गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। गणतंत्र की जननी वैशाली के अमर क्रांतिकारी शेरे बिहार नर केशरी महामानव योगेंद्र शुक्ल का जन्म बिहार के वैशाली जिले के हद में लालगंज अंचल के जलालपुर ग्राम के एक साधारण भूमिहार-ब्रहमण परिवार में 30 सितम्बर 1896 दशहरे के दिन हुआ।
योगेंद्र शुक्ल नन्हकू शुक्ल के एक मात्र सन्तान थे। इनके जन्म के कुछ माह बाद ही इनकी माताजी का देहांत हो गया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इनके चाचा मुजफ्फरपुर में रहते थे, जिन्होंने योगेंद्र शुक्ल को आगे पढाने के लिये अपने साथ मुजफ्फरपुर ले गये और इनका नाम भूमिहार ब्राह्मण कॉलेजियेट स्कूल में लिखा दिया।
मुजफ्फरपुर में आजादी के दीवाने खुदी राम बोस को अंग्रेजी सरकार द्वारा फांसी दिए जाने की घटना का योगेंद्र शुक्ल के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। मुजफ्फरपुर के छात्र आजादी के आंदोलन में भाग लेने लगे। मुजफ्फरपुर में ही इनका सम्पर्क जिले के बसावन सिंह के साथ हुआ।
बसावन सिंह को आजादी के आंदोलन में भाग लेने के आरोप में भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज से जो आज लंगट सिंह कॉलेज के नाम से जाना जाता है निकाल दिया गया। योगेंद्र शुक्ल के चाचा ने भी इन्हें गांव भेज दिया, क्योंकि पढाई से ज्यादा ये आजादी की लड़ाई में भाग लेने लगे थे ।
योगेन्द्र शुक्ल का आचार्य कृपलानी से सम्पर्क
भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज के प्राध्यापक आचार्य जे वी कृपलानी महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। वे मुजफ्फरपुर के युवाओं में आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे।शुक्ल जी आचार्य कृपलानी के सम्पर्क में आने के बाद उनके अनन्य भक्त हो गए।
शुक्ल जी कृपलानी जी के साथ कराची गए। कृपलानी जी की वजह से उनके सम्पर्क ग़ांधी जी से हुआ। वे बर्धा आश्रम में रहे। वर्ष 1919,1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में शुक्ल जी ने भाग लिया। उनके सम्पर्क देश के जाने माने स्वतन्त्रता सेनानियों से हुई।
शुक्ला जी प्रथम बार कृपलानी जी के साथ बनारस में जेल गए। शुक्लजी का सम्पर्क चन्द्र शेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त से बनारस प्रवास के दौरान हुआ। इन क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आने के बाद शुक्ल जी को विश्वास हो गया कि देश को गांधी के अहिंसक आंदोलन से नही मिलेगी और योगेंद्र शुक्ल 1925 में हाजीपुर लौट आये।
क्रांतिकारियों ओर स्वतन्त्रता सेनानियों की स्थली गांधी आश्रम
वर्तमान वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर में स्थित गांधी आश्रम पहले आवादी विहीन जंगलात था। जी एच हाई स्कूल के शिक्षक पंडित जयनन्दन झा जो आजादी के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही थे, ने पोहियार के जमींदार से मिले जमीन में एक आश्रम बनाया।
जिसकी नीव महात्मा गांधी ने सन 1920 में चंपारण जाने के क्रम में दिया। जिले के क्रांतिकारी बाबू किशोरी प्रसन्न सिंह, बसाबन सिंह, चन्द्रमा सिंह, अक्षयवट राय के साथ ही स्वतन्त्रता सेनानियों का गांधी आश्रम बिहार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
