प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। विस्थापित संघर्ष समन्वय समिति के महासचिव काशीनाथ केवट ने 9 जुलाई को भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को त्राहिमाम पत्र प्रेषित कर सीसीएल ढोरी क्षेत्र के अमलो परियोजना के समीपस्थ बस्ती पुरनाटांड के विस्थापितों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचार से अवगत कराया है।
उन्होंने पत्र में लिखा है कि झारखंड प्रदेश में अवस्थित सीसीएल बीएंडके क्षेत्र के कारो एवं ढोरी की अमलो परियोजना के लिए रैयतों की जमीन अधिग्रहित किये लगभग 40 वर्ष बीत चुका है। रैयतों को उनका वाजिब हक अबतक नहीं मिली है, जो रैयतों के लिए काफी कष्टदायक मुद्दा है।
उन्होंने प्रेषित पत्र में यह भी कहा कि प्रबंधन द्वारा वास्तविक रैयतों के साथ भेद-भाव का रवैया अख्तियार किया जा रहा है। रैयतों के जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन उनकी जमीन उनसे बलात छीन लिया गया। उनके जीविकोपार्जन का कोई व्यवस्था भी नहीं की गई।
बस्ती के लालमोहन यादव (Lal mohan yadav), त्रिलोकी सिंह, राजेश गुप्ता, ललिता देवी, सरस्वती देवी जैसे दर्जनों विस्थापित परिवार आज भी दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। विस्थापित खानाबदोश का जीवन जीने को विवश हैं। विस्थापितों की त्रासदी ऐसी है कि वे दिन-रात दहशत के साये में जी रहे हैं। रैयतों की घर से मात्र 50 मीटर की दूरी पर सीसीएल की कोलियरियां गैरकानूनी ढंग से संचालित है। हैवी ब्लास्टिंग से नित्य बड़े-बड़े पत्थर उनके घरों में उड़कर गिर रहे हैं और लोग घायल हो रहे हैं।
पत्र में कहा गया है कि वर्ष 1998 में यहाँ हैवी ब्लास्टिंग के पत्थर से एक महिला मालती देवी की दर्दनाक मृत्यू हो चुकी है। मृतक महिला उस वक्त अपने आवास में सो रही थी। जमीन से संबंधित दस्तावेजों जैसे खतियान, पट्टा, सत्यापन कुछ भी मानने के लिए प्रबंधन तैयार नहीं है।
नित्य सीआईएसएफ और सुरक्षा टीम भेजकर विस्थापितों को आतंकित करने का काम किया जा रहा है, जो एक अमाननीय प्रकरण है। इस प्रकार यहाँ मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है और विस्थापित परिवार आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संकट से जूझ रहे हैं।
यहाँ मानव अधिकारों का खुलमखुला उल्लंघन किया जा रहा है, इसलिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इस मामले पर जल्द से जल्द संज्ञान लेकर विस्थापितों के बीच मानव अधिकारों को बहाल करे।
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