रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। आपको लग रहा होगा कि यह मामला तो खेत खाए गदहा, मार खाए जोलहा वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। यह कई मायनो में सत्य भी है। अब सरकारी स्कूल के गुरूजी की खैर नहीं है। बोकारो जिला उपायुक्त की चाबुक वैसे विद्यालयों के शिक्षकों तथा प्राचार्यों पर चलने लगा है, जिस विद्यालय के बच्चों का परीक्षा परिणाम बेहतर नहीं रहा है।
बोकारो जिला उपायुक्त (डीसी) जाधव विजया नारायण तो यही मान रही है कि गदहों के खेत खाने का दोषी निगरानी करने वाला जोलहा ही है। बोकारो जिले में ऐसा पहली बार हुआ है कि मैट्रिक की परीक्षा में उम्मीद से भी ज्यादा ख़राब रिजल्ट आने के कारण उपायुक्त ने एक साथ 61 विद्यालयों के प्राचार्यों को कारण बताओं नोटिस जारी करते हुए इन स्कूलों के प्राचार्य सहित शिक्षकों के वेतन तक पर अगले आदेश तक रोक लगा दिया है।
इस संबंध में बोकारो के जिला क्षिक्षा पदाधिकारी ने बताया कि जिले के 61 विद्यालयों में 90 प्रतिशत छात्र फेल हो गए है। इस पर डीसी ने तत्काल प्रभाव से प्राचार्य सहित शिक्षकों के वेतन पर रोक लगाते हुए पूछा है कि इसका कारण बताएं। डीसी का मानना है कि इन स्कूलों के प्राचार्य सहित शिक्षकों ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया है।
छात्रों को परीक्षा के लिए बेहतर तैयारी नहीं कराई गयी है। डीसी ने अपने पत्र में लिखा है कि परीक्षा से पूर्व छात्रों से प्री-बोर्ड में प्रैक्टिस द्वारा प्रश्न पत्र हल नहीं कराये गए। स्कूल के कमजोर छात्रों को चिन्हित कर उनका रिमेडियल क्लासेस नहीं लिया गया।
शिक्षकों द्वारा अपने कर्तव्य में बरती गयी लापरवाही का यह नतीजा है कि मैट्रिक की परीक्षा के परिणाम में बोकारो का राज्य में 19वां स्थान है। यह बोकारो जिला बनने के बाद अब तक का सर्वाधिक ख़राब प्रदर्शन है। डीसी ने यह भी जानना चाहा है कि जितने भी विद्यार्थी स्कूल में पंजीकृत हुए उतने परीक्षा में शामिल क्यों नहीं हुए?
डीसी ने कारण बताओं नोटिस का जबाब 24 घंटे के अंदर जिला क्षिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय को उपलब्ध करने का निर्देश दिया है। देखना यह है कि डीसी के इस कदम का बोकारो के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर क्या असर पड़ता है? फ़िलहाल डीसी के इस कदम से निश्चित हीं जिला के शिक्षा विभाग में हड़कंप तो मचा है।
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