अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अगस्त माह, अगस्त क्रांति दिवस, भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता दिवस (15अगस्त) का विशिष्ट महत्व है। आजादी का यह पवित्र माह है। इसी अगस्त माह में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के नारे ने पूरे बिहार को आंदोलित कर रख दिया था, जिससे ब्रिटिश गवर्नमेंट हिल गई थी।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार की राजधानी पटना स्थित सचिवालय पर तिरंगा लहराते छात्रों पर तत्कालीन डीएम आर्चर द्वारा करवाई गई निर्मम पुलिस फायरिंग और उनमें सात छात्रों की शहादत ने ब्रिटिश सरकार के भारत में राज करने के भविष्य का निर्धारण उसी दिन कर दिया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की सफलता की कहानी इन्हीं सात शहीदों के खून से लिखी गई थी। जिनमें दो शहीद वर्तमान सारण प्रमंडल के भी थे।
ज्ञात हो कि 15 अगस्त 1947 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल जयराम दास दौलतराम ने अखण्ड बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह की उपस्थिति में शहीद स्मारक की आधारशीला रखी थी। मूर्तिकार देवप्रसाद राय चौधरी ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ इन सात विद्यार्थियों की कांस्य प्रतिमा का निर्माण किया था।
बताया जाता है कि इन सात शहीदों में वर्तमान सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड के नयागांव बरियारचक के शहीद राजेंद्र सिंह एवं सीवान जिला के हद में नरेंद्रपुर के शहीद उमाकांत प्रसाद सिंह भी शमिल हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल इन आंदोलनकारी छात्रों ने पहले से ही तय कर लिया था कि पटना सचिवालय से ब्रिटिश गवर्नमेंट का झण्डा उखाड़ फेंकेंगे और उसके स्थान पर भारतीय तिरंगा लहराएंगे। भारत छोड़ो आंदोलन की गूंज लंदन तक पहुंच चुकी थी। इस अगस्त क्रांति ने अंग्रेजों को इस तरह हतोत्साहित किया कि वे अपना आपा खो दिए। देश में बड़ी गिरफ्तारियां हुईं।
इसी कड़ी में 11अगस्त को बिहार के विभिन्न जिलों के पटना में पढ़ने वाले स्कूली और कॉलेज के छात्रों ने पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल परिसर में तिरंगा फहराया। यहीं से विद्यार्थियों का जुलूस न्यू कैपिटल की ओर रवाना हुआ।
उनका संकल्प सचिवालय पर तिरंगा लहराना था। जिलाधिकारी डब्लू. सी. आर्चर के सिपाहियों की गोली की परवाह नहीं करते हुए सीने पर गोली खाने के बाद भी हाथों में झंडा थामें सचिवालय पर तिरंगा लहरा ही दिया और हंसते-हंसते भारत माता के चरणों में अपनी शहादत अर्पित की।
शहादत देने वाले शहीदों में सोनपुर के राजेन्द्र सिंह की कुछ ही दिन पूर्व नई – नई शादी हुई थी। उनकी नई नवेली दुल्हन सुरेश देवी के गवना के बाद हाथों की मेहंदी अभी फीकी भी नहीं पड़ी थी। शहीद राजेंद्र उस समय पटना के गर्दनीबाग स्थित हाई स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। इनके पिता का नाम शिवनारायण सिंह तथा माता का नाम जीरा देवी था। शहीद राजेन्द्र सिंह की पत्नी सुरेश देवी को भारत सरकार ने स्वतंत्रता सम्मान पेंशन देकर सम्मानित किया था।
नयागांव के समाजसेवी नरेंद्र सिंह बताते हैं कि नयागांव के बनवारीचक निवासी शहीद राजेंद्र सिंह के पिताजी शिव नारायण सिंह पेशे से ठेकेदार थे। इसको लेकर उनका राजभवन में आना-जाना लगा रहता था। देश की खातिर सचिवालय पर गोली खाने से एक दिन पूर्व ही वे अपनी पत्नी का गवना करवाकर घर आए थे। ठीक उसी दिन पटना सचिवालय पर झंडा फहराने का प्लानिंग था।
