अधिमास में ही श्रीहरि ने लिया था भगवान नरसिंह का अवतार

इसी मास में हुआ था हिरण्यकश्यप का वध

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर के श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् नौलखा मन्दिर में 18 जुलाई को श्रीमद्भागवत का प्रारंभ किया गया।

पुरूषोत्तम मा‌स के शुभारंभ के अवसर पर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने अपने मुखारविंद से श्रीमद्भागवत के प्रथम दिन की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि सनातन धर्म में अधिमास से जुड़ी कई तरह की पौराणिक कथा है। उन्हीं कथाओं में एक है नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप का वध प्रकरण। उन्होंने कहा कि एक बार हिरण्यकश्यप वन में भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था।

उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए। तब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन अमरता का वरदान देना ब्रह्मा जी के लिए निषिद्ध था। तब ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वरदान मांगने को कहा। उनके इस वचन को सुनकर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से एक ऐसा वरदान मांगा, जिससे संसार का कोई भी नर-नारी, पशु-पक्षी, असुर और न ही कोई देवता उसे मार सके।

इसके साथ ही साल के 12 महीनों में उसकी मृत्यु न हो का वरदान मांग लिया। ब्रह्मा जी से वरदान पाते ही वह स्वयं को अमर मानने लगा और सारी सृष्टि पर अत्याचार करने लगा। उसके बढ़ते अत्याचार को खत्म करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु अधिमास में नरसिंह अवतार लेकर प्रकट हुए और शाम के समय हिरण्यकश्यप को देहरी के बीच उसका सीना चीरकर मृत्यु के घाट उतार दिया। तब से अधिमास का विशेष महत्व माना गया है।

पुरुषोत्तम मास में करें पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ

स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि इस पुरूषोत्तम मा‌स में अपने पितरों को प्रसन्न करने हेतु पूजा पाठ आदि करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भागवत के चार अक्षर का तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग है जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है। साथ ही कहा कि श्रीमद् भागवत दिव्य कल्पतरु है। यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान कर जीव को परम पद प्राप्त कराता है।

श्रीमद्भागवत केवल पुस्तक नहीं साक्षात कृष्ण स्वरुप है

उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत केवल पुस्तक नहीं साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है। उन्होंने कहा कि एक बार ब्रह्मा जी ने समस्त यज्ञ, व्रत, तप को तराजू के एक पलड़े पर और दूसरे पलड़े पर श्रीमद्भागवत पुराण को रखा तो श्रीमद्भागवत का पलड़ा झूका रहा।

स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने भक्ति देवी और नारद भगवान के मिलन और भक्ति देवी के दोनों पुत्रों ज्ञान और वैराग्य की रोचक कथा सुनाते हुए कहा कि कलयुग में हरिनाम संकीर्तन से सबकुछ मिल जाता है। महाराज ने आज की कथा में गोकर्ण, धुंधकारी और राजा परीक्षित के जन्म को विस्तार से बताया। स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने श्रीमद्भागवत कथा के सम्बन्ध में यह भी कहा कि सर्व प्रथम राजा परीक्षित जी शुक्रताल में शुकदेव जी महाराज से यह कथा सुने।

श्रीमन्नारायण के घोष के साथ निकाली गई भव्य कलश यात्रा

इसके पहले 18 जुलाई की सुबह दस बजे मंदिर प्रांगण से जय श्रीमन्नारायण के घोष से भव्य कलश यात्रा निकाली गई। श्रद्धालु भक्तों ने अपने सिर पर कलश लेकर सोनपुर नगर की परिक्रमा करते हुए गजेन्द्र मोक्ष घाट पहुंच कर स्वामी लक्ष्मणाचार्य के साथ श्रीनारायणी माता की पूजा एवं जल मातृका, थल मातृका, स्थान मातृका पूजन करते हुए जलाहरण कर गजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् में परिक्रमा किया।

इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं सहित दिलीप झा, फूल झा, रतन कुमार, श्रीमन्नारायण ओझा, समाजसेवी लालबाबू पटेल, भोला सिंह आदि ने कथा श्रवण व संचालन में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई।

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