वर्ष 1919 में जलियावाला कांड के बाद देश के युवायों में अंग्रेजो के प्रति गुस्सा ओर आक्रोश था। बनारस से लौटने के बाद योगेंद्र शुक्ल इन क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आये। इन क्रांतिकारियों के संबंध बंगाल के क्रांति करियो से भी था।
अट्ठारह वर्ष के गवरू 6 फिटा जवान योगेंद्र सुक्ला क्रन्तिकारी बसाबन सिंह और भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर शस्त्र क्रांति द्वारा देश को अंग्रेजो की गुलामी से आजाद कराने के लिए सन 1925 में हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक असोसिएसन का गठन हुआ।
संगठन के लिये हथियार की खरीद के लिये रुपये का इंतजाम वास्ते सरकार का खजाना लूटने का निर्णय हुआ। शुक्ला जी ने चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को बेतिया ओर गांधी आश्रम के जंगलों में हथियार चलाने की ट्रेनिग भी दी। इन क्रांतिकारियों ने यूपी और बिहार में सरकारी खजाना लूटना शुरू किया, जिससे अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ गई।
अंग्रेजी हुकूमत ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पुरी पुलिस तन्त्र को लगा दिया। इसी बीच बसावन सिंह, भट सिंह, बटुकेश्वर दत्त औऱ अन्य साथी लाहौर षड्यंत्र केश में लाहौर जेल में बंद थे। चन्द्र शेखर आजाद ओर शुक्ल जी ने लाहौर जेल से इन साथियो को छुड़ाने की योजना बनाई, लेकिन इसकी भनक अंग्रेजो को लग गई।
तब योगेंद्र शुक्ल दिल्ली से जब ट्रेन से वापस लौट रहे थे कि ट्रेन में अंग्रेज खुफिया पुलिस से घिर जाने की जानकारी उन्हें मिली। योगेंद्र शुक्ल चलती ट्रेन से कूद गए और किसी तरह बिहार पहुच गए।
12 जून 1930 को जब योगेंद्र शुक्ल सोनपुर के मलखचक में अपने एक साथी के यह रुके हुए थे, तब एक गद्दार रामानन्द सिंह ने पुलिस को सूचना देकर शुक्ल जी को गिरफ्तार करवा दिया। गिरफ्तारी के बाद योगेंद्र शुक्ल को पुलिस ने काफी यातनाये दी और भागलपुर जेल में बन्द कर दिया। तिरहुत षड्यंत्र सहित अन्य केश में योगेंद्र शुक्ल को काले पानी की सजा हुई ।
काला पानी की सजा
वर्ष 1932 में सरकार ने बाबू योगेंद्र शुक्ल और अन्य क्रांतिकारियों को अंडमान निकोबार के सेलुलर जेल भेज दिया, जिसे काला पानी की सजा कहा जाता था। जहाँ से लोगों को जिंदा लौटना मुश्किल था। सन 1937 में बाबू योगेंद्र शुक्ल जेल में 46 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहे, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाने पर अंग्रेजो ने शुक्ल जी को सेलुलर जेल से हजारीबाग जेल में भेज दिया।
उस समय बिहार में डॉ श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सरकार से शुक्लजी सहित सैकड़ो बन्दियों को रिहा करने के लिए अंग्रेजी सरकार से मांग की। मांग नही माने जाने पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके फलस्वरूप सरकार ने मार्च 1938 में शुक्ल जी सहित अन्य बन्दियों को जेल से रिहाकर दिया।
वर्ष 1938 में जेल से रिहा होने के बाद योगेंद्र शुक्ल कांग्रेस से जुड़े, लेकिन गांधी जी के बजाए ये शुभाष चन्द्र बोस से ज्यादा प्रभावित हुए। इनका सम्पर्क जय प्रकाश नारायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, स्वामी सहजानन्द से हुआ। शुक्ल जी कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। योगेंद्र शुक्ल अखिल भारतीय किसान सभा के सचिव भी बनाये गए और पुन: अंग्रेजी सरकार द्वारा इन्हें हजारीबाग जेल में गिरफ्तार कर डाल दिया गया।
