चिन्मय विद्यालय में छः दिवसीय ज्ञाण-यज्ञ का शुभारंभ

त्याग से बड़ा कोई अमृत तत्व नहीं है-स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती

कठिन निर्णय ने श्रीराम को मर्यादा पुरूषोत्म बना दिया-बी के तिवारी

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। बोकारो के सेक्टर पांच स्थित चिन्मय विद्यालय के तपोवन सभागार में 13 जून को चिन्मय मिशन बोकारो के तत्वाधान में 6 दिवसीय ज्ञान-यज्ञ की शुरुआत की गयी। जिसके आचार्य चिन्मय मिशन के वरीय आचार्य स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती हैं।

ज्ञात हो कि, स्वामीजी छः दिवसीय ज्ञाण-यज्ञ में अयोध्या कांड के विशेष प्रसंग पर अपना वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे जो आज के व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र के लिए अत्यंत उपयोगी है।

अतिथियों का पूर्ण कुंभ एवं तिलक मिश्री से स्वागत

इस अवसर पर प्रथम दिवस प्रवचन स्थल पर पहुंचने वाले सभी गणमान्य अतिथियों को तिलक मिश्री अर्पित कर स्वागत किया गया तथा परम स्वामी जी का स्वागत पूर्ण कुंभ दर्शन एवं वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ किया गया। स्वामीजी की आगमन पर विद्यालय के नौनिहालों ने श्रीमद् भगवद् गीता के पुरुषोत्तम योग का संवेत पाठ किया। इसके पश्चात सभी गणमान्य अतिथियों को पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया गया।

परंपरा अनुसार ज्ञान-यज्ञ की शुरुआत मुख्य अतिथि बोकारो इस्पात संयंत्र के प्रभारी निदेशक बी.के तिवारी, अधिशासी निदेशक मानव संसाधन विभाग राजश्री बनर्जी एवं अन्य गणमान्य अतिथियो ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सचिव चिन्मय मिशन बोकारो हरिहर राउत ने श्रोता सहित सभी उपस्थित अतिथियो का स्वागत किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि बी.के तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र ही तो हमारे राष्ट्र की संस्कृति के आधार हैं। अयोध्या कांड के प्रसंग तो आज के तनावपूर्ण जीवन में काफी उपयोगी है। उन्होंने कहा कि अयोध्या कांड से ही हमें प्रेरणा मिलती है कि कभी-कभी अप्रिय निर्णय लेना समाज, राष्ट्र एवं व्यक्ति के हित के लिए काफी उपयोगी होता है। उन्होंने कहा कि केकई श्रीराम को कौशल्या से अधिक स्नेह करती थी। अपने पुत्र भरत् से अधिक प्रेम श्रीराम से करती थी, लेकिन उनका एक निर्णय कि श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास एवं भरत् को राजगद्दी, उन्हें जीवन भर के लिए कलंकिनी बना दिया।

उन्होंने शंकर की तरह इस विष का पान किया। परंतु श्रीराम के 14 वर्ष का वनवास ही उनके मर्यादा पुरुषोत्तम रूप को निखारा। कहा कि प्रेम, त्याग, तपस्या का चर्मोत्कर्ष ही अयोध्या कांड है। श्रीगणेश एवं गुरु परंपरा का स्मरण करते हुए स्वामी अद्वैतानंद ने आज के प्रवचन की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि त्याग से बड़ा कोई अमृत तत्व नहीं है। इसका सुंदर मूर्त रूप यदि कहीं देखना हो तो वह है श्रीराम चरित मानस का अयोध्या कांड। इसमें भगवान श्रीराम पिता के वचन पालन के लिए राज का त्याग कर 14 वर्ष के कठिन वनवासी जीवन का व्रत लेते हैं और वन के कांटों भरे पथ पर विचरण करने के लिए अयोध्या का त्याग करते हैं।

कहा कि जनक नंदनी राजकुमारी सीता पातिव्रत्य धर्म की उच्च प्रतिष्ठा को स्थापित करती हुई राज-सुख का त्याग कर अपने पति की अनुगामिनी बनती है। लक्ष्मण जी अपने भाई एवं आराध्य की सेवा के लिए राजमहल का त्याग करते हैं और धर्मात्मा भरत धर्म कि प्रतिष्ठा के लिए राज सिंहासन पर साक्षात धर्म-स्वरुप अपने बड़े भाई का अधिकार है, इस धर्म कि प्रतिष्ठा के लिए सिंहासन का त्याग कर 14 वर्ष तक नंदीग्राम में तपस्वी जीवन जीते हैं। उन्होंने कहा कि आज के लोभ मोह, ईष्या, द्वेश एवं कटुता भरे संसार में त्याग, बलिदान, प्रेम, आदर्श भातृत्व प्रेम, मातृ-पितृ भक्ति एवं तपस्या का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए अयोध्या कांड का अनुशीलन अति आवश्यक है ।

सम्मानित किए गए मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि

बताया जाता है कि मुख्य अतिथि के उद्वोधन के बाद स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती महाराज ने मुख्य अतिथि तिवारी एवं अनिता तिवारी, विशिष्ट अतिथि राजाश्री बनर्जी को समृति चिन्ह अपने कर कमलों से भेट कर सम्मानित किया।
इस अवसर पर चिन्मय मिशन बोकारो की आवासीय आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती, विद्यालय अध्यक्ष बिश्वरूप मुखोपाध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आर एन मल्लिक, प्राचार्य सूरज शर्मा, उप-प्राचार्य नरमेन्द्र कुमार एवं हेडमास्टर गोपाल चंद्र मुंशी सहित विद्यालय के सभी शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, पूर्व छात्र, अभिभावक व अन्य उपस्थित थे। मंच का संचालन विद्यालय की अधिशासी मानव संसाधन सुप्रिया चैधूरी व शिक्षिका सोनाली गुप्ता ने किया।
संगीत विभाग की ओर से भजनों व श्लोकों की प्रस्तुति के दौरान जैसे पूरा विद्यालय परिसर पुनीत स्वरों से गुंजायमान हो उठा।

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