एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। झामुमो का 9 मई का धरना-प्रदर्शन आदिवासी समाज के साथ छल और राजनीतिक षड्यंत्र है। यह अपनी विफलताओं को छिपाने की चाल भर है। उक्त बाते आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने 7 मई को एक भेंट में कही।
उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) द्वारा आगामी 9 मई को सरना धर्म कोड की मांग को लेकर प्रस्तावित धरना-प्रदर्शन आदिवासी समाज को भ्रमित करने और राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने का एक सुनियोजित प्रयास है।
यह कदम न तो आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है और न ही सरना धर्म कोड की मांग को गंभीरता से उठाता है। इसके बजाय, यह झामुमो की विफलताओं को छिपाने और आदिवासी वोट बैंक को भुनाने की सस्ती चाल है। आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष विजय शंकर नायक ने इस घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि झामुमो का यह आंदोलन केवल दिखावा है। उन्होंने कहा कि सरना धर्म कोड की मांग को बार-बार चुनावी मुद्दा बनाकर आदिवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है।
कहा कि वर्ष 2020 में झारखंड विधानसभा ने सरना धर्म कोड बिल पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन पांच साल बाद भी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई। झामुमो ने इस मुद्दे को केंद्र के समक्ष प्रभावी ढंग से उठाने में निष्क्रियता दिखाई।
नायक ने सवाल उठाया कि अगर झामुमो वास्तव में इस मांग के प्रति गंभीर है, तो पांच साल तक चुप्पी क्यों? क्या यह केवल चुनावी मौसम में आदिवासियों को लुभाने का हथकंडा नहीं है? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने अपने घोषणा पत्र में सरना धर्म कोड को प्रमुखता दी थी। सत्ता में आने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह स्पष्ट करता है कि यह मुद्दा केवल वोट लेने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इसके अलावा, वर्ष 2011 की जनगणना में 4.9 लाख झारखंड वासियों ने अन्य कॉलम में सरना धर्म अंकित किया था। झामुमो ने इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए कोई जागरूकता अभियान नहीं चलाया। अब अचानक धरना-प्रदर्शन की घोषणा केवल राजनीतिक शोर मचाने का मात्र प्रयास भर है।
नायक ने झामुमो के जातिगत जनगणना के विरोध को भी आदिवासी हितों के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय और विकास योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। झामुमो का यह रुख आदिवासियों को सरकारी योजनाओं और आरक्षण के लाभ से वंचित करने की साजिश है। उदाहरण के लिए, बिहार में जातिगत जनगणना से पिछड़े और आदिवासी समुदायों को उनकी आबादी के अनुपात में योजनाओं का लाभ मिला है। झामुमो का विरोध झारखंड के आदिवासियों को इस अवसर से वंचित कर सकता है।
नायक ने आदिवासी समाज से अपील करते हुए कहा कि वे झामुमो के इस छलावे को समझें और अपने हितों की रक्षा के लिए एकजुट हों। कहा कि सरना धर्म कोड की मांग वास्तविक हो सकती है, लेकिन इसे राजनीतिक हथियार बनाकर आदिवासियों को गुमराह करना अस्वीकार्य है। झामुमो को चाहिए कि वह केंद्र सरकार के साथ रचनात्मक संवाद शुरू करे और इस मुद्दे पर ठोस परिणाम लाए। साथ ही, जातिगत जनगणना का समर्थन कर आदिवासियों के विकास को सुनिश्चित करे।
उन्होंने कहा कि आगामी 9 मई का धरना-प्रदर्शन केवल एक राजनीतिक नाटक है, जिसका उद्देश्य आदिवासी समाज को भ्रमित कर वोट बैंक की राजनीति करना है। हम आदिवासी समुदाय से पुनः अपील करते हैं कि वे इस दिखावे के पीछे की सच्चाई को समझें और अपने हक के लिए सही मंच का चयन करें। सरना धर्म कोड जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ठोस कार्रवाई की जरूरत है, न कि खोखले वादों और प्रदर्शनों की।
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