भयावह था आपातकाल का दौर-विनोद कुमार यादव

देश की जनता ने झेला था 21 माह तक तानाशाही शास

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर स्थित रजिस्ट्री बाजार दुर्गा स्थान परिसर में 25 जून को हिन्दू जागरण मंच द्वारा विचार गोष्ठी सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।
आयोजित विचार गोष्ठी सह कवि सम्मेलन को संबोधित करते हुए हिन्दू जागरण मंच के प्रदेश संयोजक विनोद कुमार यादव ने को संबोधित करते हुए कहा कि आपातकाल का दौर भयावह था।

लगातार 21 माह तक भारत की आम जनता तानाशाही शासन को बर्दाश्त करती रही। जबकि बिहार-भारत की चित्ती में लाठी, गोली, अत्याचार आदि सहने की क्षमता नहीं है। निश्चित रुप से कह सकते हैं कि आपात काल में जनता की आवाज कुचली गई।लोकतंत्र की हत्या हुई थी, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं।

युग बोध साहित्यिक साधना और समसामयिक विषयों पर चर्चा को समर्पित संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता हिन्दू मंच के संयोजक विनोद कुमार यादव और संचालन साहित्यकार अवध किशोर शर्मा कर रहे थे। मौके पर समाजवादी चिंतक ब्रज किशोर शर्मा ने युग बोध सम्मान से हरिहरनाथ न्यास समिति के सदस्य व आपातकाल में बचपन में ही छात्र आंदोलन में शामिल रहे कृष्णा प्रसाद एवं साहित्यकार विश्वनाथ सिंह ने यादव को अंग वस्त्र से सम्मानित किया।

समारोह को संबोधित करते हुए समाजसेवी कृष्णा प्रसाद ने कहा कि 25 जून की यह तिथि भारतीय लोकतंत्र व इतिहास का सबसे बड़ा काला दिन है। इसी दिन सारे तंत्र कैद कर दिए गए थे। लोक जन जीवन आहत हुआ था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सम्पूर्ण क्रांति में जाति की बात नहीं थी, परंतु जेपी के ही अनुयायियों ने जाति आधारित जनगणना की बात की। यहीं पर कथनी और करनी में अंतर झलकता है।

उन्होंने आपातकाल के समय छात्र आंदोलनकारियों की चर्चित गीत सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी है का गायन कर जोश भर दिया। कवि और विचारक मणिभूषण शांडिल्य ने आपातकाल से जुड़ी बचपन की यादों को साझा किया।उन्होंने मेरे गुरुवर हैं देवों के देव भजन का भी गायन किया।

समाजवादी चिंतक ब्रज किशोर शर्मा ने कहा कि इमरजेंसी लगाना ठीक नहीं था, क्योंकि इस इमरजेंसी से आरएसएस एवं आनंद मार्गी संस्थाओं को ताकत मिली। युवा विचारक राजू सिंह ने आपातकाल की कठिनाइयों, उसके पक्ष-विपक्ष का विश्लेषण किया। साहित्यकार विश्वनाथ सिंह ने आपातकाल के शासन व्यवस्था को पूर्णतःआदि

स्वेच्छाचारी, निरंकुश एवं देश को बदनाम और बर्बाद करनेवाला बताया। कविवर शंकर सिंह ने चार दशकों के बाद भी जख्म न भूला सके, आपातकाल के रुप में जब राजनीति ने बदला वेश काव्य पाठ से आपातकाल के दर्द को बयान किया। उन्होंने आपातकाल में पत्रकारों और प्रेस पर जुल्म, जबरन नसबंदी आदि पर विशद चर्चा की और कतिपय अच्छाइयों का भी जिक्र किया।

आशुकवि व अधिवक्ता लक्ष्मण कुमार प्रसाद ने कहा कि आपात काल में यह नारा ज्यादा प्रसिद्ध हुआ कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। समारोह का संचालन कर रहे साहित्यकार अवध किशोर शर्मा ने अपनी स्वरचित कविता लौह महिला जब बनी शूर्पणखा, भारत में कोहराम मचा, निरंकुशता की सीमा हुई पार, शहर-गांव हलकान हुआ। हुई आपातकाल की घोषणा,नागरिक अधिकार समाप्त हुआ।

प्रेस पर भी लगे प्रतिबंध, पुरुष नसबंदी का अभियान चला। भारतीय इतिहास का यह काला दिन, दुनिया भी शर्मसार हुआ। राजनैतिक विरोधियों पर चले दमन चक्र, जेलों में जिंदगी बेहाल हुई से आपातकाल के दौर की याद ताजा करा दी। अंत में धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ साहित्यकार सुरेन्द्र मानपुरी ने किया।

 

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