भक्ति मार्ग में साधक को चार बाधाओं से टकराना पड़ता है-पं निर्मल कुमार शुक्ल

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला (Bokaro district) के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह में आयोजित श्रीराम कथा नवाहन परायण यज्ञ महोत्सव के आठवें दिन 29 मार्च की रात्री हनुमान चरित्र का वर्णन किया गया।

यहां महाराष्ट्र (Maharashtra) के अंकोला से पधारे मुख्य प्रवचन कर्ता मानस मर्मग्य पंडित निर्मल कुमार शुक्ल ने कहा कि भक्ति के मार्ग में साधक को चार बाधाओं से टकराना पड़ता है।

राम भक्त हनुमान चरित्र का वर्णन करते हुए पं शुक्ल ने कहा कि रामायण में हनुमान जी महराज की दो सुदीर्घ यात्राएं हुईं है। एक दक्षिण की तो दूसरी उत्तर दिशा की। दक्षिण की यात्रा शक्ति को खोजने के लिए हुई तो उत्तर की यात्रा संजीवनी की खोज के लिए। माता सीता मूर्ति मई भक्ति हैं वे आदिशक्ति हैं।

साधक जब भक्ति की खोज में चलता है तो पहली बाधा के रूप में लोभ आता है। नाना प्रकार के रूप बना कर यह साधक को पथ भ्रष्ट कर देता है। हनुमान जी की यात्रा में भी सबसे पहले लोभ ही आया। रामायण में वर्णन है कि मैनाक सोने का पर्वत है। पहले पर्वतों को पंख होते थे। वे उड़ते थे।

जब किसी नगर बस्ती पर उड़ कर बैठ जाते तो सारे लोग दब कर मर जाते। देवताओं ऋषियों ने इन्द्र से प्रार्थना किया और उन्होंने वज्र से सारे पर्वतों के पंख काट दिए। यह मैनाक पर्वत पवन देव का मित्र था। उस समय पवन ने इसे उड़ा कर समुद्र के गहराई में छिपा दिया।

पं शुक्ल ने बताया कि जब हनुमान समुद्र के ऊपर उड़ रहे थे तो मैनाक पर्वत उनके पास आया और पवन देव के ऋण को चुकाने के लिए हनुमान को पीठ पर उठाने लगा। हनुमान ने स्वर्ण का पर्वत देख कर प्रणाम किया और विदा कर दिया, क्योंकि रामायण में सारी दुर्घटनाएं सोने के कारण ही हुई है। इस प्रकार स्वर्ण यानी लोभ को भक्त हनुमान ने जीत लिया।

उन्होंने कहा कि जब आदमी लोभ को जीत लेता है, तब उसे कीर्ति मिलती है। कोई दस बीस लाख का त्याग कर दे तो सारा संसार जय जयकार करता है। हनुमान ने तो सोने के पहाड़ का ही त्याग किया है।

बाद में देवताओं ने पवनपुत्र की परीक्षा लेने के लिए सुरसा को भेज दिया। सुरसा हमारे जीवन की कीर्ति है। हनुमान ने सबको मारा पर सुरसा पर प्रहार नहीं किया, क्योंकि कीर्ति को मारना नहीं चाहिए।

कीर्ति की लालसा में ही मनुष्य सत्कर्म करता है। सुरसा ने भी हनुमान को खाने के लिए मुंह फैलाने लगी और हनुमान जी भी उससे दूना रूप बढाने लगे, किन्तु जब वह सौ योजन मुंह फैला ली तो हनुमान जी छोटे बन गये और उसके मुंह में जाकर बाहर आ गए। यह चतुराई देख कर सुरसा संतुष्ट होकर आशीर्वाद देती हुई चली गई। इस प्रकार हनुमान जी ने कीर्ति याने प्रशंसा को जीत लिया।

पं शुक्ल ने प्रवचन के क्रम में बताया कि तीसरे नंबर पर सिंहिका आई यह राहू की माता है और गहरे समुद्र में रह कर आकाश में उड़ने वाले जीवों को खा जाती है। सिंहिका हमारे जीवन की ईर्ष्या है। वैसे तो समुद्र में हजारों जीव हैं, लेकिन यह केवल ऊपर उड़ने वाले को ही खाती है, क्योंकि ईर्ष्या नीचे वाले से नहीं ऊपर वाले से होती है।

हनुमान जी ने कीर्ति रूपी सुरसा को तो नहीं मारा, लेकिन सिंहिका को मार डाला। क्योंकि ईर्ष्या को तो समूल नष्ट कर देना ही चाहिए। इस प्रकार उन्होंने तीसरी बाधा को भी जीत लिया। उक्त उद्गार रामचरितमानस कथा यज्ञ मंडप में विशाल जनसमूह को भाव विभोर करते हुए मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने दुर्गा मंदिर परिसर में व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि चौथी बाधा हमारे जीवन की आसक्ति है, जो कि लंकिनी के रूप में आई। आसक्ति की विशेषता यह है कि वह दूसरों के दोष तो बहुत देखती है, किन्तु अपनों का दोष उसे नहीं दिखता। लंकिनी हनुमान जी को चोर घोषित कर रही है, किन्तु असली चोर रावण जो माता सीता को चुरा कर उसके सामने से ही गया उसकी चोरी उसे नहीं दिख रही है।

हनुमान जी का एक मुक्का लगते ही वह धरती पर गिर गई। सारा रक्त बह गया तब उसकी बुद्धि बदल गई। उसने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए लंका का सारा रहस्य बताने लगी। इस प्रकार हनुमान जी ने चारों बाधाओं को जीत कर जगदंबा सीता का दर्शन प्राप्त किया।

जानकारी के अनुसार इस कथा महोत्सव का 29 मार्च को विश्राम हो गया। 30 मार्च को विद्वानों के साक्षी में दोपहर 12 बजे राम राज्याभिषेक होगा। साथ हीं रात्रि 7:30 बजे से 11:30 बजे तक महराज जी द्वारा राम राज्य का वर्णन होगा।

यहां यज्ञ आयोजन समिति के सचिव बसंत ओझा, अमरनाथ शाह, अंजनी सिंह, योगेन्द्र सोनार, राजकुमार मंडल, रामदास केवट आदि सदस्यों ने महराज जी का पुष्प हार डाल कर स्वागत किया तथा सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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