होली पर विशेष आलेख

अजीत जायसवाल/पेटरवार (बोकारो)। बीते 24 मार्च की रात 11 बजकर 26 मिनट उपरांत बुराई का प्रतीक होलिका दहन के बाद 25 मार्च को रंगो व खुशियों का पावन पर्व होली क्षेत्र में धूमधाम से मनाई गयी है।

बता दें कि, होलिका दैत्यराज हिरणकश्यप की बहन थी। उसे ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि आग में वह कत्तई जल नही सकती। लेकिन उसके मन में दुर्विचार उत्पन्न हुई और अपने वरदान का सदुपयोग के जगह दुरुपयोग कर बैठी। जिसका भयंकर परिणाम उसे मिला।

पौराणिक कथा के अनुसार हुआ यूं कि प्रभु विष्णु भक्त प्रह्लाद को पिता हिरणकश्यप ने आग में जलाकर मारने के उद्देश्य से अपनी बहन से प्रह्लाद को गोद में बिठाकर आग लगा दिया। यहां मन में दुर्भावना से ग्रस्त गलत सोच जो था। इस दौरान होलिका जलकर राख हो गई, जबकि प्रभु भक्त बालक प्रह्लाद सुरक्षित आग से बच निकला।

इसलिए मनुष्य को संसार में किसी के प्रति गलत भावना, गलत विचार नहीं रखना चाहिए। इसका परिणाम मनुष्य को अवश्य भुगतना पड़ता है। होलिका दहन के दूसरे दिन खुशियां मनाए जाने को सर्वत्र रंगों, अबीर, गुलाल से होली खेलने की परंपरा कायम है। मेरी ओर से सबों को पावन पर्व होली की ढेर सारी मंगल कामनाएं।

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