बिरसा मुंडा की शहादत दिवस पर संकल्प लेकर झारखंड को बचाने क़ि आवश्यकता

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। आज हीं के दिन 9 जून 1900 ईस्वी को धरती आवा भगवान बिरसा मुंडा जेल में अंग्रेजों के प्रताड़ना से शहीद हुए थे। इसी दिन बिरसा मुंडा की असामायिक मृत्यु हो गई थी। आज के दिन को संपूर्ण भारत में बिरसा मुंडा की शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। साथ हीं बिरसा मुंडा के उलगुलान को याद किया जाता है।

ज्ञात हो कि 25 वर्ष की अल्पायु में अंग्रेज व महाजनों की शोषणकारी नीति के विरुद्ध बिरसा मुंडा ने विरोध का बिगुल फुंका था। उनकी संघर्ष और बलिदान की कहानी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। हमें गर्व की अनुभूति होती है, ऐसे वीर योद्धा हमारे झारखंड में हुए।

झारखंड अलग राज्य बने 24 साल बीत गए, लेकिन आज भी यहां उसी तरह लूट जारी है। सिर्फ लूटने वाले और उसका तरीका बदला है। जल, जंगल, जमीन,‌ पहाड़, पर्वत के अलावे रोटी, कपड़ा और मकान में भी लूट जारी है। इसका सबसे जीता जागता उदाहरण राज्य का मुख्यमंत्री और मंत्री जेल में बंद हैं।

यह अलग बात है कि जेल में डालने वाली एजेंसियां भेदभावपूर्ण कार्रवाई करती है। जांच एजेंसी अगर ईमानदारी से apna काम करने लगे तो देश के 99 प्रतिशत विधायक, सांसद व अधिकारी जेल की सलाखों में होंगे।

झारखंड में रोजगार और नियुक्ति

रही बात झारखंड में रोजगार और नियुक्ति की तो वर्तमान समय में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार इसी विभाग में दिख रहा है। झारखंड में जेपीएससी व जेएसएससी नियुक्ति हेतु परीक्षा लेने वाली दो बड़ी संस्थान है। जिसकी जिम्मेवारी राज्य के लिए कर्मचारी व अधिकारी भर्ती हेतु ईमानदारी पुर्वक परीक्षा आयोजित करना है।

अबतक का रिपोर्ट बताता है कि इस आयोग ने अपनी और सरकार का बेड़ा ग़र्क कर दिया है। कोई भी परीक्षा समय पर नहीं होता। होता भी है तो बिना विवाद के नहीं होता। प्रश्न पत्र लीक होना और लगातार सिरियल में सफल होना आम बात हो गई है। पहले तो सिर्फ जेपीएससी व जेएसएससी में ऐसा होता था। अब तो नीट युजी (NEET UG) परीक्षा में भी ‌यह होने लगा है। ऐसा लगता है बहुत जल्द देश में भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिल जाएगी।

झारखंड में आन्दोलन:

आन्दोलन की बात है की जाये तो झारखंड आंदोलन की धरती रही है। यहां के रहिवासी बिरसा मुंडा जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानी व बलिदानी से प्रेरित होकर अपने हक़, अधिकार के लिए आन्दोलन करते रहे हैं। जेपीएससी व जेएसएससी जैसी संस्थाओं के खिलाफ भी लगभग 2010 के बाद से लगातार आन्दोलन होते रहे हैं, लेकिन इन आंदोलनों का बहुत बड़ा साकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है।

माना कि कुछ छोटी मोटी बदलाव आया, लेकिन भ्रष्टाचार के नये नये तरीके ईजाद कर लिए गए। इसके पीछे छात्रों में आन्दोलन के प्रति उदासीन रवैया और छात्र नेताओं की ढुलमुल रवैया व दोगला चरित्र‌ को माना जा सकता है। ‌

‌ झारखंड में ‌पहली जेपीएससी परीक्षा से लेकर सातवें परीक्षा परिणाम घोषित हो चुके हैं, लेकिन सभी में भ्रष्टाचार हुआ है और नियुक्त भ्रष्ट अधिकारी कार्यरत हैं। यहां एक परीक्षा प्रक्रिया पुर्ण होने में लगभग पांच वर्ष लग जाता है। कुछ परीक्षा जैसे सीजीएल परीक्षा प्रक्रिया पिछले आठ साल से विवादित रुप से चल ही रही है। कभी पुरी हो पाएगी उसमें संशय है। अब‌ शिक्षित बेरोजगार व आम जनों में उदासीनता लगातार बढ़ रही है।

ज्यादातर प्रभावितो का भ्रष्टाचार के प्रति नजरिया बदलने लगा है। अब लगभग सभी मौके की तलाश में रहते हैं। कहीं कुछ जुगाड़ लग जाय। यानि भ्रष्टाचार आज सामाजिक बुराई नहीं रह गया है। इसे सामाजिक स्वीकृति मिल गई है। यही स्वीकृति भ्रष्टाचार को जड़ से मजबूत कर दिया है। साथ हीं व्यवस्था को जड़ से खोखला कर रहा है।

सामाजिक स्वीकृति का एक उदाहरण

एक भ्रष्ट अधिकारी जिसकी नियुक्ति भ्रष्टाचार से हुई है और नियुक्ति के बाद भ्रष्टाचार कर रहा है। वह ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर हजारों गरीबों में कंबल व साड़ी का वितरण करता है। यह जानकारी रहते हुए भी कि वह उनके नजर में देवता बन जाता है।

आंदोलन क्यों और कैसे?

झारखंड बिरसा की धरती है। यहां जब-जब भ्रष्टाचार, अत्याचार व शोषण होगा, उलगुलान अवश्य होगा। इससे पहले हमें यह समझना होगा कि किससे, क्यों और कैसे लड़ना है। किससे का अर्थ है जिसके लिए आप लड़ना चाहते हैं उसकी प्रकृति कैसी है।

अच्छा है या बुरा है। सच है या झूठ है। अच्छा क्या है बुरा क्या है, यह जाने बगैर आप दिशा हीन हो सकते हैं। भ्रष्टाचार को आप ग़लत समझते हैं, तभी उसके विरुद्ध लड़ सकते हैं। लेकिन इसे अच्छा मानते हैं और आपको मौके नहीं मिला इसलिए आप लड़ रहे हैं। तो आप बेकार लड़ रहे हैं। इसी प्रकार कैसे लड़ना है यह भी जानना जरूरी है। संविधान से लड़ना है या हथियार से।

संवैधानिक तरीके से लड़ने में समय और संघर्ष लंबा करना होगा और गैर संवैधानिक तरीके से लड़ना चाहते हैं तो आपको अंततः जेल जाना पड़ेगा या जान गंवानी पड़ेगी। कई आंदोलनों में सफलता की भी कोई गारंटी नहीं होती है। इन तमाम बातों पर चिंतन-मंथन करके हीं हमें आगे बढ़ने की जरूरत है।

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