41वें पुण्यतिथि में याद किए गये पार्श्वगायक मुहम्मद रफ़ी

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। मेघदूत रेडियो लिस्नर्स क्लब बेरमो की ओर से 31 जुलाई को 41वें पुण्यतिथि में याद किए गये पार्श्वगायक मुहम्मद रफ़ी (Playback singer Mohammad Rafi)। इस अवसर पर उन्हें विनम्र श्रद्धा-सुमन अर्पित किया गया।

भारतीय फिल्म उद्योग में आवाज की दुनियां के बादशाह थे पार्श्वगायक मो रफी। उन्होंने सिने जगत में हिंदी फिल्मों के अलावे मराठी, बंगला, तेलगु, पंजाबी आदि अनेक भाषाओं में गानों को अपनी मधुर आवाज से जादू बिखेरा है।

31जुलाई को उनकी 41वीं पुण्यतिथि पर मेघदूत रेडियो लिस्नर्स क्लब बेरमो की ओर से वर्चुअल बैठक कर अलग अलग शहरों से जुड़कर सदस्यों ने ऑनलाइन श्रद्धा-सुमन अर्पित कर तथा उनके गाए हुये गानों को स्वरांजली देकर उनकी याद को ताजा किया। कार्यक्रम में लॉकडाउन के सारे नियमों का पालन किया गया।

बता दें कि पुरानी फिल्मों के गाने सुनने वाले आज भी उनके लाखो प्रशंसक हैं। जिसमें ‘ये दुनियां के रखवाले सुन दर्दभरे मेरे नाले (बैजू बावरा), खामोश जिंदगी को आवाज दे रहे हो (नाग मंदिर), ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ लेले (उड़न खटोला) आदि शामिल है। भाव यह कि उनके गाए हुये नगमे ऐसे हैं, जो आज भी कर्णप्रिय हैं। उनके प्रशंसक उनके गीतों को सुनने को बेताव रहते हैं।

ऑनलाइन जुड़कर अपनी उपस्थिति दर्शाने वालों में बेरमो से लिस्नर्स क्लब उपाध्यक्ष अजीत जयसवाल, अनिल पाल, निरंजन दत्त, उमेश घायल, लुधियाना से अध्यक्ष मंजीत छाबड़ा, वीनू छाबड़ा, नैनू छाबड़ा, महाराष्ट्र से सुनैना, गुजरात से चांदनी पटेल, धनबाद से रामचंद्र गुप्ता, रामाधार विश्वकर्मा, रांची से नौशाद खान परवाना, लखनऊ से योगेश जी, लखीसराय से गुलशन कुमार आदि जुड़े रहे।

रफी के गाए गानों को स्वरांजली देने वालों में बेरमो से अजीत जयसवाल ने आए बहार बनकर लुभाकर चले गए (राज हठ), अरमां था हमे जिनका (औलाद), रुख से जरा नकाब हटा दे (मेरे हुजूर), खामोश जिंदगी को आवाज (नाग मंदिर), सुख के सब साथी (गोपी), किस कारण जोगन योग लिया (जवाब), एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों (गबन)।

इसी तरह लिस्नर्स क्लब अध्यक्ष मंजीत छाबड़ा ने ‘क्या मिली ये ऐसे लोगों से (इज्जत), नागन सा रूप है तेरा (बगावत), ओ मेरी महबूबा (धर्मवीर), तेरी आंखों के सिवा दुनियां में रखा क्या है (चिराग), चेहरे पे गिरी जुल्फें (सूरज), दुनियां हंसे हंसती रहे (गंवार), इसके अलावे ‘मेरा प्रेम पत्र पढ़कर (संगम), मैं जट यमला पगला दीवाना (प्रतिज्ञा), मुकाबला हमसे ना करो (प्रिंस),

अजी ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा (एन इवनिंग इन पेरिस), आ बता दें ये तुझे कैसे जिया जाता है (दोस्त), सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं (सच्चाई) आदि अनेकों गानों को गुनगुनाया गया।

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