नारायणी नदी किनारे है भगवान शिव की काम विजय मुद्रा की मूर्ति

भक्तों की मनोवांछित कामनाओं की यहां होती है पूर्ति

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में पूर्वी छोड़ पर स्थित सोनपुर में नारायणी नदी के तट पर काली मंदिर समूह की मंदिरों की श्रृंखला में आपरुपी गौरी शंकर मंदिर मनोकामना पूरण मंदिर के नाम से सुविख्यात है।

मंदिर के गर्भगृह में गौरी शंकर की प्रतिमा दक्षिण मुखी है। साथ में यहां शिवलिंग भी स्थापित है। पर, मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है।मंदिर में स्थापित गौरी शंकर की प्रतिमा को काम विजय या कामकेलि मुद्रा की प्रतिमा के नाम से लोकख्याति प्राप्त है।

आप रुपी गौरी शंकर अर्थात उमा-महेश्वर की प्रतिमा पालकालीन 9वीं -10वीं शताब्दी की है। इस संबंध में पुरातत्वविद् डॉ चितरंजन प्रसाद सिन्हा ने सर्वेक्षण के क्रम में बताया था कि सोनपुर की अधिकांश मूर्तियां पालकालीन 9वीं एवं 10वीं शताब्दी की हैं।

गौरी शंकर मंदिर में महादेव की चार भुजाएं हैं। वृषभ नहीं है। एक हाथ में (दाहिने के ऊपरवाले में) त्रिशुल है। यह हाथ ऊंचा किया हुआ है। दूसरा दाहिना हाथ पार्वती के उरोज का स्पर्श कर रहा है। देवी पार्वती प्राकृत अवस्था में हैं। और शिव की बायें जांघ पर आसीन हैं। इनके दोनों पैर नीचे लटक रहे हैं।

शिव के दाहिने पैर की जांघ बायें पैर से दबी हुई है और अपने नीचे शिश्न छिद्र को दबाए हुई है। शिव के बायें हाथों में से ऊपर का पार्वती के कंधे के नीचे के भाग को और नीचे कटि के ऊपर भाग को आवेष्टित किये दिखलाये गये हैं। हठ योगियों की भाषा में यह काम विजय मुद्रा है तथा तांत्रिक युग की मूर्ति है।

मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने विशाल तालाब है। यह आपरूपी गौरी शंकर मंदिर च्यवन कुण्ड के दक्षिण स्थित है। गरुड़ासीन भगवान श्रीविष्णु की यह प्रतिमा है। साथ में विघ्नहर्ता श्रीगणेश एवं काली भी उपस्थित हैं।

गौरी शंकर मंदिर विकास समिति के संयोजक रह चुके धनंजय सिंह कहते हैं कि इस मंदिर प्रांगण में स्थित एक लघु मंदिर में पक्षीराज गरुड़ पर आसीन भगवान विष्णु की प्राचीन प्रतिमा है, जो पुरातत्व विदों के मतानुसार गुप्तकालीन काले बसाल्ट पत्थर से निर्मित है। श्रीविष्णु के बाएं भाग में शिवलिंग धारण किए छठी सदी की चतुर्भुजी काली की प्रतिमा है और दायें भाग में विघ्नहर्ता श्रीगणेश की मूर्ति है।

काली को अब तक आमजन भ्रम वश विष्णुजी के साथ देखकर लक्ष्मी की प्रतिमा मानते थे। लक्ष्मीजी मानने की इस गलत मान्यता का पुरातत्वविदों द्वारा खंडन किया जा चुका है। उसे लक्ष्मी जी के स्थान पर शक्ति स्वरूपा पार्वती या काली बताया गया है, क्योंकि उन्होंने अपने हाथ में शिवलिंग धारण किया हुआ है। पुरातत्व निदेशालय बिहार द्वारा इन धरोहरों को वर्ष 2000 के सोनपुर मेले की अपनी प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया गया था।

ये रहे मंदिर जीर्णोद्धार के प्रेरक

गौरी शंकर विकास समिति के संयोजक रहे धर्मानुरागी धनंजय कुमार सिंह बताते हैं कि आपरुपी गौरी-शंकर मंदिर जीर्णोद्धार के लिए श्रद्धालु एवं धर्मानुरागी युवकों को प्रेरित करनेवालों में अधिकांश अब जीवित नहीं हैं। उनमें स्व.बृज किशोर दुबे (शिक्षक), स्व.जगनारायण सिंह उर्फ जग्गा बाबा तथा स्व.सरेखा सिंह (चौकीदार) के नाम उल्लेखनीय है।

इसके अतिरिक्त बाघवाले बच्चा बाबू, स्व.ठाकुर अमरेन्द्र नारायण सिंह, स्व.राजू सिंह, स्व.अशोक कुमार सिंह, स्व.विश्वनाथ सिंह (गढ़पर), स्व. महेश्वरी सिंह (रेल सुरक्षा बल) की आरंभिक सहभागिता को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आज भी साकेत सिंह चौहान (अन्नू जी), हरेन्द्र सिंह, छोटन साह, भोला सिंह और धनंजय सिंह उन यादों को समेटे हैं। मंदिर में रोज भक्तों की उमड़ रही भीड़ को देख आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं।

