।
कार्यशाला में डीसी जाधव ने वन अधिकार अधिनियम 2006 से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से देते हुए कहा कि सामुदायिक वन भूमि पट्टा से संबंधित एवं अधिकार की प्रक्रिया का सत्यापन और सीमांकन करना जरूर है।
उन्होंने कहा कि पारंपरिक वन-निवास समुदायों और आदिवासी आबादी के अधिकारों से संबंधित चिंताओं से संबंधित है, जिन्हें भारत में औपनिवेशिक काल के वन कानूनों के जारी रहने के कारण दशकों से उन्हें अधिकारों से वंचित रखा गया है।
वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के कानून को आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन क्षेत्र रहिवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के रूप में जाना जाता है। इस अधिनियम को 29 दिसंबर 2006 को लागू किया गया है। वन अधिकार अधिनियम अन्य नामों जैसे जनजातीय विधेयक, जनजातीय अधिकार अधिनियम और जनजातीय भूमि अधिनियम से भी जाना जाता है।
डीसी ने कहा कि वन अधिकार धारकों को संतुलित जैव विविधता संरक्षण और निरंतर प्रयोग के लिए जिम्मेदारी और शक्ति वन संरक्षण व्यवस्था को मजबूत बनाना है। इसके अंतर्गत कोरमा पूर्ति के साथ ग्राम सभा की बैठक में वन अधिकार समिति का गठन किया जाएगा।
इस समिति में कम से कम 10 और अधिक से अधिक 15 सदस्य होंगे। जिसमें 2/3 सदस्य अनुसूचित जनजाति समुदाय से तथा 1/3 सदस्य महिलाएं होंगे। (जहाँ कोई अनुसूचित जनजाति नहीं है वहां ऐसे समुदायों में से कम से कम एक तिहाई महिलाएं होंगी)। समिति के सदस्य के बीच से ही अध्यक्ष और सचिव का चयन होगा।
समिति के गठन के बाद इसकी लिखित सूचना जिला स्तरीय समिति को भेजना होगा। कहा कि अधिनियम में कई जिम्मेदारी भी तय किया गया है। जिसमें ग्राम सभा के सदस्यों को कानून तथा दावा भरने की प्रक्रिया की जानकारी देना। दावा करने के लिए निर्धारित प्रपत्र उपलब्ध कराना।
भरे हुए दावे को प्राप्त करना। व्यक्तिगत दावा पत्रों की जांच करना तथा दावाकर्ता की उपस्थिति में भूमि का भौतिक सत्यापन और सत्यापित दावों को ग्राम सभा में प्रस्तुत करना। सामुदायिक अधिकार और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के लिए दावा के साथ सामुदायिक वन संसाधन की पारंपरिक सीमा का मानचित्र प्रस्तुत करना, जिसमें बुजुर्ग और महिला शामिल हो।
दावा की प्रक्रिया के लिए आवश्यक सूचना, अभिलेख या दस्तावेज की मांग अनुमंडल स्तरीय समिति से करना। सामुदायिक दावा पत्र का अभिलेख तैयार कर उसका भौतिक सत्यापन करना तथा सामुदायिक दावा पत्र को ग्राम सभा से पारित कर अनुमंडल स्तरीय समिति को भेजना।
कार्यशाला में वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) रजनीश कुमार ने वनाधिकार अधिनियम 2006 के कानूनी प्रक्रिया व अधिनियम की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ग्राम सभा में जो भी दावा पत्र बनाए जाएंगे, वह ग्राम सभा से सीधा अनुमंडल कार्यालय भेजा जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति द्वारा अंचल कार्यालय में दावा पत्र जमा किया जाता है तो अंचल का कार्य सिर्फ दावा पत्र को अनुमंडल कार्यालय तक बढ़ाने की जिम्मेदारी होगी। दावा पत्र में किसी प्रकार की छेड़छाड़ का कोई अधिकार इस कानून में नहीं दिया गया है।
जिला कल्याण पदाधिकारी एन एस कुजूर ने बताया कि सरकार के उद्देश्य जरूरतमंदो को बुआ वीर अबुवा ढिशुम अभियान से जोड़ना है। इसके माध्यम से वैसे रहिवासी जो 13 दिसंबर 2005 से पूर्व वन पर प्रतिभावान है या बंद क्षेत्र में रह रहे हैं, उन्हें जोड़ा जाएगा। यह नियम वन अधिकार कानून 2006 के तहत दावा पत्र दो के होंगे। एक निजी दावा पत्र और दूसरा समुदाय का दावा पत्र होगा।
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