जातीय जनगणना और आरक्षण के मुद्दे पर क्यों खामोश है केंद्र सरकार
सीपीआई के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपती और प्रधानमंत्री के नाम सौंपा मांग पत्र
मुश्ताक खान/मुंबई। गुरुवार को भारी बारिश के बावजूद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मुंबई में जातीय जनगणना कराने और आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को बढ़ाने की मांगों को लेकर बांद्रा कलेक्टर कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया।
इस दौरान सीपीआई के 7 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल जिला अधिकारी द्वारा प्रतिनियुक्त श्रीमती अरुणा जाधव अपर तहसीलदार (महसूल) मुंबई उपनगर, बांद्रा से मिलकर राष्ट्रपती और प्रधानमंत्री के नाम मांग पत्र सौंपा।
प्रतिनिधिमंडल में सीपीआई सचिव कामरेड मिलिंद रनाडे, सचिवमंडल सदस्य कामरेड नसीरूल हक, का. विजय दलवी, राज्य पारिषद सदस्य का. अशोक सूर्यवंसी, जिला परिसद सदस्य का. चंद्रकांत शिंदे के अलावा अन्य साथी मौजूद थे।
सरकार की लाभकारी योजनाओं से 90 प्रतिशत गरीब वंचित
कलेक्टर कार्यालय पर सभा को संबोधित करते कामरेड चारुल जोशी ने कहा की भारत में जातीय जनगणना और आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाना चाहिए। चूंकि मौजूदा केंद्र की मोदी सरकार के विकास की पोल परत दर परत खुलती जा रही है। कामरेड नसीरूल हक ने कहा केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकार उनको चलाने वाला सचिव ही होता है। उन्होंने कहा की फिलहाल केंद्र सरकार में 89 सचिव हैं, इनमें एससी और एसटी के सिर्फ 4 ही सचिव कार्यरत हैं।
वहीं कुल 93 अपर सचिव हैं जिसमें एससी और एसटी के मात्र 11 अपर सचिव हैं। इस दोनों में पिछडे वर्ग से एक भी सचिव नहीं है। यही कारण है की विकास की योजना जब बनाती है तो इन्हीं जातियों में रहने वाले 90 प्रतिशत गरीब जनता को सरकारी व मौलिक योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।
यूनिवर्सिटी से मिली पीएचडी की उपाधि वह आयोग्य कैसे ?
गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के चार सीट पर बहाली हुई है। इनमें पिछड़े वर्ग की सीट को रिक्त छोड़ दिया गया क्यों ? जबकि उसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि से सम्मानित 100 से अधिक पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों के योग्यता पर सवाल उठाते हुए उन्हें छांट दिया गया। ऐसे अनगिनत मामले हैं जिसके कारण जातीय जनगणना की मांग तेज होती जा रही है।
प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जितनी भागीदारी उतनी हो हिस्सेदारी! कामरेड मिलिंद रनाडे ने कहा फिलहाल पूरे भारत में 31 लाख सरकारी पद खाली है जिसे भरने में केंद्र सरकार आना कानी कर रही है। इस लिहाज से सीपीआई द्वारा तीन प्रमुख मांगों को लेकर यह प्रदर्शन किया है।
केंद्र सरकार क्यों छुपा रही है जातीय जनगणना का आंकड़ा
सीपीआई के प्रदर्शनकारियों की तीन प्रमुख मांगों में, जातीय जनगणना, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाना और केंद्र अथवा राज्य सरकारों में खाली 31 लाख पद पर तुरंत बहाली होनी चाहिए। इसके अलावा मांग है कि कॉन्ट्रैक्ट पद्धति खत्म कर सीधा स्थायी बहाली हो। जैसे बिहार में जातीय जनगणना हुआ और वहां आरक्षण की सीमा को भी बढ़ाया गया, लेकिन यह भाजपा के लोग हाई कोर्ट में जा कर उसे निरस्त करा दिए। भाजपा के लोग जातीय जनगणना और आरक्षण के विरोधी हैं।
2011 में जनगणना हुआ था जिसमें सभी जातियों गणना हुई थी। जिसका प्रकाशन 2014 में मोदी सरकार आने के बाद हुआ लेकिन उसमें जाती के जनगणना को छुपा लिया गया। उसे बाहर नहीं आने दिया, उसमें पिछड़ा और दलित की आबादी कितना है उसे बाहर आने से क्यों रोका गया?
यही कारण है कि सीपीआई के लोग कहते हैं की मोदी सरकार पिछड़ा, दलित और आदिवासी विरोधी है। इस सभा को कामरेड चंद्रकांत शिंदे, कामरेड चंद्रकांत देसाई, कामरेड दादाराव पाटेकर, कामरेड शंकर कुंचिकोरवे, कामरेड मजीद शेख और अन्य नेताओं ने संबोधित किया।
Tegs: #Strong-demonstration-by-cpi-at-the-collectors-office
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