पर्युषण: अष्यानिका पर्व पर आगंतुकों का स्वागत

एस.पी.सक्सेना/गिरिडीह (झारखंड)। गिरिडीह जिला (Giridih district) के हद में मधुवन स्थित संम्मेत शिखर पारसनाथ में आयोजित अष्यानिका पर्यूषण महापर्व के पहले दिवस 3 सितंबर को जैन सोसाइटी के हरीश दोसी उर्फ राजू भाई एवं उनकी धर्मपत्नी ने आगंतुकों का स्वागत किया।

इस अवसर पर प्रथम दिवस श्रीजैन श्वेतांबर सोसायटी के तत्वावधान में सम्मेत शिखरजी के परिसर में पर्युषण पर्व की अनूठी आराधना में साध्वीश्री ने प्रवचन के क्रम में बताया कि जैन धर्म एक अहिंसा प्रधान धर्म है।

जैनागमों में विश्व के समग्र जीवों की सूक्ष्म और विशद विवेचना की गयी है।साध्वीश्री ने बताया कि सुक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की हमें रक्षा करनी है। किसी के दिल को तकलीफ देना, शब्द प्रहार से ठेस पहुंचाना, जैन धर्मानुसार मानसिक हिंसा के रूप में उल्लेख किया गया है ।

उन्होंने कहा कि पर्युषण यानी आत्मा के समीप आत्मा के आसपास रहना है। पर्युषण = परि + उष्ण चारों ओर से तपाना वह है पर्युषण। चारों ओर से बहिर्मुखता का त्यागकर अर्न्तमुखता की ओर अग्रसर होना पर्यूषण है।

परभाव में से भात्मभाव में गमन करना पुद्गल भावों को छोड़कर परमात्मभाव के सन्मुख रहना। आसक्ति का त्यागकर अनासक्ति योग की ओर स्थिरप्रज्ञ रहना है। उसका नाम है पर्युषण पर्व। यही हमें संदेश देता है। व्रत-जप-तप, आराधना, साधना, परमात्म भक्ति और सदाचार के भावों द्वारा जीवन को विकास के मार्ग की ओर गतिशिल होना चाहिये ।

साध्वी प्रियस्मिता डॉ प्रियलताश्री ने बताया कि आज हमने पहला कर्तव्य अमारि प्रर्वतन, परमात्मभक्ति को विस्तृत रूप से समझाया। मोलिसा सेठ ने गाय को बचाने के लिए तीन बार फांसी के फंदे पर चढ़ा लेकिन फांसी का फंदा 3 बार टूट गया। जीवन में गाय को अभयदान देने पर उन्हें नया जीवन प्राप्त हुआ।

अभयदान स्वरूप तप त्यागमय अहिंसा की महती प्रभावना 1 कुमारपाल महाराजा, दादा जिनचन्द्रसूरि के अनुसार अकबर बादशाह ने संपूर्ण भारत में 6 मास के लिए जीवदया की घोषणा करवायी। बकरी का भेद जानकर वे अत्यंत प्रभावित हुए। प्रवचन के मौके पर बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी भक्त प्रवर उपस्थित थे।

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