गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला किया रद्द
यह फैसला बाल अधिकारों की दशा व दिशा बदलने वाला-सहयोगिनी
रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। देश में चाइल्ड पोर्नोग्राफी यानी बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करने, उन्हें देखने या किसी से साझा करने को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना तकनीक कानून के तहत अपराध करार देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बाल अधिकारों के संरक्षण से जुड़े सहयोगिनी सहित देश के सभी गैरसरकारी संगठनों ने स्वागत किया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे देश के 120 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस (जेआरसीए) की याचिका पर आया है। शीर्ष अदालत ने जेआरसीए की याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि इस तरह की सामग्रियों को डाउनलोड करना और देखना दंडनीय अपराध नहीं है, यह सिर्फ नैतिक पतन है।
जेआरसीए व् सहयोगी संगठन सहयोगिनी के निदेशक गौतम सागर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह साइबर जगत में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि फैसले में शीर्ष अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि वह पॉक्सो कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री शब्द का इस्तेमाल करे, ताकि जमीनी हकीकत और इस अपराध की गंभीरता एवं इसके विस्तार को सही तरीके से परिलक्षित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि, यह बेहद महत्वपूर्ण क्षण है। साइबर जगत में बच्चों को पग-पग पर खतरा है। जहां आदमी की खाल में छिपे भेड़िये बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी सामग्रियों की तलाश में रहते हैं। ये बच्चों के यौन शोषण के वीडियो डाउनलोड करते हैं, इन्हें देखते हैं और दूसरों से साझा करते हैं। लेकिन इस फैसले के बाद अब इस तरह के विकृत तत्व अपने घर में अकेले में भी इस तरह के वीडियो देखने व् साझा करने पर बच नहीं पाएंगे।
ज्ञात हो कि, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने जनवरी 2024 में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मद्रास हाई कोर्ट ने बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करने व उन्हें देखने को पॉक्सो और सूचना तकनीक (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध नहीं मानते हुए 28 वर्षीय आरोपी के खिलाफ मामले को खारिज कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट ने आईटी व पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना कर रहे आरोपी को बरी करने के लिए केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था।
शीर्ष अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए याची और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि, भारत ने दुनिया भर में फैले और संगठित अपराधों की रोकथाम और उससे बच्चों की सुरक्षा के लिए एक बार फिर दुनिया को रास्ता दिखाते हुए एक विस्तृत रूपरेखा की आधारशिला रखी है। यह एक दूरगामी फैसला है, जिसका असर पूरी दुनिया में होगा।
संगठित अपराधों और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के मामले में यह फैसला इतिहास में अमिट रहेगा। जब भी कोई व्यक्ति बच्चों के अश्लील वीडियो या उनके यौन शोषण की सामग्रियों की तलाश करता है या उन्हें डाउनलोड करता है तो वह वस्तुत: बच्चों से बलात्कार की मांग को बढ़ावा दे रहा होता है। यह निर्णय बाल पोर्नोग्राफ़ी से जुड़ी हमारी उस पारंपरिक समझ को भी तोड़ता है जो इसे वयस्कों के मनोरंजन के तौर पर देखती है।
इस आदेश के बाद आमजन बच्चों के यौन शोषण और इससे जुड़ी सामग्रियों को एक अपराध के तौर पर देखना शुरू करेंगे।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने जनवरी 2024 में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अदालतों को यह भी आदेश दिया कि वे अदालती कार्रवाइयों एवं आदेशों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बजाय बाल यौन शोषण व दुर्व्यवहार सामग्री शब्द का प्रयोग करें। खंडपीठ ने कहा कि बच्चे के साथ यौन शोषण व उत्पीड़न की एक भी घटना उसे अवसाद में धकेल देती है। जब-जब उसके शोषण व उत्पीड़न की तस्वीरें या वीडियो देखे या किसी के साथ साझा किए जाते हैं, तब-तब यह बच्चे के अधिकारों व उसकी गरिमा का उल्लंघन है।
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