*वर्ष 1984 से पहले मंदिर परिसर की स्थिति दयनीय थी*
गौरीशंकर मंदिर विकास समिति के संयोजक रहे धनंजय कुमार सिंह बताते हैं कि पहले यहां जंगल भरा हुआ था। बाहरी व्यक्ति सेवा सदन होकर इस मंदिर में आने से डरते थे।उस समय सेवा सदन से मंदिर जाने के लिए पक्की सड़क नहीं थी। यह पूरी तरह कच्ची थी।

वर्ष 1984 में जब गौरी शंकर मंदिर पूजा-अर्चना के लिए गया तो उस समय मंदिर में कोई पुजारी नहीं था। गरुड़ वाहन विष्णु भगवान का लघु मन्दिर भी जीर्ण-शीर्ण था। छत से पानी टपकता रहता था।
उन्होंने बताया कि तब यहां बाघवाले बच्चा बाबू की तरफ से काली मंदिर का पुजारी ही यहां आकर दीप जला जाता था और भगवान का भोग भी लगाता था।

विकास एवं जीर्णोद्धार के लिए बनी कमिटी

इसी वर्ष शहीद महेश्वर चौक पर रेलवे सुरक्षा बल से अवकाश ग्रहण कर चुके महेश्वरी सिंह की अध्यक्षता में बैठक में मंदिर विकास समिति का गठन किया गया, जिसके संयोजक धनंजय सिंह को बनाया गया।
बैठक में मंदिर परिसर की साफ-सफाई एवं जीर्णोद्धार का निर्णय लिया गया।

इसके लिए सर्वप्रथम दान में 32 आना पैसा महेशी बाबा की ओर से आया। इसी से मंदिर जीर्णोद्धार की शुरुआत हुई।जंगलों की सफाई की गयी। यहां श्रावण मास के तीसरी सोमवारी पर पहली बार बाबा हरिहरनाथ की तर्ज पर रात्रि में गैस के लाइट में पूजा-अर्चना, आरती और प्रसाद वितरण की प्रथम शुरुआत हुई।

आखिरी सोमवारी पर जेनरेटर से मंदिर परिसर में रोशनी की व्यवस्था की गयी। सेवा सदन धर्मशाला से लेकर मंदिर परिसर तक रोशनी से पूरा क्षेत्र जगमग कर उठा। बताया जाता है कि तब यहां बुंदेला राय का जेनरेटर भाड़ा पर लिया गया। इसके लिए उस समय 200 रुपया उन्हें देना पड़ा था। दूध-चावल और गुड़ का इंतजाम सभी भक्तों ने स्वयं अपनी ओर से किया।

पैसे का घोर अभाव था। श्रृंगार-पूजा के लिए पुष्प खरीदने के लिए पैसे तक नहीं थे। तब इस अभाव की पूर्ति के लिए मंदिर के उत्साही युवकों ने वैशाली जिले में गंगा सेतु रोड किनारे से कनईल के फूल तोड़ कर लाए। उसी से भव्य श्रृंगार किया गया। भक्त अभय सिंह ने फ्री में वीडियो पर धार्मिक फिल्म दिखाया। जिससे श्रद्धालुओं की भीड़ यहां उमड़ आयी व् मन्दिर प्रांगण श्रद्धालुओं से भर गया।

यहां के काली घाट से गौरी शंकर तक होते हुए सेवा सदन धर्मशाला तक पहली बार लाइटिंग की व्यवस्था होने से रहिवासी हरिहरनाथ, काली मंदिर से गौरी शंकर मन्दिर सेवा सदन धर्मशाला तक आने जाने लगे।यह परिक्रमा मार्ग बन गया।

*गरुड़ वाहन विष्णु मंदिर से किया गया जीर्णोद्धार कार्य का शुभारंभ*
तब यहां स्थित लघु गरुड़ वाहन मंदिर का छत पानी से टपक रहा था। साकेत सिंह चौहान ने सीमेंट दिया।सोनपुर के तत्कालीन विधायक लालू प्रसाद यादव ने अपने विधायक मद से चापाकल गड़वा दिया। भक्तों के चंदा से समिति ने गौरी शंकर मंदिर में दो रूम बनवाए।

ओसारे को ढलवाया गया। ओसारे की ढ़लाई में लगे छड़ का पूरा रुपया बाघवाले बच्चा बाबू ने दिया। इस तरह अब श्रावण माह की प्रत्येक सोमवारी को विधिवत श्रृंगार-पूजा होने लगा, जो आजतक चल रहा है। मन्दिर का कायाकल्प हो चुका है। सेवा सदन से गौरी शंकर मंदिर होते हुए कालीघाट तक पक्की सड़क बन चुका है।

नारायणी नदी किनारे नमामि गंगे घाट तक बनी पाथवे भी गौरी शंकर मंदिर के पास ही आकर मिलती है। जिससे तीर्थ यात्री एवं पर्यटक भी मंदिर आने लगे हैं। रोशनी की अब पर्याप्त व्यवस्था है। सरकारी नल भी गड़ चुका है। जिसमें सोनपुर निवासी अरविंद त्रिवेदी पुजारी है। यहां अब श्रद्धालुओं का विश्वास बढ़ा। पूर्व के एक पुजारी केशव दास द्वारा एक ठाकुरबाड़ी भी बनाया गया था, जिसमें राधा कृष्ण, शालिग्राम आदि की मूर्तियां लगायी गयी है।

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