होली के रंगों में सराबोर हुआ काव्य मंच
एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। सामयिक परिवेश पत्रिका तमिलनाडु अध्याय मासिक काव्य-गोष्ठी होली के अवसर पर ऑडियो के माध्यम से बीते 5 मार्च को आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी की मुख्य अतिथि संस्था की संस्थापिका एवं प्रधान संपादक ममता महरोत्रा के मार्गदर्शन में यह गोष्ठी संपन्न हुई।
इस अवसर पर प्रधान संपादक ममता महरोत्रा ने अपने उद्बोधन में होली पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं दी। साथ हीं उन्होंने संस्था की गतिविधियों से सभी को अवगत कराया।
विशिष्ट अतिथि सामयिक परिवेश के राष्ट्रीय सूचना संचार एवं आईटी प्रमुख अशोक गोयल ने अपने उद्बोधन में कहा कि ममता महरोत्रा के अथक प्रयासों से आज सामयिक परिवेश अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है।
अध्यक्षता संस्था के संपादक श्याम कुवंर भारती ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में संस्था की साहित्यिक गतिविधियां एवं नई योजनाओं के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि संस्था कुछ गरीब परिवारों की आर्थिक मदद भी कर रही है, जिन्हें इलाज की जरूरत थी।
कार्यक्रम के अवसर पर सरस्वती वंदना नम्रता श्रीवास्तव ने की। मंच संचालन वरिष्ठ कवि संतोष श्रीवास्तव ‘विद्यार्थी’ ने बेहतरीन ढंग से किया। स्वागत भाषण डॉ मंजु रुस्तगी एवं धन्यवाद ज्ञापन सरला विजय सिंह ‘सरल’ ने किया। जबकि सौहार्दपूर्ण वातावरण में गोष्ठी संपन्न हुई।
गोष्ठी में भाग लेने वाले प्रतिभागी एवं उनकी रचनाओं की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं श्याम कुवंर भारती ने “दसो दिशा दियना जरईबो, काली मईया मंदिर सजईबो हो, तथा खेलत नहीं होली ये ननदी, जबले चुकईहे नाही बदला देशबा। डॉ मंजु रुस्तगी ने होली इस विध खेलियो मन कलुष धुल जाए, प्रीत का रंग ऐसो चढ़े इस रंग सब रंग जाए।
संतोष श्रीवास्तव ‘विद्यार्थी’ ने अपने पिताजी के पुण्यतिथि पर उन्हें समर्पित रचना ऐ मेरे जन्मदाता मैं हूँ तेरी निशानी, कुछ भी नहीं है मेरा सब तेरी मेहरबानी, अशोक गोयल ने हमसे नजर मिलाइये होली का रोज है, तीरे नजर चलाइये होली का रोज है, अंजनी कुमार ‘सुधाकर’ ने तीन रंगों की पिचकारी लेकर भुवन आज खेल रहा है होली,आदि।
डॉ सत्येंद्र शर्मा ने वहां खून की होली खेले उसको कब हम रोकेंगे हिटलर फिर से पैदा होता कभी न क्या हम टोकेंगे, उषा टिबड़ेवाल ‘विद्या’ ने जब हुआ प्यार खामोशी में मेरी रूह में तेरी मौजूदगी पाई, सरला ‘सरल’ ने चलो इस बार कुछ ऐसी होली मनाएँ, दिल में उग रही नफरत की जड़ें मिटाएँ, नम्रता श्रीवास्तव ने लेके रंगों की फुहार आ गया होली का त्यौहार,आदि।
प्रेम की गंगा बहाने आया सबका प्रिय त्योहार, स्नेह लता गुरुंग ने रंगों का त्योहार है होली खुशियों का त्योहार है होली, रमा कुवंर ने आओ सब मिलकर खेलें हम होली लाल हरे पीले रंग बिखरे गली गली, डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने आओ आज हम सब मिलकर होली का त्योहार मना लें, सुधीर श्रीवास्तव ने होली के हुड़दंग का उल्लास खोता जा रहा है, ऐसा लग रहा जैसे इस पर्व का भाव खोता जा रहा है,आदि।
संजय जैन ने तुम्हें कैसे रंग लगाएँ और कैसे होली मनाएँ, प्रतिभा जैन ने होली की खुशी अब होती नहीं गुलाल अब शरारत से लगाती नहीं, शीतल शैलेंद्र देवयानी ने आज रंग अबीर गुलाल मन के हृदय को कोर- कोर रंग गयो, मिथिलेश सिंह ने होली का त्योहार जब आता है खुशियाँ लेकर आता है,आदि।
सुमन सेंगर ने बसंतों का यह मौसम है गुलाबों की जवानी है तथा डॉ सुनीता जाजोदिया ने बौराया नहीं बसंत से मन होली में, तनाव से बोझिल है मौसम होली में प्रस्तुत किया। सबने अपनी रचनाओं द्वारा समा बाँध दिया। कुल बीस प्रतिभागियों ने काव्य पाठ में भाग लिया।
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