सन 1942 में गांधी जी द्वारा अंग्रेजो भारत आंदोलन की घोषणा की गई। उस समय जयप्रकाश नारायण, बेनीपुरी, सहजानन्द इत्यादि नेता हजारीबाग जेल में बंद थे। आंदोलन में भाग लेने के लिये इन सभी ने जेल से भागने की योजना बनाई। योजना के अनुसार शुक्ल जी अपने साथियों के साथ जेल की दीवार फांद कर बाहर आ गए। उस वक्त जेपी बीमार थे और चलने से लाचार थे।
जिस वजह से शुक्ल जी ने जेपी को अपने कंधे पर लेकर पैदल गया तक लाये। शुक्ल जी का सम्पर्क देश के क्रांतिकारियों के साथ हुआ। शुक्ल जी ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्ता को बेतिया के जंगलो में हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया। इनके भतीजा बैकुंठ सुक्ला भी क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा गया सेंट्रल जेल में फांसी दी गई। योगेंद्र सुक्ला कुछ दिनों के लिये कांग्रेस से भी जुड़े, लेकिन ये गाँधी से ज्यादा सुबाष चंद बोस के विचारों के समर्थक थे।
योगेंद्र शुक्ल देश आजादी की लड़ाई में 16 वर्ष जेल में रहे। 1932 से 1937 तक काला पानी सेलुलर जेल में भी रहे। 1938 में जयप्रकाश नारायण के सम्पर्क में आए। शुक्ल जी ने 1938 में बसावन सिंह, राम बृक्ष बेनिपुरी के साथ मिलकर कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी का गठन किया। 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजो ने उन्हें हजारीबाग जेल में डाल दिया, जहाँ जेपी पहले से जेल में थे।
सुकलाजी ने हजारीबाग जेल की दीवार फांद कर जेपी सहित अन्य क्रांतिकारियों को निकाला तथा जेपी को कंधे पर बिठा कर गया ले आये। जेल से बाहर आकर शुक्ल जी आंदोलन में कूद गए। इसी क्रम में हाजीपुर से पटना जाने के लिये जब शुक्ल जी हाजीपुर सोनपुर पुल पर थे कि दोनों ओर से पुलिस ने घेर लिया। तब सुकलाजी साईकिल सहित गंडक नदी में कूद गए और तैरते हुए मोकामा पहुँच गये।
मजफ्फरपुर जेल से भी शुक्ल जी ने अपने क्रांतिकारी साथियो को निकाला, जिससे अंग्रेजो ने शुक्ल जी को गिरफ्तार करने के लिये 5000 रुपये का इनाम रखा और शुक्ल जी 7 दिसम्बर 1942 को गिरफ्तार कर बक्सर जेल भेजे गये। जहाँ ये 1946 तक रहे। इस तरह बाबू योगेंद्र शुक्ल ने देश की आजादी के लिए 17 वर्ष जेल में बिताए। अनेक यातनाये सही।
योगेंद्र शुक्ल ने बसावन सिंह, सूरज नारायण सिंह और अन्य साथियों के साथ प्रजा समाज वादी दल का गठन किया
देश की आजादी के बाद सन 1952 में पहला आम चुनाव हुआ और योगेंद्र शुक्ल लालगंज से चुनाव लड़े। इस चुनाव में कांग्रेस की ओर से साइन के जमींदार परिवार के बाबू ललितेश्वर प्रसाद शाही चुनाव लड़े। कांग्रेस प्रत्यासी की ओर से मतदातओं के लिए बूथ पर पूरी जलेवी की व्यवस्था थी।
इस प्रथं आम चुनाव में बाबू ललितेश्वर शाही चुनाव जीत गए और योगेंद्र शुक्ल हार गए। सन 1958 में प्रजा समाजवादी दल के सदस्य के रूप में योगेंद्र शुक्ल विधान परिषद के सदस्य बने और 19 नबम्बर 1960 को बीमारी की वजह से इंतकाल कर गए।
देश को आजादी दिलाने वाले इस वीर क्रन्तिकारी को सरकार से किसी तरह का सम्मान नही मिला। बाजपेयी सरकार ने इनके और इनके भतीजे बैकुंठ शुक्ला के नाम डाक टिकट जारी किया। इनके भतीजे की सक्रियता से इनके गांव में एक स्मारक स्थापित हुई है। इस अमर सेनानी को शत शत नमन।
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