एस. पी. सक्सेना/बोकारो। संत के अंत:करण से हमेशा सत्य परायण मानव जीवन के हित की आवाज निकलती है। उस सत्य को धारण करने से ही जीवन का वास्तविक आनंद मिलता है।
उक्त बातें महाराष्ट्र (Maharashtra) के अंकोला से बोकारो जिला (Bokaro district) के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह में आयोजित श्रीराम चरित मानस नवाहन परायण यज्ञ के अवसर पर मुख्य प्रवचनकर्ता मानस मर्मग्य पंडित निर्मल कुमार शुक्ला ने 28 मार्च की संध्या एक भेंट में कही।
पंडित निर्मल शुक्ला जिन्होंने अपने लेखनी से अबतक पांच ग्रंथ प्रकाशित किए। जिसमें मारुति महिमा महा सिंधु, बाबा भीष्म, लव कुश, प्रेमी भरत तथा कैकई धर्म शामिल है। धर्म और संस्कृति में अंतर के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि धर्म वह है जो समाज धारण करता है।
जीवन जीने की प्रक्रिया ही धर्म है। संस्कृति वह है जिसमें धर्म को कार्यरूप दिया जाता है। आडंबर के संबंध में उन्होंने कहा कि जिसमें स्वार्थ आ जाता है वह आडंबर है। लोगों को लूटने के नाम पर किया जाने वाला प्रयास आडंबर हो जाता है।
आध्यात्मिक प्रवचनो के दौरान श्रद्धालुओं की कम उपस्थिति के संबंध में उन्होंने कहा कि कहीं कहीं श्रद्धालुओं की भीड़ कम और कहीं कहीं ज्यादा होती है। उदाहरण के तौर पर दूध की दुकानों में लंबी लाइन नहीं लगती, जबकि दारू की दुकानों में अधिक भीड़ होती है। इससे धर्म का ह्रास नहीं बल्कि समाज का हानि होगा।
धर्म उस समय रोने लगता है जब अधर्मी लोग धर्म के नाम पर छींटाकशी करते हैं। पांच और पचीस का फेर के संबंध में उन्होंने बताया कि पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रीयाँ , पांच महा भुत, पांच तंत्र- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और विकार के अलावा एक जीवात्मा हीं मिलकर पचीस है। जबकि मानव तन पांच तत्व-क्षितिज, जल, पवन, आकाश तथा अग्नि का सम्मिलित रूपये है।
जीवन में गुरु के महत्व के बारे में पं शुक्ला ने बताया कि जो अज्ञात तत्व है, जिसे हम मन और बुद्धि के द्वारा नहीं जान सकते, उसे जानने का जो साधन सहज हीं उपलब्ध करा दे उसे ही गुरु कहा जाता है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा लगातार 151 घंटा भरत चरित्र पर वक्तव्य दिया गया था, जो शायद विश्व स्तर का अनूठा वक्तव्य है।
उन्होंने कहा कि उन्हें पत्रकारिता से बड़ा लगाव रहा है। वे नागपुर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र से भी जुड़े रहे हैं। इसके अलावा कई बड़े आयोजनों में उन्होंने एकल वक्तव्य दिया है।
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