राम के राम से श्रीराम बनने की यात्रा है वन गमन प्रसंग-मानवेन्द्र त्रिपाठी

विश्वामित्र की विदाई से हुई रामायण मंचन का शुभारंभ

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला के पर्यटन विभाग के मुख्य मंच पर 27 नवंबर को सलेमपुर सांस्कृतिक संगम की प्रस्तुति रामायण का मंचन किया गया।

रामायण मंचन के तीसरे दिन संस्था के ख्याति प्राप्त निर्देशक मानवेन्द्र त्रिपाठी ने आज के प्रसंग पर दर्शकों को बताया कि वन गमन राम के राम से श्रीराम बनने की यात्रा है। उन्होंने कहा कि पुरुषत्व की पराकाष्ठा महर्षि विश्वामित्र का सानिध्य श्रीराम के जीवन को ऊर्जा एवं सामर्थ्य से भर देता है। महल की चार दीवारी को पार करके राम युवराज से जननायक के रूप में स्थापित होते हैं। यहां से राम का व्यक्तित्व विराट रूप धारण करता है। श्रीराम के जीवन को एक नया आयाम देने में कैकेई भी एक बड़ी भूमिका निभाती है। कहते हैं कि राम वन गए तो बन गए श्रीराम।

त्रिपाठी बताते हैं कि साधारण अर्थों में वन जाना दुःख, पीड़ा, संघर्ष के रूप में परिलक्षित होता है। लेकिन जब व्यक्ति साकारात्मक सोंच के साथ संघर्ष को जीवन में अपनाता है तो जीवन तप कर कंचन के सदृश्य चमक उठता है। राम के साथ भी कुछ ऐसा ही है। राम ने वन गमन को दुर्भाग्य नहीं, बल्कि सौभाग्य के रूप में स्वीकार किया।

वन गमन राम के राम से श्रीराम बनने की यात्रा है। हर प्राणी को वन गमन प्रसंग से एक बड़ा संदेश मिलता है। जीवन में दुःख, विपत्ति, कठिनाई एवं संघर्ष व्यक्ति को तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति को और मजबूत बनाने के लिए आती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में राम से श्रीराम बनने का मार्ग खुला रहता है।

इन्हीं संदेशों से परिपूर्ण आज मंच पर कलाकारों ने विश्वामित्र की बिदाई, राज्याभिषेक की मंत्रणा, मंथरा का दासो से झगड़ा, मंथरा – कैकेई संवाद, दशरथ-कैकेई संवाद, राम -कौशल्या-सीता संवाद, लक्ष्मण -सुमित्रा संवाद, राम दशरथ-मिलन, निषाद और राम मिलन के साथ उर्मिला का मार्मिक प्रसंग पर अपना अभिनय कर दर्शकों पर छाप छोड़ा।

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