उनके पिताजी को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने पुत्र राजेंद्र को उस दिन जाने से मना किया, क्योंकि उन्हें इसकी भनक मिल गई थी कि अगर आज कोई सचिवालय पर झंडा फहराने जाएगा तो कोई न कोई अप्रिय घटना उसके साथ घटित हो सकती है। बावजूद इसके देश भक्ति के रंग में रंगे राजेंद्र सुबह के लगभग 7 बजे अपने हाथों में तिरंगा लिए अपने पिताजी का आशीर्वाद लेने पहुंच गए।
जब पिताजी दुखित हो गए तो उन्होंने बड़ी शालीनता से उनसे कहा था कि पिताजी अगर इसी तरह हर बाप सोचने लगे तो क्या भारत माता आजाद हो सकेगी ? देश कैसे स्वतंत्र होगा? यह कह अपने पिताजी का पैर छूकर आगे बढ़ने लगे, तब अश्रुपूरित नेत्रों से पिता ने उन्हें विजयी भवः का आशीर्वाद दिया। उन्होंने प्रदर्शन में अपने पुत्र की सफलता की ईश्वर से प्रार्थना की। तब शहीद राजेंद्र ने अपने पिताजी को बताया कि या तो आप का पुत्र तिरंगा को फ़हरा कर आएगा या शहीद होकर लौटेगा जिससे हर एक पिता को आपके पुत्र पर गर्व होगा।
11 अगस्त 1942 को अंग्रेज की गोली से शहीद हुए थे राजेंद्र सिंह
सन् 1942 में अगस्त क्रांति के दौरान 11 अगस्त को सचिवालय पर झंडा फहराने राजेंद्र सिंह अपने छह साथियों के साथ निकले थे। जिलाधिकारी डब्लू एच आर्चर ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दे दिया। गोलियां अंधाधुंध चलीं और उन सात विद्यार्थियों को लगी। वे शहीद तो हो गए किंतु तिरंगा को झुकने नहीं दिया। अंग्रेज जिलाधिकारी ने देखा सचिवालय पर यूनियन जैक के स्थान पर तिरंगा झंडा लहरा रहा था।
अभियान का नेतृत्व कर रहे थे 14 वर्षीय देवीपद चौधरी
देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए इस अभियान का नेतृत्व सिलहट जमालपुर गांव जो कि अभी बांग्लादेश में है के 14 वर्षीय देवीपद चौधरी कर रहे थे। वे भी मिलर स्कूल के ही छात्र थे। अपने छह साथियों के साथ आगे की ओर बढ़ रहे थे।
तब पुलिस ने उन्हें रोकना चाहा। आजादी की जुनून जिस पर चढ़ जाती है वे रुकते कहा। सातों साथी आगे की ओर बढ़ने लगे। देवीपद के हाथ में तिरंगा था। उसे लेकर वे आगे बढ़ रहे थे कि पुलिस आकर उन्हें रोकने की कोशिश की।
पटना जिला के हद में मसौढ़ी थाने के शहादत नगर (अब धनरुआ) के लक्ष्मण सिंह एवं अन्नतीया देवी के पुत्र दसवीं कक्षा के छात्र रामानंद सिंह ने गिरते तिरंगे को अपने हाथों में थाम लिया। जब रामानंद को भी गोली लग गई तो नयागांव के राजेंद्र सिंह ने तिरंगा को अपने हाथों में थाम लिया। इसी बीच उन्हें भी गोली लग गई। अंततः गोली लगते लगते तिरंगा को फ़हरा दिया।
19 वर्षीय उमाकांत प्रसाद सिंह की घायलावस्था में अस्पताल में मृत्यु हुई। भागलपुर जिले के खड़हरा ग्राम के स्व.जगदीश प्रसाद झा के पुत्र शहीद सतीश प्रसाद झा की भी गोली लगने से घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। औरंगाबाद जिले के ओवरा थाना अन्तर्गत खराटी ग्राम के स्व. सुखराज बहादुर खराटी के पुत्र शहीद जगपति कुमार भी यहीं शहीद हुए। इन्होंने सीने पर गोली खाई थी। पटना जिले के दशरथा निवासी स्व. देवनंदन सिंह के पुत्र शहीद राम गोविंद सिंह भी शहीद हुए।
जन्म तिथि तथा पुण्य तिथि को होता है नया गांव में कार्यक्रम
शहीद राजेंद्र सिंह के पैतृक निवास नयागांव बनवारीचक में उनके जन्मदिन तथा शहीद दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। नयागांव स्टेशन गेट स्थित उनके आदम कद प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री तक यहां आ चुके हैं। शहीद राजेंद्र के नाम पर नयागांव स्टेशन का नामकरण करने की मांग वर्षों से लंबित है।
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