सिद्धार्थ पांडेय/जमशेदपुर (झारखंड)। पश्चिमी सिंहभूम जिला के घोर नक्सल प्रभावित सारंडा के सुदूरवर्ती नुईयागड़ा गांव जो तमाम प्रकार के सरकारी जन कल्याणकारी योजनाओं से वंचित है, आज उस गांव के गंभीर रुप से बीमार मरीज सोमा लोम्गा (41 वर्ष) को गांव के ही कुछ स्कूली बच्चों ने लकड़ी के डंडे में चादर बांध तथा उस चादर में बैठाकर लगभग 3 किलोमीटर ऊंची पहाड़ी को पार कर कुमडीह रोड तक लाया। यहां से सेल प्रबंधन द्वारा भेजे गये वाहन से मरीज को सेल की किरीबुरु अस्पताल लाया गया। जहां मरीज का इलाज जारी है।
उल्लेखनीय है कि, सारंडा का नुईयागड़ा, बोड़दाभठ्ठी और रांगरींग गांव विकास से कोसों दूर है। यह तीनों गांव आसपास के हैं। तीनों गांव वर्षों पूर्व अवैध तरीके से जंगल काटकर बसाया गया है। जानकारी के अनुसार इन गांवों के रहिवासियों के पास सिर्फ मतदाता पहचान पत्र, आधार एवं राशन कार्ड है। इसके अलावे सरकार की कोई योजना गांव तक नहीं पहुंची है। तीनों गांव किरीबुरु से लगभग 15-20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
तीनों गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल, आंगनबाड़ी, पेयजल, संचार आदि किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है। बताया जाता है कि दो वर्ष पूर्व इन गांवों की खराब स्थिति की खबर छपने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संज्ञान लेकर कोल्हान के तमाम बडे़ पुलिस-प्रशासन के उच्च अधिकारियों को दो बार गांव भेजा।
तमाम अधिकारी इन गांवों में तो जैसे-तैसे चले गये थे, लेकिन वापस आने में सभी की सांसें फूल गई थी। उनकी रुहें तक कांप गई थीं। सारे अधिकारी गांव तक सड़क, स्कूल, पानी, एम्बुलेंस आदि सुविधा की बात कह कर गये, लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं। यही वजह है कि गांव के मरीज इलाज के अभाव में गांव में ही दम तोड़ देते हैं। या फिर कुछ मरीज ऐसे बच्चों के साहसिक प्रयास की वजह से अस्पताल तक पहुंच मौत से बच जाते हैं।
बताया जाता है कि इन गांवो के स्कूली बच्चे 15 किलोमीटर दूर स्कूल होने की वजह से पढा़ई छोड़ देते हैं या फिर कुछ सेल प्रबंधन के रहमों करम से किरीबुरु में रहकर पढ़ पाते हैं। सारंडा की खदानें डीएमएफटी फंड में प्रतिवर्ष करोड़ो रुपये देती है। लेकिन इन पैसों से यहां के रहिवासियों का किसी भी प्रकार का विकास नहीं हो पा रहा है। डीएमएफटी फंड भारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रही है। जिसके कारण इसके असली लाभार्थियों को तिल-तिल कर मरना पर रहा है।
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