क्यों मनाते हैं हम होली, क्यों लगाते हैं एक दूसरे को रंग-गुलाल

अजीत जयसवाल/पेटरवार (बोकारो)। लोक आस्था, उमंग एवं संस्कृति का पर्व होली का त्योहार 18 एवं 19 मार्च को सर्वत्र मनाया गया है। माना कि हम एक दूसरे को यानि सगे-संबंधियों, साथी, मित्रों, बुजुर्गो के साथ फाल्गुन मास की समाप्ति के साथ ही रंग, अबीर, गुलाल के साथ होली खेलकर खुशियों का इजहार करते हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार दैत्यराज हिरणकश्यप की बहन होलिका अपनी पूर्व मिले वरदान का सदुपयोग न करके उसका दुरुपयोग किया। उसकी अंतरात्मा में उपजे गलत विचार ने ही भाई के पुत्र, भक्त प्रह्लाद को जलाकर मारने की भावना ने उसे स्वयं जलाकर मार डाला। इसी होलिका को हम सब हरेक वर्ष याद करके जलाते तो अवश्य हैं, पर इसकी गहराई पर मंथन कर पाने में चूक जाते हैं।

जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र को नई दिशा नही मिल पाती है। यदि हम मन के भीतर दूसरे के प्रति उपजे गलत भावना, इष्ट, मित्र, पारिवारिक सदस्यों के बीच पूर्व से व्याप्त समस्त कलेश, नफरत की भावना, आपसी वैमन्यता को त्याग कर होली को सौहार्द के वातावरण में मनाएं, तो परिवार और समाज ही नही, पूरा राष्ट्र खुशहाली की ओर अग्रसर होगा।

इसमें तनिक संदेह नहीं। इस रंगो का त्योहार होली के माध्यम से हम सब को अच्छा अवसर मिला हुआ है। आइए मेरी ओर से हर तबके के लोगों को होली की ढेरो शुभकामनाएं।

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