संतोष कुमार/वैशाली (बिहार)। मूल रूप से बिहार राज्य के भागलपुर की रहने वाली एक विवाहिता स्नेहा ने बीपीएससी (Bihar Pradesh Service Comission) 64वीं परीक्षा में काफी कठिन दौर से रू ब रू रहकर सफलता पाई है। अब स्नेहा के शब्द उसके उत्साह को प्रत्यक्ष दर्शाने लगा है। मीडिया को अपनी इस दुर्लभ सफलता की जानकारी देते हुए स्नेहा बताती है कि किस तरह उसने इस कठिन दौर का सामना किया। काफी मुश्किलें भी आई। स्नेहा वर्तमान में वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर स्थित स्थानीय टाउन स्कूल की शिक्षिका भी है कहती हैं कि मास्टर डिग्री और एमएड की भी डिग्रियां होने के बावजूद उनका सर्विस कमीशन के प्रति रुझान था। अभिभावकों की रजामंदी के खिलाफ शादी करना स्नेहा के लिए एक सामान्य बात नहीं थी। उसने बताया कि वह नहीं जानती कि उसके ससुर जो एक चर्चित चिकित्सक भी है, उन्होंने जो टिप्पणी स्वरूप कुछ शब्द कहे उन शब्दों को स्नेहा ने पॉजिटिव लिया और निष्ठा से प्रयास करती हुई सफलता तक पहुंची। इस दौरान उसने अपनी जवाबदेही भी बखूबी निभाई। अपनी नानी शुशील देवी को स्नेहा सबसे अधिक श्रेय देती है। उन्होंने हर पल घर में इकलौते बच्चे की देखरेख में स्नेहा का भरपूर सहयोग किया। जिससे स्नेहा ने सफलता की राह आसान कर ली। हालांकि वह बताती है कि उसके पति डाक्टर एस पी चन्द्रा और ससुर समेत सभी उसकी इस सफलता से बेहद खुश हैं, लेकिन अनलोगों को बहू से इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं रहा हो।
उम्मीद थी कि पुलिस सेवा में मिले मौका, बन सकी एडीएसएस
548वें रैंक के साथ सफलता का रसास्वादन कर नाम सोहरत बटोर रही स्नेहा को उम्मीद थी कि वह पुलिस विभाग में डीएसपी का पद हासिल हर हाल में करेगी। घरेलू जवाबदेही की वजह और पेशेवर होने के कारण समय प्रबंधन में काफी दिक्कतें आईं। जिसकी वजह से सफलता तो मिली लेकिन असिस्टेंट डारेक्टर सोशल सर्विस यानी एडीएसएस के पद पर। यह स्नेहा के उत्साह को थोड़ा कम करता दिखा। फिर भी बेहद विश्वास से भरी हुई है स्नेहा। इसका असर आगे जीवन पर शायद नहीं होगा। जैसा कि स्नेहा के शब्द दर्शाते है। स्नेहा ने सभी अभ्यर्थियों तथा खासकर इस परिस्थिति में रही महिलाओं को प्रेरित करते हुए बताती है कि जैसा प्रयास उसने किया सभी को करने का साहस जुटाना चाहिए। स्नेहा कहती है कि जो सोंच लगा वह निश्चित पा भी लेगा। स्नेहा की सफलता इसी सोच से जुडी है। एक बार चिंता मे डूबी थी स्नेहा जब कमीशन की तैयारियों के लिए एक संस्थान के सम्पर्क में थी तो पंद्रह हजार शुल्क की मांग हुई थी। संपन्न परिवार से जुड़े होने और खुद शिक्षिका होने के बावजूद स्नेहा को पंद्रह हजार ने चिंता में डाल दिया, लेकिन सफलता ने स्नेहा के आत्मविश्वास को बहुत बढ़ा दिया। पति एनएमसीएच पटना में कार्यरत हैं। मायके के विषय में बताते हुए नानी की बड़ी तारीफ करती है स्नेहा। जिन्होंने बच्चे को संभालने से लेकर अन्य जवाबदेही को निभाने में सहयोग किया।
माँ अंजू गुप्ता और पिता एस के गुप्ता की संतान स्नेहा की स्कूली शिक्षा दिल्ली, बड़ौदा, पुणे, इलाहाबाद और श्रीनगर तक में विवशता वश हुई। पिता सैन्य सेवा में सेवारत थे। स्कूल से छुट्टी के बाद अपने बच्चे से मुखातिब नहीं होकर स्नेहा सीधे स्टडी रूम मे पहुंचती थी। अहले सुबह करीब तीन बजे से सात आठ बजे तक पढ़ती रहती थी। जबतक बच्चा सोकर नहीं उठ जाता था। स्नेहा की बीपीएससी 64 वीं में सफलता उसके संघर्षों की कहानी कहती है। पहचान वालों में स्नेहा की सफलता से खुशी का माहौल है। बधाईयों का तांता भी लग रहा है।
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