सच्चे और ईमानदार लोग सभी को अच्छे लगते हैं। क्योंकि उनकी सच्चाई और ईमानदारी ही उन्हें सच्चा इंसान बनाती है। उनकी इसी खूबी के लोग कायल होते हैं। तभी तो उनकी यही अच्छाई उन्हें महान बनाती है। जीवन भर अपनी अच्छाई से लोगों का दिल जीतने वाले लोग जिंदगी के बाद भी लोगों के दिलों में विद्यमान रहते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि इंसान की सच्ची परख उसकी मौत के बाद ही होती है।
मरने के बाद ही लोग उस इंसान की अच्छाइयों और बुराइयों का बखान करते हैं। क्योंकि इंसान जब तक जिंदा रहता है लोगों को उसकी कद्र नहीं होती। उसके मरने के बाद ही लोगों को इंसान की कद्र और उसकी अहमियत का पता चलता है। इस तरह के अनगिनत उदाहरणों से यह समाज और देश भरा पड़ा है।
जो अच्छा और सच्चा होता है, उसकी चर्चा उसके जाने के बाद कुछ ज्यादा ही होती है। उसकी अहमियत का पता भी तभी चलता है। तब लोगों को अफसोस होता है कि उस इंसान के जीवित रहते हुए आखिर उन्होंने उसकी कद्र क्यों नहीं की। खैर, यह तो मानव स्वभाव है। यही प्रथा और परंपरा सदियों से चली आ रही है।
मेहनत तो सभी करते हैं। पर ईमानदारी से की गई मेहनत ही इंसान को सफल बनाती है। उसे जीवन के शिखर तक पहुंचाती है। ऐसे ही परिश्रमी, सच्चे, ईमानदार और जिंदादिल इंसान थे शंकरलाल जयचंद कोठारी। जिनकी जीवन गाथा से हम आप सभी को रूबरू कराएंगे। कहा गया है कि सोना तपने के बाद ही आकार लेता है। जीवन भी सोने के समान है। जो भी इंसान जितना तपता है, उसमें उतना ही अधिक निखार आता है।
शंकरलाल जयचंद कोठारी को जानने वाले आज भी उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं। यह शंकरलाल कोठारी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। अन्यथा इस दुनिया से बिदा हो जाने के बाद आखिर कौन किसे याद करता है।
शंकरलाल कोठारी सन 1958 में मायानगरी बंबई आए और मुंबई के होकर रह गए। यह उनका कुसूर नहीं था। इस मायानगरी में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसी का होकर रह जाता है। ऐसे बिरले ही हैं, जो इस मायानगरी के मोह और इसकी चकाचौध को त्याग कर अन्यत्र चले जाते हैं।
बेहद गर्म मिजाज और दिल के भाउक होने के साथ सतह अपनी धुन के पक्के शंकरलाल ने अपने जीवन में कभी किसी का निरादर नहीं किया। अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान देना उनकी फितरत थी। अपने जीवन में उन्होंने चाय की कप – बसी धोने से लेकर घर – घर जाकर बर्तन बेचने का काम किया। सेल्स बॉय की नौकरी भी की। किसी काम से उन्होंने कभी कोई परहेज नहीं किया।
उनकी नजर में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं था। वे काम को अपनी पूजा मानते थे। शंकरलाल कोठारी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर उनके द्वारा अपनों और बेगानों के लिए किए गए कार्य उनकी शोहरत में आज भी चार चांद लगा रहे हैं। 31 मार्च 2006 को 66 वर्ष की अवस्था में उनका देहांत हो गया। लेकिन उनकी यादें अब भी लोगों के जहन में कायम हैं।
इतना ही नहीं उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से जो संस्थान स्थापित किए, उनकी चमक से पूरा चेंबूर जगमगा रहा है। उनकी पत्नी चंद्रादेवी शंकरलाल कोठारी सहित उनके दो बेटों और एक बेटी का हंसता – खेलता परिवार चेंबूर की धरती पर आबाद है।
मेहनतकश व धार्मिक विचारों के स्वामी शंकरलाल कोठारी के बड़े बेटे लक्ष्मण शंकरलाल कोठारी व छोटे हरीश शंकरलाल कोठारी के अलावा बेटी ललिता विमल जी वागरेचा अपने पिता के सपनों को साकार करने में जुटे हैं।
उनके द्वारा स्थापित संस्थान और कार्य स्थलों के विकास की दिशा में अग्रसर हैं। 1940 में राजस्थान में उदयपुर जिले में स्थित अरावली पर्वत कि सुंदर वादियों में बसा सांयो का खेड़ा गांव में जन्मे शंकरलाल कोठारी ने अपनी पीढ़ी को बहुत कुछ दिया है। खान पान के बेहद शौकीन शंकरलाल कोठारी को देशी खाने के साथ मीठा और तीखा दोनों ही पसंद था। वे किसी भी व्यंजन से परहेज नहीं करते थे।
– मुश्ताक खान
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