अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला न झाड़े सरकार
एम.खान/एस.पी सक्सेना (मुंबई)। तो लॉक डाउन ही एक मात्र विकल्प है कोरोना के कहर से लोगों को बचाने का? क्या सिर्फ लॉक डाउन लगाने से सरकार (Government) की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? लॉक डाउन के खत्म होने का इंतजार और भी लंबा होता जा रहा है।
ऐसे में घर बैठे देशवासियों को एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जनता को घर खर्च, स्कूल फीस, लोन का स्टॉलमेंट, दुकान व मकान का किराया, बिजली बिल इत्यादि के लिए जद्दोजेहद करना पड़ रहा है। चुंकि जरुरतमंदो के पास पैसे नहीं है। बेरोजगारी का दंश झेल रहे लोगो के पास कहाँ से आएगा पैसा?
अगर यही हाल रहा तो लोग कोरोना से कम तनाव और भूखमरी से जरूर मर जाएंगे, क्योंकि देश की आम जनता के पास अब कुछ भी नहीं। मौजूदा केंद्र और राज्य सरकारों को लॉक डाउन का विकल्प तलाशना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में लॉक डाउन वन की तरह लोग सड़कों पर उतर सकते हैं। जबकि तिसरा वेब अभी आना बाकी है।
ज्ञात हो कि सरकार ने 21 दिनों का पहला लॉक डाउन की अचानक घोषणा की थी, उसका अंजाम भी देख लिया। उसका स्याह पहलू भी देखा गया। तब रोज कमाने खाने वाले मजदूर तबके के लोग और माध्यम वर्गीय जनता ने अपनी समझ बुझ का परिचय दिया था।
इसके बाद भी जब सर से पानी उपर हुआ तो लोगों के सब्र का बांध टुटने लगा, जिसे न केवल देश बल्कि पुरी दुनियां ने देखा। उसी दौरान देश के दिल वाले और दौलत वालों में फर्क भी देखा गया। दिल वालों ने इस महामारी की परवाह किये बिना सड़कों पर उतर कर लोगों की सेवा और मदद की। वहीं दौलत वाले मामूली राशन कीट देकर फोटो खिंचवाते नजर आए। एक कीट देकर दर्जनों अखबार, व्हट्सअप और सोशल मिडिया में अपनी राजनीत चमकाने वाले अब दिखाई नहीं देते। ऐसा धन किस काम का जो वख्त पर किसी मजबूर या बेसहारों के काम न आए।
* कमाई के जुगाड़ में लगी सरकार *
कहते हैं “भुखों ने नंगों को नोच खाया,” कुछ ऐसी ही स्थिति मौजूदा सरकारों की भी है। लॉक डाउन का विकल्प ढ़ुंढने के बजाए दंड वसूली करने का अलग-अलग तरीका अपना लिया गया है। मास्क ना पहनों तो फाइन। दुकान खोलो तो फाइन। बाहर निकलो तो फाइन। शादी में ज्यादा लोग आए तो फाइन। गाड़ी, रिवशा या टेक्सी में ज्यादा लोग तो फाइन। वया फाइन के लिए लॉक डाउन लगाया गया है?
सरकार ने जनता को निकम्मा बना कर घर पर बैठा दिया है तो उसका खर्च भी उठाए। कैसे चलेगा लोगों का 7978607465@upi जीवन ? वया यह सोचना सरकार का फर्ज नहीं? क्या सरकार को नहीं चाहिये कि लोगों के बच्चों की स्कूल फी, बिजली बिल, गैस बिल, घर का व दुकान का किराया, होम लोन का स्टॉलमेंट, घर परिवार का राशन, दुध, सब्जी इत्यादि में किसी तरह सहयोग करे या छूट दिलाए।
* लॉक डाउन वन की झलक *
केन्द्र की मोदी सरकार ने 21 दिनों के पहले लॉक डाउन में कहा था की कोरोना से हम जीतेंगे, नतीजा वया निकला? लॉक डाउन का समय बढ़ता गया, बढ़ता गया। करीब एक साल तक चले लॉक डाउन में लोग बर्बाद हो गए। गरीबों व माध्यम वर्ग के लोगों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई। उस दौर में लोग हजार दो हजार किलो मीटर की पैदल यात्रा करने पर मजबूर हुए और किया भी।
मौजूदा समय में कोरोना का दूसरा लहर चल रहा है। इससे भी देशवासी थक चुके हैं। लिहाजा फिर से वैसी ही स्थिति पैदा हो रही है। यहां ताली -थाली से काम नहीं चलेगा। यहां तो पापी पेट का सवाल है। अभी कोरोना का तीसरा वेब आना बाकी है। सही मायनों में लॉक डाउन लुंगी की तरह है जो उपर से तो टाईट है जबकि निचे से पूरा का पूरा ढीला । लॉक डाउन में हर काम हो रहा है और हर दुकानें खुल रही हैं।
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