ह्यूमेंन ट्रैफिकिंग के खिलाफ सुरक्षित प्रवासन को बढ़ावा संगोष्ठी संपन्न

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन 39 देशों के नागरिक संगठनों का नेटवर्क सहयोगिनी शामिल

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। ह्यूमेंन ट्रैफिकिंग के खिलाफ सुरक्षित प्रवासन को बढ़ावा विषय पर बीते दिनों देश की राजधानी नई दिल्ली में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी में विश्व भर के 39 देशों के ह्युमेंन ट्रैफिकिंग के खिलाफ कार्य कर रहे स्वयंसेवी संस्था के प्रमुख ने अपने विचार व्यक्त किया। उक्त संगोष्ठी में झारखंड के बोकारो जिला में सक्रिय सहयोगिनी प्रमुख भी शामिल हुए।

संगोष्ठी में ह्युमेंन ट्रैफिकिंग के खिलाफ तत्काल एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता पर जोर देते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन के संस्थापक भुवन ऋभु ने नई दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि, मानव दुर्व्यापार भारी मुनाफे वाला एक संगठित अपराध है, जो विशेष रूप से बच्चों और मजबूर युवाओं के शोषण के सहारे फल-फूल रहा है।

इससे निपटने के लिए हमें बहु-आयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें ट्रैफिकिंग के आर्थिक ढांचे को नेस्तनाबूद करना, संगठित आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से उनकी कमर तोड़ना और ट्रैफिकिंग गिरोहों के बारे में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए वैश्विक रजिस्टर रखना, इसके माध्यम से स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुफिया समन्वय को मजबूत करने जैसे कदमों की जरूरत है।

हाल ही में बेड़ियों में डाल कर अमेरिका से भारत भेजे गए और इसी हालात में फंसे अन्य देशवासियों में पसरे डर पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि यह भयावह वास्तविकता इस संगठित अपराध के खिलाफ वैश्विक प्रतिक्रिया की तात्कालिक आवश्यकता को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि, मैं भारत, अमेरिका और अन्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे इन ट्रैफिकिंग गिरोहों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कठोर कार्रवाई शुरू करें।

ट्रैफिकिंग के इस नेटवर्क को खत्म करने के लिए भारत, अमेरिका और उन सभी देशों के बीच जहां से ये गिरोह पीड़ितों को लेकर जाते हैं, के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक है। हमें पीड़ितों से मिली जानकारी का विश्लेषण करना होगा। ऐसे अपराधियों के वित्तीय लेन-देन का पता लगाना होगा और इस अपराध को बढ़ावा देने वाले गिरोहों को ध्वस्त करना होगा। ताकि शोषण के इस दुष्चक्र को तोड़ा जा सके।

ऋभु ने इस सत्य को रेखांकित किया कि प्रवासन मानव स्वभाव की बुनियादी प्रवृत्ति है, जो विकास, अवसरों और प्रगति की तलाश से जुड़ी है। हालांकि, जब इसमें शोषण, जबरन नियंत्रण और धोखाधड़ी जुड़ जाती है, तो प्रवासन मानव दुर्व्यापार में बदल जाता है।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सदस्य और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि, जागरूकता एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले पीड़ितों को यह समझना होगा कि उनका शोषण हो रहा है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना होगा। अक्सर वे अपने साथ हो रही नाइंसाफियों से अनजान रहते हैं।जागरूकता को देश के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाना होगा, ताकि सबसे कमजोर तबकों की आवाज सुनी जा सके, उन्हें सुरक्षा मिले और उनका सशक्तीकरण हो सके।

बोकारो जिला में सक्रिय स्वयंसेवी संस्था सहयोगिनी के निदेशक गौतम सागर ने बताया कि ट्रैफिकिंग इन पर्सन 2024 रिपोर्ट के अनुसार बंधुआ मजदूरी कराने के मकसद से ह्यूमन ट्रैफिकिंग में इजाफा हो रहा है, लेकिन इन मामलों में दोषसिद्धि नगण्य है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में सुरक्षित प्रवासन सुनिश्चित करने के लिए संगोष्ठी में कुछ सिफारिशें भी पेश की गईं। इनमें सरकारों, नागरिक समाज संगठनों और प्रवासन-संबंधी अंतरराष्ट्रीय निकायों के बीच मजबूत समन्वय और साझेदारी को बढ़ावा, शिक्षा और जागरूकता के उपायों जैसे सामुदायिक निगरानी प्रणाली, इन मुद्दों को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना और जोखिम में रह रहे प्रवासियों के क्षमता निर्माण के अलावा प्रौद्योगिकी का उपयोग, जिसमें डिजिटल उपकरण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल पहचान प्रणाली शामिल हैं।

संगोष्ठी में भारतीय पुलिस फाउंडेशन के अध्यक्ष ओ.पी. सिंह, नेपाल के मानवाधिकार एवं अंतरराष्ट्रीय संधि समझौता प्रभाग के संयुक्त सचिव राजेंद्र थापा, श्रीलंका के विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ एम.एम.एस.एस.बी. यालेगामा, श्रीलंका के इंस्टीट्यूट ऑफ पालिसी रिसर्च के माइग्रेशन एंड पालिसी रिसर्च प्रमुख डॉ बिलेशा वीरारत्ने, भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सलाहकार ओंकार शर्मा और महाराष्ट्र पुलिस की विशेष पुलिस महानिरीक्षक अश्वती दोरजे भी शामिल थी।

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