बढ़ते तापमान व् घटते जलस्तर से खतरे में सारंडा के वन्यप्राणियों का अस्तित्व

पर्यावरण रूपी पृथ्वी को बचाने का सभी मिलकर करें प्रयत्न-शंकर भगत

सिद्धार्थ पांडेय/जमशेदपुर (झारखंड)। पश्चिमी सिंहभूम जिला में निरंतर बढ़ते तापमान एवं घटते जलस्तर से सारंडा में रहने वाले रहिवासी एवं वन्यप्राणियों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा है। उक्त बाते ससंगदा प्रक्षेत्र किरीबुरू वन क्षेत्र पदाधिकारी शंकर भगत ने 31 मार्च को कही।

भगत ने बताया कि एशिया प्रसिद्ध सारंडा जंगल में अभी से पड़ रही भीषण गर्मी के कारण नदी, प्राकृतिक झरने आदि सूखने लगे हैं। इससे क्षेत्र के रहिवासियों की चिंता बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि किरीबुरु जैसे शहर में 31 मार्च को अधिकतम तापमान 33 डिग्री, जबकि सारंडा के निचले भागों में यह तापमान लगभग 37-38 डिग्री तक पहुंच गया है।

सारंडा की लाईफ लाईन कही जाने वाली कर्रो नदी (उद्गम स्थल कोईड़ा ओड़िसा), कोयना नदी (उद्गम स्थल भनगाँव, सारंडा) एवं सरोखा उर्फ सोना नदी (उद्गम स्थल सुकरी माईन्स की तलहटी, सारंडा) वर्तमान में नाला व पथरीली रास्ते का रूप धारण करती जा रही है। अगर इसके संरक्षण हेतु सरकारी, समाजिक व औद्योगीक घराने स्तर पर प्रयास नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में सारंडा में अनेकानेक समस्या दिखेगी।

हालात भी यहीं बयां कर रहा है। क्योंकि, वर्ष 1950-60 के दशक तक ये दोनों नदियां इतनी गहरी थी, कि अच्छा तैराक भी पार होने से पूर्व पानी का बहाव व नदी की गहराई देख डर जाया करता था।
भगत ने बताया कि नदी की मछलियों को मारने के लिये खादानों के विषफोटक (जिलेटीन) का प्रयोग किया जाता था। दरीयाई घोड़ा से लेकर मगरमच्छ तक यहां की नदियों में विचरन करते थे।

आज हालत यह है कि नदी की गहराई खादानों से आने वाली फाईन्स व मिट्टी-पत्थर से दो-दो मीटर तक भर चुकी है। पानी का ठहराव नहीं है। मछलियाँ दिखना एक स्वप्न के समान है। दर्जनों गांवों के हजारों परिवारों का प्यास बुझाने तथा खेतों को सिंचने वाली यह नदी स्वयं आज प्यासी है।

नदी को देखने से ऐसा लगता है कि जैसे नयी सड़क बनाने से पूर्व किसी ने गिट्टी, पत्थर, बालू, फाईन्स डालकर समतल करने का कार्य किया गया हो। निरंतर बढ़ते तापमान एवं घटते जलस्तर से सारंडा में रहने वाले रहिवासी व् वन्यप्राणियों का अस्तित्व खतरे में हैं। रहिवासी जानबूझ कर प्रकृति का दिया इस अनमोल उपहार के साथ छेड़छाड़ व दोहन कर उस रास्ते की तरफ कदम बढा़ रहे हैं। न चाहते हुए भी मानव वातावरण में आने वाले हर उस परिवर्तन का सामना कर रहे हैं, जो आने वाले विनाश की चेतावनी मात्र है।

भगत ने कहा कि जब सारंडा के ग्रामीण अचरज से कहते हैं कि इतनी गर्मी पहले कभी नहीं पडी़ तो हम उनकी बात का मखौल में उडा़ देते हैं। किन्तु उनका अनुमान शत प्रतिशत सही है। वैज्ञानिक स्वयं मान रहे हैं कि भूमिगत जल स्तर घट रहा है। ग्लेशियर सिकुड़ रहा है। वातावरण में तापमान की निरंतर वृद्धि हो रही है।

पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में वृक्ष नहीं होने के कारण ऐसी गैसें बढ़ रही है जो पृथ्वी को गरम कर रही है। इस हालात से बचने हेतु जनमानस में चेतना का संचार आवश्यक है, ताकि वृक्षों की अंधाधुंध कटाई को रोका जा सके। अधिक से अधिक वृक्ष लगाना मनुष्य का लक्ष्य होना चाहिए न की काटना। यदि प्रकृति माँ है तो माँ के साथ पुत्र का यह पशुजनित व्यवहार कहां तक उचित है? ऐसी परिस्थिति में हम सब का कर्तव्य बनता है कि पर्यावरण रूपी पृथ्वी को बचाने का प्रयत्न करें।

वन क्षेत्र पदाधिकारी भगत ने क्षेत्र के आम व् खास रहिवासियों से अपील की है कि पौधारोपण के लिए सदैव अग्रसर रहें। वृक्ष ही हरियाली व जीवन प्रदान करने वाला है। वृक्ष मानव जीवन के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता के लिए अत्यंत अनिवार्य है।

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