अवध किशोर शर्मा/सोनपुर (सारण)। श्रीधाम अयोध्या के श्रीराम कथा मर्मज्ञ पंडित देवेन्द्र तिवारी ने हनुमत चरित पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कथा श्रवण करने से हमारे सभी दु:खों की निवृत्ति हो जाती है। लंका के अशोक वाटिका में श्रीकिशोरी जी अत्यंत दुखित थी।हनुमानजी ने तब उन्हें श्रीराम कथा सुनाई। ‘श्रीरामचंद्र गुण वर्णन लागा, सुनत सीता कर दु:ख भागा।’
राम कथा मर्मज्ञ पंडित तिवारी ने सारण जिला के हद में सबलपुर बभनटोली में वृन्दावन स्थित श्रीरंग रंगनाथ पीठ के रामानुज सम्प्रदायाचार्य महामंडलेश्वर जगद्गुरु महन्त स्वामी श्रीकृष्ण प्रपन्नाचार्य जी महाराज के मंगलानुशासन में चल रहे नौ दिवसीय विराट महाविष्णु यज्ञ में प्रवचन करते हुए उपरोक्त बातें कही।
उन्होंने कहा कि हमारे जीवन के दु:खों की निवृत्ति सुख सिन्धु भगवान श्रीराम के नाम, रुप, लीला, धाम का आश्रय लिए बिना संभव नही है।क्योंकि हम जिस संसार में रहते हैं उसमें हमें जिस क्षणिक सुख की प्रतीति होती है वस्तुतः वह सुख नही दुख है।
इस बात को प्रमाणित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि यह संसार दु:ख का घर है। इसलिए हमें सुख सिन्धु भगवान की शरण ग्रहण करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हनुमान जी का चरित हमें जीवन में अभिमान का त्याग करने की शिक्षा देता है।
इसलिए हनुमान जी रावण को कहते हैं कि रावण मैं तुमसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें भी अपने अभिमान का त्याग कर भगवान की शरण ग्रहण कर लेनी चाहिए। इसका भाव यह है कि हनुमान जी जो उपदेश कर रहे हैं वह उनके आचरण में भी दिख रहा है।
मानों हाथ जोड़कर वे कहना चाहते हैं कि जैसे मैंने अपने मान का त्याग कर और हाथ जोड़कर तुम्हें प्रार्थना की, यद्यपि ‘अतुलित बलधाम’हैं। इसी प्रकार तुम अपने मान-अभिमान का त्याग कर भगवान की शरण ग्रहण करो।
इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि उपदेश देने वाले व्यक्ति के जीवन में उपदेश की गई बातों का आचरण पहले होना चाहिए और उपदेश बाद में।
इससे पूर्व छठे दिन के प्रवचन में उन्होंने कहा था कि बिना भगवान की कृपा के संतों का दर्शन संभव नही है।यह बात विभीषण जी ने हनुमान जी से कही थी।
174 total views, 1 views today