मुश्ताक खान/ कुशीनगर। भगवान गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थल कुशीनगर में दो अलग-अलग देशों की संस्कृतियों का मिलन, अपने आप में अनोखा रहा। इसे गंगा जमुनी तहजीब भी कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश का कुशीनगर मिनी थाईलैंड बन गया था। मौका भगवान बुद्ध की पवित्र धातु (अस्थि) शोभा यात्रा का था, बौद्ध परिपथ पर थाई वेशभूषा में सजे नागरिक और कलाकार हर किसी को आकर्षित कर रहे थे। वहीं शोभा यात्रा में हथुआ स्टेट का राजघराना और थाईलैंड के राजपरिवार के प्रतिनिधि के रूप में पूर्व राजदूत मौजूद थे।
भगवान बुद्ध की नगरी कुशीनगर के शोभा यात्रा में थाईलैंड के राजपरिवार द्वारा विशेष रूप से बिहार, हथुआ महाराज बहादुर मृगेंद्र प्रताप साही परिवार को निमंत्रित किया गया था। इस शोभा यात्रा में हथुआ स्टेट के प्रिंस कौस्तुभ मणि प्रताप शाही के अलावा महाराज बहादुर की धर्म पत्नी पूनम साही भी मौजूद थीं। थाई मोनेस्ट्री में भगवान बुद्ध की विशेष पूजा के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
इस कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि आधुनिकता के इस दौर में भी हाथी- घोड़े और गाजे-बाजे के साथ निकली पवित्र बुद्ध धातु शोभा यात्रा मुख्य मंदिर पर पहुंच कर समाप्त हुई, जहां थाई बौद्ध भिक्षुओं और गणमान्य नागरिकों ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर थाई राजपरिवार द्वारा भेजा गया चीवर चढ़ाया। इस शोभा यात्रा में थाई कलाकरों की थाई नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा। भगवान बुद्ध की अस्थियों को बुद्ध प्रतिमा के पास रखने के बाद उसे पुनः थाई मंदिर ले जाया गया। जहां रात भर विशेष पूजा की गई।
उल्लेखनीय है कि भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण स्थल कुशीनगर में हर साल बुद्ध धातु शोभा यात्रा निकाली जाती है। थाई मोनेस्ट्री द्वारा आयोजित होने वाले पवित्र बुद्ध धातु शोभा यात्रा में पूरे विश्व के बौद्ध धर्म को मानने वाले शामिल होते है। थाई मोनेस्ट्री द्वारा भगवान बुद्ध की पवित्र धातु शोभा यात्रा काफी धूमधाम से निकाली गई। इस शोभा यात्रा में बौद्ध धर्म के मानने वाले विश्व के विभिन्न देशों के श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।
थाई मंदिर से निकला बुद्ध धातु शोभा यात्रा भगवान बुद्ध के मुख्यमंदिर पर जाकर समाप्त हुई, जहां बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध की विशेष पूजा की। थाईलैंड की पारंपरिक वेश-भूषा में सजे-धजे कलाकार शोभा यात्रा के आगे-आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे, जिससे थाईलैंड की संस्कृति झलक रही थी। शोभा यात्रा में शामिल महिला और पुरुष कलाकार थाई धुनों पर नृत्य करते चल रहे थे। इस भव्य शोभा यात्रा को यादगार बनाने के लिए कई ड्रोन कैमरे भी लगाये गये थे।
बता दें कि शोभायात्रा के बाद सबसे पहले थाई मंदिर में विभिन्न देशों को बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध की विशेष पूजा की और इसके बाद बौद्ध भिक्षुओं के मंत्रोच्चारण के बीच भगवान बुद्ध की अस्थियों को लेकर रथ पर सवार होकर भगवान बुद्ध के मंदिर के लिए निकले। दर्जनों रथों पर सवार होकर विदेशी मेहमान और बौद्ध भिक्षु मंदिर पहुंचे, जहां भगवान बुद्ध की विशेष पूजा की गई। इसके बाद थाई राजपरिवार द्वारा भेजा गया चीवर चढ़ाया गया।
शोभा यात्रा के आयोजक पी खोंमसोंग ने बताया की यह कार्यक्रम थाईलैंड और भारत के संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ पर्यटन को बढ़ावा देने में कारगर साबित होगा। इस कार्यक्रम में विशेष रूप से शामिल हुए हथुआ स्टेट के प्रिंस कौस्तुभ मणि प्रताप शाहि ने कहा की यह केवल धार्मिक यात्रा नहीं है बल्कि दो संस्कृतियों का मिलन भी है इसके प्रचार प्रसार से पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा।
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