साधु के लिए प्रोटोकॉल नहीं विश्वास होता है-जगद्गुरु रामानंदाचार्य

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। जहां विश्वास है, वही ईश्वर का वास है। प्रभु साकार व् निराकार दोनों रूपों में है। गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। विश्वास से ही तुलसीदास ने चित्रकूट में साक्षात प्रभु श्रीराम का दर्शन किया था।

उक्त बातें बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह स्थित दुर्गा मंडप प्रांगण में आयोजित नौ दिवसीय रामचरित मानस नवाहन परायण यज्ञ में पधारे कामदगिरि पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामस्वरुपाचार्य जी महाराज कामतानाथ प्रमुख द्वार चित्रकूट धाम ने 26 मार्च की देर संध्या एक विशेष ने भेंट में कही।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कहा कि जब चित्रकूट के घाट पर रामचरित् मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास से प्रभु श्रीराम का साक्षात दर्शन हुआ तब वे उन्हें राजकुमार रूप में नहीं पहचान पाए, इसलिए श्रीराम भक्त हनुमान द्वारा तोता रूप में बताएं जाने के बाद तुलसीदास को श्रीराम का विराट रुप का दर्शन संभव हो पाया। इससे पूर्व गोस्वामी तुलसीदास काशी, अयोध्या, जनकपुर आदि कई जगह पर भटक कर श्रीराम की तलाश करते रहे।

कहीं भी उन्हें श्रीराम का दर्शन नहीं हुआ। तब काशी विश्वनाथ से उन्हें चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी तट पर प्रभु श्रीराम का साक्षात दर्शन की बात कही गई। चित्रकूट में भी तुलसीदास भटकते रहे। किसी भी संत से पूछते तो यही जबाब मिलता कि हनुमान जी बताएंगे। हनुमान जी के बताये अनुसार जब वे चित्रकूट के मन्दाकिनी नदी तट पर जाकर प्रभु का इंतजार कर रहे थे, तभी प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण राजकुमार रूप में आकर शीला (पत्थर) पर चंदन घिसते तुलसीदास से चंदन लगाने की जिद की। गोस्वामी जी प्रभु को बिना पहचाने स्वयं चंदन लगाने की बात पर हनुमान जी द्वारा तोता रूप में बताया गया, इसके बाद हीं गोस्वामी जी ने प्रभु के विराट रूप का दर्शन किया। उन्होंने कहा कि कलिकाल में भी मीरा को श्रीकृष्ण, रामकृष्ण को माँ काली ने साक्षात् दर्शन दिया है।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने देवधिदेव भगवान शिव को विश्वगुरु मानते हुए कहा कि हर क्षेत्र में गुरु की आवश्यकता होती है। कहा कि मुलरूप से गुरु दो प्रकार के होते हैं। एक जो संसारिक ज्ञान दे, दूसरा जो अध्यात्म ज्ञान दे। कहा कि आज का मानव केवल संसारिक ज्ञान में भटककर दिशाहीन हो जाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर आदि तो बन जाता है, लेकिन अध्यात्म ज्ञान के बिना पथ भ्रष्ट होकर लोभ लालच में फंसता चला जाता है। इसलिए सांसारिक गुरु के साथ-साथ आध्यात्मिक गुरु से ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है, तभी मानव जीवन सार्थक होगा।

उन्होंने कहा कि प्रभुता का तात्पर्य सांसारिक सत्ता जबकि प्रभु का तात्पर्य आध्यात्म से है। आज समाज में डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर बनने के पीछे की मंशा धन प्राप्ति की सोच है। इस पद में प्रभुत्व झलकता है, इसलिए यह प्रभुता है। जिसमें प्रभुत्व होता है। प्रोटोकॉल रहता है। लेकिन प्रभु ज्ञान में कोई प्रोटोकॉल नहीं है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, बड़े बड़े अधिकारी, मंत्री आदि जब भाषण देने कहीं जाते हैं तो प्रोटोकॉल के तहत प्रशासनिक महकमा तथा पार्टी समर्थक आदि भीड़ इकट्ठा कर लेते हैं।

इसमें प्रभुत्व झलकता है, लेकिन जब कोई साधु कहीं प्रवचन करता है तो उसकी वाणी में ईश्वरीय तत्व निहित होता है। अध्यात्म होता है। इसलिए भीड़ स्वत: ही साधु के ईशवरीय वाणी को सुनने के लिए आकर्षित होकर पहुंच जाता है। यहां प्रभुता नहीं प्रभु का वास होता है। यह प्रोटोकॉल नहीं साधुता हैं, क्योंकि साधु सबके लिए सोचता है। यही काम प्रशासनिक अमला यदि सोचें तो राष्ट्र व मानव जीवन का सदैव कल्याण होगा।

लगभग 50 वर्षों से संपूर्ण अध्यात्म जीवन जी रहे जगद्गुरु रामानंदाचार्य के अनुसार आमतौर पर कहा जाता है कि अन्य धर्मों के अपेक्षा हिंदू धर्म में ईश्वर के कई स्वरुप माने हैं। मेरा मत है कि यह सनातन धर्म का विशाल स्वरुप का प्रतीक है। इससे स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म विशाल परिवार को लेकर चलता है। आज के युवा पीढ़ी को यह बात समझ नहीं होगी, क्योंकि एकल परिवार में पहचान समाप्त हो जाता है। विशाल परिवार हमेशा सहयोगी बनकर एक दूसरे के दु:ख दर्द को समझते हैं।

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